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Dharm adhyatm : वाराणसी का एक ऐसा अद्भुत व अद्वितीय मठ, जहां दान में दिया जाता है शिवलिंग 

Dharm adhyatm : वाराणसी का एक ऐसा अद्भुत व अद्वितीय मठ, जहां दान में दिया जाता है शिवलिंग 

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Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, Dharm- adhyatm, religious, Jangambadi math Varanasi : वाराणसी का सबसे प्राचीन मठों में एक है जंगमबाड़ी मठ। सदियों से यहां अपने पूर्वजों की शांति के लिए एक परंपरा चली आ रही है। इस मठ में शिवलिंगों को लेकर वर्षों से एक अनोखी और अद्भुत धार्मिक मान्यता निभाई जा रही हैं। यहां आने वाले भक्त अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान की तरह शिवलिंग का दान करते हैं। इसी कारण यह मंदिर (मठ) लाखों भक्तों द्वारा समर्पित (दान) किए हुए शिवलिंगों से भरा हुआ है।

यह परम्परा 200 साल से चली आ रही है

यह ‘जंगमबाड़ी मठ’ दक्षिण भारतीयों द्वारा बनाया गया है और उन्हीं के द्वारा इस परम्परा की शुरुआत की गई है,जिसे दूर-दराज से सभी आने वाले और स्थानीय भक्त श्रद्धा और गहन आस्था के साथ निभाते आ रहे हैं। ऐसा अनुमान है कि यह परम्परा लगभग 200 साल से चली आ रही है। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि यहां विशेष शिव मंत्रों के साथ विधि विधान से शिवलिंग का दान किया जाता है और मान्यता है कि शिवकृपा से पूर्वजों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है। यहां सावन के महीने में सबसे ज्यादा शिवलिंगका दान होता है।

यहां की देवी माँ शिवलिंग के रूप में पूजी जाती हैं

छत्तीसगढ़ के लिंगाई (लिंगेश्वरी) माता का मंदिर इसी तरह शिव और शक्ति के समन्वित स्वरूप को लिंगाई माता के नाम से जाना जाता हैं। यहां की देवी माँ शिवलिंग के रूप में पूजी जाती हैं। इस मंदिर में शिव भगवान की स्त्री रूप में पूजा होती है। यह मंदिर छत्तीसगढ़ के दुर्गम इलाकों में-‘ आलोर गांव ‘ की गुफा में स्थित है। यह जगह नक्सलवाद के कारण शिवभक्तों से अपरचित हैं। यहां के स्थानीय लोगों के लिए यह मंदिर किसी ज्योतिर्लिंग से कम नहीं है।

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वर्ष में बस एक दिन ही खुलता है यह मंदिर 

सबसे विशेष और आकर्षणीय बात इस मंदिर की यह है कि यह मंदिर वर्ष में बस एक दिन ही खुलता है अर्थात् इस मंदिर की विशेषता है कि यहां रोज पूजा -अर्चना न होकर पूरे साल में बस एक ही दिन मंदिर को भक्तों के दर्शनार्थ खोला जाता है। हजारों श्रद्धालु लिंगाई माता के इस दुर्लभ और अद्वितीय शिवलिंग के दर्शन करने के लिए प्रतिवर्ष भाद्र माह के शुक्ल पक्ष नवमी तिथि के पश्चात आने वाले बुधवार को इस प्राकतिक मंदिर को भक्तों के लिए खोला जाता है।

इस मंदिर से जुड़ी हैं दो धार्मिक मान्यताएं

पहली धार्मिक मान्यता यह है कि देवी माँ का संतान के रूप में प्रसाद देना। लिंगाई माता को ‘खीरे’ का भोग लगाया जाता है उसके बाद बचा प्रसाद पति -पत्नी को खाना पड़ता हैं, जब उनके संतान हो जाती है तब उन्हें अपनी श्रद्धा के अनुसार इस मंदिर में दान-पुण्य करने पड़ते हैं। दूसरी धार्मिक मान्यता यह है कि यहां भक्तों को भविष्य दर्शन होते हैं अर्थात भक्तों के भविष्य की बातें को बताया जाता है। यहां रेत पर बनी आकृति (शेप) से भविष्य दर्शन किया जाता है।

अन्जु सिंगड़ोदिया

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