Religion, spirituality : लंकापति रावण का नाम तो आपने सुना ही होगा। यह सच है कि रावण का नाम सामने आते ही उसका नकारात्मक पक्ष सबसे पहले सामने आता है, परंतु रावण में कई ऐसी अच्छाइयां थीं, जो उसके नकारात्मक पक्ष पर कहीं भारी था, जो उसके कठिन तपस्या का प्रतिफल था। अनीति, अनाचार, दंभ, काम, क्रोध, लोभ, अधर्म, राक्षसत्व से रावण को जोड़कर देखने वालों को यह भी पता होना चाहिए कि भगवान भोलेशंकर का अनन्य भक्त रावण तंत्र, मंत्र, सिद्धियों, ज्योतिष विद्या समेत कई गूढ़ विद्याओं में माहिर था।
एक रावण के जन्म के कई किस्से, आपभी जानें
महाप्रतापी रावण के जन्म के एक-दो नहीं, कई किस्से हैं। वाल्मीकि रचित रामायण,पद्मपुराण तथा श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकशिपु दूसरे जन्म में रावण और कुम्भकर्ण जे रूप में पैदा हुए। वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण पुलस्त्य मुनि का पोता अर्थात उनके पुत्र विश्वश्रवा का पुत्र था।विश्वश्रवा की वरवर्णिनी और कैकसी नामक दो पत्नियां थीं। वरवर्णिनी ने कुबेर को जन्म दिया तो डाहवश कैकसी ने अशुभ समय मे गर्भ धारण किया,जिससे रावण और कुंभकर्ण जैसे क्रूर स्वभाव वाले भयंकर राक्षस उत्पन्न हुए।
,..और अब रामचरित मानस में रावण अवतार
तुलसीदास की रामचरितमानस की बात करें तो रावण का जन्म एक शाप के कारण हुआ है। वे नारद एवं प्रतापभानु की कथाओं को रावण के जन्म का कारण बताते हैं। इसके अनुसार बात करें तो भगवान विष्णु के दर्शन हेतु सनक और सनंदन समेत कई ऋषि बैकुंठ पधारे, परंतु भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय ने दोनों को अंदर जाने से रोक दिया। इससे ऋषिगण नाराज हो गए और दोनों को शाप दिया कि तुम राक्षस हो जाओ। हालांकि, जैसे ही भगवान विष्णु को ऋषियों के आने की सूचना मिली वे तत्क्षण ऋषियों के समक्ष प्रकट हुए और उनके अनुरोध पर ऋषियों ने अपने शाप के प्रभाव को कम करते हुए कहा कि तीन जन्मों तक तुम दोनों को राक्षस योनि में रहना पड़ेगा। साथ ही यह शर्त भी रखी कि विष्णु अथवा किसी अवतारी पुरुष से मरने पर ही तुम्हें शाप से मुक्ति मिल सकेगी। यही शाप राक्षस राज लंकापति की जन्म की आदि गाथा है।
शापित जय-विजय किस युग में क्या बने, क्योंकि इनसे ही जुड़ी है रावण और कुम्भकर्ण की कहानी
भगवान विष्णु के ये दोनों द्वारपाल जय और विजय शाप के बाद अपने पहले जन्मदिन हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु नाम के राक्षस हुए। हिरण्याक्ष बहुत शक्तिशाली था और उसने पृथ्वी उठाकर पाताल लोक में पहुंचा दिया था। अंततः भगवान विष्णु को वराह अवतार धारण करना पड़ा और उन्होंने उसका वध कर पृथ्वी को मुक्त कराया। इसी तरह हिरण्यकशिपु भी काफी ताकतवर था। भगवान विष्णु द्वारा अपने भाई हिरण्याक्ष का वध करने की वजह से वह घोर विष्णु विरोधी था। यही कारण था कि उसने अपने विष्णु भक्त प्रह्लाद तक को मरवाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी थी। तब उसका संहार करने के लिए भगवान विष्णु को नृसिंह अवतार लेना पड़ा। त्रेतायुग में दोनों रावण और कुंभकर्ण के रूप में पैदा हुए और द्वापर युग में जब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया, तब दोनों शिशुपाल और दंतवक्त्र के रूप में पैदा हुए।