Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, Dharm- adhyatm, religious, haritalika Teej, Mata Parvati, Mata Kunti, goddess Shankar, festival haritalika Teej : भविष्योत्तर पुराण के अनुसार भाद्र पद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र होता है। इस दिन गौरी-शंकर का पूजन किया जाता है। इस व्रत को कुमारी तथा सौभाग्यवती स्त्रियां ही करती हैं। अखण्ड सौभाग्य की कामना के लिए स्त्रियाँ हरतालिका तीज का विशिष्ट व्रत रखती हैं। यह व्रत भाद्र पद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को किया जाता हैं। ‘हर ‘शिव का ही एक नाम है और चूँकि शिव आराधना इस व्रत का मूलाधार है, इसलिए इसका नाम हरतालिका व्रत रखा गया। जहां तक ‘हरि ‘का सवाल है यह भगवान विष्णु का एक नाम है। ‘हरत ‘अर्थात हरण करना और ‘आलिका ‘अर्थात सखी ,सहेली। हरतालिका को लेकर भी पौराणिक कथाएँ उपलब्ध हैं जिनके अनुसार पार्वतीजी ने एक बार सखियों द्वारा ‘हरित’ यानी अपहृत होकर एक कन्दरा में इस व्रत का पालन किया था। इसलिए कालांतर में इसका नाम हरतालिका प्रसिद्ध हुआ। इस व्रत के लिए हरतालिका या हरतालिका दोनों ही शब्दों का उपयोग हैं। इसे ‘बूढ़ी तीज ‘भी कहते। इस दिन सासें बहुओं को सुहागी का सिंधारा देती हैं। बहुएं ,सास का रुपया देकर पांव छूकर आशीर्वाद लेती हैं। यह व्रत नेपाल, यूपी, बिहार, और गोरखपुर में प्रसिद्ध हैं।
पूजन परम्परा
इस दिन सुहागिनें संकल्प करके पूजा सामग्री एकत्र करके,स्नान क्रिया से निवृत होकर सारा दिन निराहार रहकर संध्या समय पुनः स्नान करके शुद्ध व सात्विक वस्त्र धारण करके माँ पार्वती की गंगा मिट्टी या संभव हो तो स्वर्ण की मूर्ति या प्रतिमा निर्मित करके संपूर्ण सामग्री से पूजा करें। एक साड़ी -ब्लाउज और सुहाग पिटारी में समस्त सुहाग की वस्तुएं रखकर माँ पार्वती के चरणों में दक्षिणा सहित चढ़ाएं तथा शिवजी को धोती और अंगोछा चढ़ाएं। जो इस व्रत का महत्वपूर्ण अंग हैं। जो बाद में एक ब्राह्मण दंपति को दे दिया जाता है और 13 प्रकार के मीठे व्यंजन अर्थात् मिष्ठान, एक थाली में सजाकर रुपयों सहित अपनी सास को देकर उनके चरण-स्पर्श करते हैं।
शास्त्रों में इस व्रत के बारे में कहा गया है कि यह व्रत संसार के सभी क्लेश, कलह और पापों से मुक्ति दिलाता है। यह शिव-पार्वती की आराधना का सौभाग्य व्रत है जो केवल सुहागिन स्त्रियां ही करती हैं। निर्जला एकादशी व्रत की तरह हरतालिका तीज का व्रत भी निराहार और निर्जल रहकर ही किया जाता है। रात्रि में शिव-गौरी पूजन किया जाता है और रात्रि जागरण की भी प्रथा है। दूसरे दिन अन्न-जल ग्रहण किया जाता है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि यह व्रत सर्वप्रथम पार्वतीजी ने भगवान शिव से विवाह करने के लिए किया था। यह भी सुखद संयोग था कि माँ पार्वती की मनोकामना इसी दिन पूर्ण हुई थी। तभी से स्त्रियां पति में अचल भक्ति हेतु और कन्याएं मनोवांछित वर की प्राप्ति हेतु यह व्रत करती हैं।
सुहागिनों का व्रत
8 प्रहर उपवास करने के बाद भोजन करने का विधान
इस व्रत में 8 प्रहर उपवास करने के बाद भोजन करने का विधान है।भविष्य पुराण के अनुसार हरतालिका तीज के दिन ही भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को ही हस्तगौरी, हरिकाली ‘और ‘कोटेश्वरी’ या ‘कोटीश्वरी’ व्रत भी किया जाता है या कहें कि हरतालिका व्रत इन नामों से भी विख्यात है, जिनमें आदि शक्ति माँ पार्वती का गौरी के रूप में पूजन होता है। वैसे भाद्र पद कृष्ण पक्ष में कजरी तीज आती है जिसमें माहेश्वरी समाज,जौ,चने और चावल के सत्तू (आटे) में घी-मेवा डालकर उसके भिन्न -भिन्न पदार्थ बनाते हैं तथा चंद्रोदय उसी का भोजन किया जाता है। इस कारण यह व्रत ‘सातुड़ी तीज ‘अथवा ‘सतवा तीज ‘कहलाता है।
महाभारत काल में कुंती ने किया था यह व्रत
महाभारत काल में इस व्रत को कुंती ने किया था, क्योंकि भगवान श्री कृष्ण ने राज्य की प्राप्ति के लिए,धन-धान्य के लिए कुंती को यह व्रत करने को कहा था। पौराणिक मान्यता यह मान्यता है कि देवी पार्वती ने भगवान शंकर को वर के रूप में प्राप्त करने के लिए हरतालिका तीज का व्रत किया था। पार्वती के पिता महाराज हिमालय अपनी पुत्री का विवाह भगवान विष्णु से कराना चाहते थे। जो सुयोग्य ,सुशील और बलशाली थे, लेकिन पार्वती भगवान शंकर से प्रेम करती थीं। वह शंकर के अलावा किसी और से विवाह नहीं करना चाहती थीं। महाराज हिमालय इस विवाह प्रस्ताव से सहमत नहीं थे। पिता के इस रवैये से रुष्ट होकर पार्वती अपनी सखियों को लेकर जंगल चली गई।
पार्वती को महल में न पाकर हिमालय चिंतित हो गए
पार्वती को महल में न पाकर राजा हिमालय बहुत चिंतित हुए। उन्होंने पार्वती की खोज में अपनी सेना को जंगल में भेज दिया, परंतु पार्वती का कहीं पता नहीं चल पाया। पार्वती घनघोर जंगल में नदी के किनारे एक शिवलिंग बनाया तथा जंगली पुष्पों, बिल्वपत्र आदि उसकी पूजा-अर्चना करने लगी। रात-दिन भूखे -प्यासे रहकर जंगल में शिवलिंग के समक्ष शिव का ध्यान करते हुए कई महीने, वर्ष गुजार दिए। 14 वर्ष की कठोर तपस्या के बाद उसकी इस अटूट भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने पार्वती की इच्छा पूरी करने का वरदान दिया। जब पार्वती शिव की अर्द्धांगिनी बनी। तब उन्होंने अपने पति से कहा कि ‘मुझे ऐसा व्रत बताइए, जिसको करने से मनुष्य की सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो तथा कुंवारी कन्याओं को इच्छित वर मिलें एवं सुहागन का सौभाग्य अमर रहें।’
भगवान शिव ने भी हरतालिका तीज का बखान किया
भगवान शिव ने भी इस हरतालिका तीज का बखान किया और व्रत का विधान बताया था। जिसको करके पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था। उन्होंने बताया, ‘सबसे प्रथम वेदी की रचना करें और केले के पत्तों का मंडप बनायें। मंडप को सुगन्धित वस्तुओं से पवित्र करें। फिर पुष्पों और धूप से मेरा पूजन करें, फिर नाना प्रकार के मिष्ठान मुझे अर्पित करें। इस प्रकार जो स्त्रियां अपने पतियों के साथ भक्तिभाव से इस व्रत को सुनती व करतीं हैं उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और सात जन्मों तक की उनकी मनोकामना पूरी होती हैं। वे भूलोक पर अनेक भोगों को प्राप्त कर सानन्द विहार करती हैं। इस कथा को सुनने मात्र से 100 वार्ष्णेय यज्ञों का फल प्राप्त होता है।
व्रत का बदलता स्वरूप
महिलाएं इस दिन निराहार या निर्जल रहकर रातभर जागकर भगवान भोलेनाथ के भजन गाती हैं, लेकिन आजकल की व्यस्ततम दिनचर्या में इतने नियम पालना संभव नहीं है। अतः कुछ महिलाएं अपने सुविधानुसार जल,चाय,दूध आदि ग्रहण करती हैं। मेहँदी भी मॉल या पार्लर में लगवा लेती हैं। जो कुछ भी हो, ये व्रत-त्योहार ही हैं जो ईश्वर के प्रति हमारी आस्था को बनाए रखते हैं। भक्त और भगवान की यह डोर श्रद्धा और विश्वास के धागे से जुड़ी हैं, जो कभी नहीं टूट सकती।
लेखिका : अन्जु सिंगड़ोदिया