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आसुरी शक्तियों के विनाश के लिए भगवान गणेश ने लिये विविध अवतार, जानिए हर अवतार की विशेषता…

आसुरी शक्तियों के विनाश के लिए भगवान गणेश ने लिये विविध अवतार, जानिए हर अवतार की विशेषता…

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avtaar of lord ganesha : भगवान गणेश के विभिन्न अवतार : सभी देवताओं की तरह भगवान गणेश ने भी असुरी शक्तियों के विनाश के लिए विभिन्न अवतार लिए। श्रीगणेश के इन अवतारों का वर्णन गणेश पुराण, मुद्गल पुराण, गणेश अंक आदि ग्रंथो में मिलता है। जानिए श्रीगणेश के अवतारों के बारे में-

1. वक्रतुंड

वक्रतुंड का अवतार राक्षस मत्सरासुर के अंत के लिए हुआ था। मत्सरासुर को भगवान शिव से निडर होने का वरदान प्राप्त किया था। मत्सरासुर ने गुरु शुक्राचार्य से आज्ञा पा कर देवताओं पर ज़ुल्म करना शुरू कर दिया। सभी देवतागण त्राहि-त्राहि करते हुए भगवान शिव की शरण में पहुंच गए। भगवान शिव ने उन्हें गणेश के आह्वान का मार्ग दिखाया और बताया गणपति वक्रतुंड अवतार लेकर आएंगे। देवताओं ने आराधना की और गणपति ने वक्रतुंड अवतार लिया। वक्रतुंड भगवान मत्सरासुर को पराजित कर दिया। मत्सरासुर कालांतर में गणपति का भक्त हो गया।

2. एकदंत

महर्षि च्यवन ने अपने तपोबल से मद की रचना की। जो च्यवन का पुत्र कहलाया। मद ने गुरु शुक्राचार्य से दीक्षा ली। उसने देवताओं का विरोध शुरू कर दिया। मद इतना शक्तिशाली हो चुका था कि उसने भगवान शिव को भी पराजित कर दिया। सारे देवताओं ने मिलकर गणपति की आराधना की। तब भगवान गणेश एकदंत रूप में प्रकट हुए। उनकी चार भुजाएं थीं, एक दांत था, पेट बड़ा था और उनका सिर हाथी के समान था। उनके हाथ में पाश, परशु और एक खिला हुआ कमल था। एकदंत ने मदासुर को युद्ध में पराजित किया।

3. महोदर

भगवान गणेश के विभिन्न अवतार में अगला अवतार है मोहासुर। जब कार्तिकेय ने ताड़कासुर का वध किया। शुक्राचार्य ने मोहासुर नाम के दैत्य को संस्कार देकर देवताओं के खिलाफ खड़ा कर दिया। मोहासुर से मुक्ति के लिए देवताओं ने गणेश की उपासना की। तब गणेश ने महोदर अवतार लिया। महोदर का उदर यानी पेट बहुत बड़ा था। वे मूषक पर सवार होकर मोहासुर के नगर में पहुंचे तो मोहासुर ने बिना युद्ध किये ही गणपति को अपना इष्ट बना लिया।

4. गजानन

एक बार धनराज कुबेर भगवान शिव-पार्वती के दर्शन हेतु कैलाश पहुंचे। वहां पार्वती को देख कुबेर के मन में काम प्रधान लोभ जागा। उसी लोभ से लोभासुर का जन्म हुआ। वह शुक्राचार्य की शरण में गया और उसने शुक्राचार्य के आदेश पर शिव की उपासना शुरू की। शिव लोभासुर से प्रसन्न हो गए। उन्होंने उसे सबसे निर्भय होने का वरदान दिया। इसके बाद लोभासुर ने सारे लोकों पर कब्जा कर लिया और खुद शिव को भी उसके लिए कैलाश को त्यागना पड़ा। तब देवगुरु ने सारे देवताओं को गणेश की उपासना करने की सलाह दी। गणेश ने गजानन रूप में दर्शन दिए। गणेश ने लोभासुर को युद्ध के लिए संदेश भेजा। लोभासुर ने बिना युद्ध किए ही अपनी पराजय स्वीकार कर ली

5. विघ्नराज

एक बार पार्वती अपनी सखियों के साथ बातचीत के दौरान जोर से हंस पड़ीं। उनकी हंसी से एक विशाल पुरुष की उत्पत्ति हुई। उसका नाम मम (ममता) रखा गया। वह माता पार्वती से मिलने के बाद वन में तप के लिए चला गया। वहीं उसकी मुलाकात शम्बरासुर से हुई। शम्बरासुर ने उसे कई असुरी शक्तियां सिखाई। उसने मम को गणेश की उपासना करने को कहा। मम ने गणपति को प्रसन्न कर ब्रह्मांड का राज मांग लिया। शम्बर ने उसका विवाह अपनी पुत्री मोहिनी के साथ कर दिया। शुक्राचार्य ने मम के तप के बारे में सुना तो उसे दैत्यराज के पद पर विभूषित कर दिया। ममासुर ने भी अत्याचार शुरू कर दिए और सारे देवताओं के बंदी बना लिया। तब देवताओं ने गणेश की उपासना की। गणेश विघ्नराज के रूप में अवतरित हुए। उन्होंने ममासुर का अंत कर देवताओं को छुड़वाया।

6.लंबोदर

समुद्रमंथन के समय भगवान विष्णु ने जब मोहिनी रूप धरा तो शिव उन पर मोहित हो गए। उनका शुक्र स्खलित हुआ। जिससे एक काले रंग के दैत्य क्रोधासुर की उत्पत्ति हुई। क्रोधासुर ने सूर्य की उपासना करके उनसे ब्रह्मांड विजय का वरदान पा लिया। वो देवता से युद्ध करने निकल पड़ा। तब गणपति ने लंबोदर रूप धारण कर उसे समझाया वो संसार में कभी अजेय योद्धा नहीं हो सकता। क्रोधासुर ने अपना विजयी अभियान रोक दिया और सब छोड़कर पाताल लोक में चला गया।

7.विकट

भगवान गणेश के विभिन्न अवतार में अगला अवतार है कामासुर। जलंधर के विनाश के लिए भगवान विष्णु ने उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग किया। जिससे कामासुर नमक दैत्य की उत्पत्ति हुई। कामासुर ने शिव को प्रसन्न करके त्रिलोक विजय का वरदान पा लिया। इसके बाद उसने अन्य दैत्यों की तरह ही देवताओं पर अत्याचार करने शुरू कर दिए। तब सारे देवताओं ने भगवान गणेश का ध्यान किया। भगवान गणपति ने विकट रूप में अवतार लिया। भगवान मोर पर विराजित होकर अवतरित हुए। उन्होंने देवताओं को अभय वरदान देकर कामासुर को पराजित किया।

8. धूम्रवर्ण

एक बार भगवान ब्रह्मा ने सूर्यदेव को कर्म राज्य का स्वामी नियुक्त कर दिया। राजा बनते ही सूर्य को अभिमान हो गया। उनकी छींक से एक दैत्य की उत्पत्ति हुई जिसका नाम था अहम। उसने शुक्राचार्य को अपना गुरु बना लिया। वह अहम से अहंतासुर हो गया। उसने खुद का एक राज्य बसाया और भगवान गणेश को तप से प्रसन्न करके वरदान प्राप्त कर लिए। जिसके बाद उसने बहुत अत्याचार और अनाचार फैलाया। तब गणेश ने धूम्रवर्ण के रूप में अवतार लिया। उनका वर्ण धुंए जैसा था। उनके हाथ में भीषण पाश था जिससे बहुत ज्वालाएं निकलती थीं। धूम्रवर्ण ने अहंतासुर का पराजित किया। उसे युद्ध में हराकर अपनी भक्ति प्रदान की।

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