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Dharm adhyatm : कुंभकरण ने रावण को श्रीराम से क्षमा मांगने को क्यों कहा था ? क्या आप जानते हैं ? 

Dharm adhyatm : कुंभकरण ने रावण को श्रीराम से क्षमा मांगने को क्यों कहा था ? क्या आप जानते हैं ? 

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Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, Ramayan, kumbhkaran, Ravan, Dharm- adhyatm, dharm adhyatm, religious :  कुंभकरण रामायण का एक ऐसा पात्र था, जो अत्यन्त बलशाली होने के साथ-साथ बुद्धिमान भी था। उसने ना केवल अपने भाई रावण को समझाने का प्रयत्न किया था, बल्कि रावण के नहीं मानने पर स्वयं युद्धभूमि में जाने का भी निर्णय किया था। हालांकि, कुंभकरण को परिणाम का पता था, लेकिन अपने बड़े भाई की आज्ञा मान कर उसने युद्धभूमि में जाने का निर्णय लिया। जब भगवान श्रीराम समुद्र पर पुल बना कर लंका पहुंच गये और रावण के कई बेटे व योद्धा उस युद्ध में मारे गये थे, तब अहंकार में भर कर रावण स्वयं युद्ध करने गया। किन्तु, वहां उसे श्रीराम द्वारा हार का मुख देखना पड़ा। स्वयं का ऐसा अपमान देख कर रावण ने कुंभकरण को निद्रा से जगाया व उसे युद्धभूमि में जाने का आदेश दिया। हालांकि, कुंभकरण ने रावण को माता सीता को लौटाने व श्रीराम से क्षमा मांगने को कहा, लेकिन ऐसा क्यों ? इसका रहस्य रावण व कुंभकरण के संवाद में ही छुपा है।  क्या आप जानते हैं ? यदि नहीं, तो आइए जानते हैं…

कुंभकरण का धर्मवादी होना

हालांकि, कुंभकरण ने एक राक्षसी मां की कोख से जन्म लिया था, किन्तु उसके पिता एक महान ऋषि विश्रवा थे। रावण अपनी मां के ज्यादा सम्पर्क में रहा था व पिता को कम मानता था, इसलिये उसमें राक्षसी गुण ज्यादा थे। किन्तु कुंभकरण ने अपनी मां व पिता ; दोनों का अनुसरण किया था। इसलिये उसमें राक्षस रूपी अहंकार व रक्तपात की भावना के साथ-साथ अपने पिता के दैवीय गुणों का भी समावेश था।

ब्रह्मा के वरदान के कारण 06 माह तक सोता था

चूंकि, कुंभकरण भगवान ब्रह्मा के वरदान के कारण 06 माह तक सोता था व केवल एक दिन के लिए ही जागता था। उस एक दिन में वह इतना भूखा होता था कि वह सारा दिन भोजन करने में व शेष मदिरापान इत्यादि चीजों में लगा देता था। इसलिये उसे अपने भाई रावण द्वारा किये जा रहे अधर्म का ज्ञान नहीं था। जब उसने रावण द्वारा माता सीता का अपहरण किये जाने व भगवान श्रीराम से युद्ध करने की बात को सुना, तो उसने रावण को समझाने का प्रयत्न किया।

इश्वाकु वंश के राजा का श्राप

एक बार जब रावण विश्व विजय पर निकला था, तब कुंभकरण भी उसके साथ था। तब रघुवंश के ही राजा अनरण्य से उनका भयंकर युद्ध हुआ था व उसमें उनकी मृत्यु हो गयी थी। किन्तु मरने से पहले राजा अनरण्य ने रावण को श्राप दिया था कि उनके कुल से ही कोई व्यक्ति एक दिन रावण का वध करेगा। यह बात कुंभकरण को याद थी व भगवान श्रीराम का पराक्रम सुन कर व उनके विष्णु का अवतार होने के कारण उसे यह अनुभूति हो गयी थी कि यह श्राप सच होनेवाला है। इसलिए उसने रावण को उस श्राप की याद दिलायी थी।

नारद का कुंभकरण को सचेत करना

एक बार देवताओं के ऋषि नारद मुनि ने भगवान श्री राम के अयोध्या में जन्म लेने के बाद कुंभकरण को संकेत दे दिया था कि इस धरती पर राक्षसों का नाश करने के लिए स्वयं भगवान विष्णु ने अयोध्या के राजा दशरथ के घर जन्म लिया है। इस कारण भी उसने रावण को माता सीता को लौटा देने को कहा था। भगवान ब्रह्मा ने माता सीता के लक्ष्मी माता के रूप होने की बात कुंभकरण को बतायी थी। यह बात भी कुंभकरण ने रावण को याद दिलायी व उन्हें सचेत किया कि उन्होंने स्वयं माता लक्ष्मी का अपहरण किया है।

कायरों की भांति स्त्री का अपहरण

जब रावण ने कुंभकरण को इसका कारण अपनी बहन का प्रतिशोध लेने के लिए बताया, तो कुंभकरण को यह बात भी पसंद नहीं आयी। उसके अनुसार एक राजा को यदि प्रतिशोध ही लेना था, तो रावण को वीरों की भांति श्रीराम व लक्ष्मण से युद्ध करना था, ना कि कायरों की भांति एक स्त्री का अपहरण। इससे तो रावण की महत्ता लंका की प्रजा के सामने कम ही हुई है व लोग उन्हें कमजोर समझने लगे हैं। इन सभी बातों के पश्चात भी कुंभकरण ने युद्ध भूमि में जाने का निर्णय लिया, क्योंकि उसे समझ आ गया था कि रावण की बुद्धि अब भ्रष्ट हो चुकी है व उसे समझाने का कोई भी प्रयास विफल ही होगा। उसने अपने भाई के प्रति प्रेम व लंका के राजा के प्रति अपना कर्तव्य निभाने के लिए युद्ध भूमि में जाकर स्वयं नारायण के हाथों मरना उचित समझा।

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