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परमात्मा बीज रूप में हमारे अंदर हैं

परमात्मा बीज रूप में हमारे अंदर हैं

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परमात्मा बीज रूप में हमारे अंदर हैं। मनुष्य के चाहे बिना वे उसकी मदद नहीं कर सकते। परमात्मा की प्राप्ति या दर्शन तक में भी वह खुद कुछ नहीं कर सकते हैं। चूंकि परमात्मा बीज रूप में हमारे अंदर हैं, अतः उन्हें खोले बिना प्राप्त करना संभव नहीं है। इसके लिए पहले ध्यान से आध्यात्मिक चेतना जगानी होगी। तभी अंदर का बीज का टूटेगा, पौधा बनेगा और फिर वृक्ष बनेगा। हमने ध्यान शुरू किया, मतलब आप परमात्मा को बीज से बाहर निकालने के रास्ते पर चल पड़े। यह कहने में जितना आसान लगता है, उतना है नहीं। क्योंकि जैसे ही हमने ध्यान लगाना शुरू किया, मन भागने लगा। ऐसा लगने लगा कि वह पहले से भी ज्यादा बेचैन हो गया है। दरअसल यह बड़ा भ्रम है। मन तो पहले भी चंचल और बेचैन था। उस समय हमारा ध्यान बाहरी जगत में होने के कारण इसे महसूस नहीं करते थे। 

शांति कैसे मिले

मन बड़ा चंचल और भ्रम में डालने वाला है। वह भ्रम में भटकता रहता है। इसलिए जो मनुष्य मन के फेर में फंसता है, झूठी उम्मीद के सहारे जीवन गुजारता रहता है। यहां तक कि मृत्यु शैया पर रहने के बाद भी मन अधूरा रहता है। हम जितना गंगा स्नान करें, पूजा करें या प्रार्थना करें मन साथ रहता है। जहां मन हावी होता है, वहां परमात्मा से हमारा संबंध नहीं जुड़ सकता। वास्तव में समस्या मनुष्य खुद होता है। उसे पता नहीं कि मुक्ति का असली मार्ग क्या और कैसा। ध्यान के बिना यह संभव ही नहीं हो सकता है। ध्यान करेंगे, तभी शांति मिलेगी और परमात्मा को पा सकेंगे।

बाहर भटकाव और भीतर मंजिल है

पाने का रास्ता सिर्फ हमारे भीतर है। बाहर तो सिर्फ भटकाव है। बाहर जो प्राप्त होता दिखता है वह अस्थिर और पाने की इच्छा बढ़ाने वाला है। उससे न शांति मिलती है और न तृप्ति। चूंकि परमात्मा बीज रूप में हमारे अंदर हैं तो हमें मुक्ति भी वहीं मिलेगी। उन्हें पाने के लिए अपनी पूरी ऊर्जा को भीतर की ओर प्रवाहित करना होगा। जब शरीर और मन की गति बंद होगी तो ऊर्जा के बाहर जाने के सारे रास्ते बंद हो जाएंगे। फिर सारी ऊर्जा की दिशा भीतर की ओर हो जाती है। भीतर महासरोवर है। उसमें समाहित होती ऊर्जा का जैसे ही उस महासरोवर से मिलन होता है। आप उसी समय परमानंद स्वरूप परमात्मा को प्राप्त कर लेते हैं।

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