Do you know? Why are Chiranjeev and Ayushmati written on wedding cards?, dharm, religious, Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, jyotish Shastra, dharmik totke, शादी के कार्ड पर आपने दूल्हे के नाम से पहले चिरंजीव और दुल्हन के नाम से पहले आयुष्मति लिखा दिखा होगा। आखिर ऐसा क्यों क्या आपने यह जानने की कभी कोशिश की है। नहीं तो आज हम आपको बताएंगे इसका राज। दरसअल, इन दोनों ही शब्दों को लिखने का प्रचलन आदिकाल से चलता आया है। इसके पीछे एक कहानी छुपी है।
…कुछ यूं शुरू हुआ चिरंजीव लिखने का प्रचलन
कहा जाता है कि कोई संतान नहीं होने पर ब्राह्मण ने महामाया की तपस्या की। इससे खुश होकर जब ब्राह्मण से महामाया ने वरदान मांगने को कहा तो उसने पुत्र की कामना की। इस पर महामाया ने कहा कि उसके पास दो पुत्र है, एक 10 हजार साल जीने वाला परंतु महामूर्ख, जबकि दूसरा 15 वर्ष ही जिंदा रहेगा, लेकिन होगा महाविद्वान। विद्वान ने थोड़ा सोच-विचार किया और दूसरा पुत्र का वरदान मांगा। महामाया ने कहा ऐसा ही होगा। इसके बाद ब्राह्मण की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। देखते ही देखते वह पांच वर्ष का हो गया। इधर, महामाया का वरदान ब्राह्मण को याद था। वह सोचने लगा कि जिस पुत्र को उसने आंखों के सामने पलता-बढ़ता देखा है, उसकी मृत्यु वह कैसे बर्दास्त कर पाएगा। ब्राह्मणी भी यह सोच कर दुखी रहा करती थी। वह ब्राह्मण से पुत्र की जिंदगी बचाने को लेकर मिन्नत करने लगे। इस बीच पुत्र विद्या ग्रहण करने के लिए काशी चला गया। इधर, युवक की विद्वता से प्रभावित एक सेठ ने अपनी पुत्री का विवाह उससे कर दिया। इधर, विधाता ने दोनों के मिलन की रात ही युवक की मृत्यु तय कर रखी थी। सो, सुगगरात के ही दिन यमराज नाग का रूप धारण कर आए और उसके पति को डंस लिया। इससे क्षुब्ध पत्नी ने उसे पकड़कर कमंडल में बंद कर दिया। तबतक उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी। दुल्हन महामाया की बहुत बड़ी भक्त थी। वह अपने पति को जीवित करने के लिए मां की आराधना करने लगी। आराधना करते-करते महीने बीत गए। इधर, यमराज रूपी नाग को कमंडल में बंद कर दिए जाने से यमलोक की सारी गतिविधियां ठप पड़ चुकी थी। इससे त्राहिमाम मच गया। इससे प्रभावित देवों ने महामाया से यमराज को मुक्त कराने की प्रार्थना की। इसके बाद महामाया के कहने पर दुल्हन ने यमराज को आजाद कर दिया तो महामाया के ही कहने पर यमराज ने उसके पति को नई जिंदगी दे दी और उसे चिरंजीवी रहने का वरदान दिया और उसे चिरंजीव कहकर पुकारा। कहा जाता है कि तबसे ही लड़के के नाम के आगे चिरंजीव लिखने की प्रथा चल निकली।
अब आयुष्मति लिखने के इतिहास पर एक नजर
जहां तक शादी के कार्ड पर दुल्हन के नाम के सामने आयुष्मति लिखने का सवाल है तो इसके पीछे भी एक कहानी है। कहा जाता है कि राजा आकाश के घर कोई संतान नहीं थी। नारद जी के कहने पर राजा ने सोने के हल से धरती का दोहन किया तो उन्हें भूमि से एक कन्या प्राप्त हुई, जिसे लेकर राजा महल की ओर चल पड़ा। महल पहुंचते ही राजा ने देखा कि वहां एक शेर खड़ा है। उसे देखकर राजा डर गए और कन्या हाथ से छूट गई, जिसे शेर ने अपने मुंह में दबा लिया। इधर, कन्या को मुंह में लेते ही शेर कमल पुष्प में परिवर्तित हो गया। उसी समय विष्णु जी प्रकट हुए और कमल को अपने हाथ से स्पर्श किया तो कमल यमराज में परिवर्तित हो गया, जबकि कन्या 25 वर्ष की खूबसूरत युवती बन गई। राजा ने उसी समय कन्या का विवाह विष्णु जी से कर दिया। यमराज ने युवती को उसी समय आयुष्मति कहकर पुकारा। कहा जाता है कि तब से ही कन्या के नाम के आगे आयुष्मति लिखने की परंपरा शुरू हो गई।