रावण वाणी: भाग 4 (समाप्त)
गिरी हुई दिवारें मैं फिर बना दूंगा।
मेरी लंका है मैं फिर सजा दूंगा
मैं घायल शेर सा खतरनाक हूं।
मेरे दोस्त दहाड़ूंगा तो पूरा शहर हिला दूंगा।।
सर जो काटा एक तो फिर आ जाएगा। अगर रावण बुरा है, तो अब अंधकार के तरह छा जाएगा।।
ढोल नगाड़े शोर शराबा और कुछ बंदर भी साथ लाया है।
मुझे मिटाने वन के राम सामने दुशासन आया है।।
दुनिया को अच्छाई का पाठ पढ़ाने आया है। तू क्या है झांक अपने अंदर जो मुझे जलाने आया है।।
क्यों भूल गया की तूने द्रोपदी को भरी सभा में घसीटा था।
एक राजा ने एक राजा से उसकी औरत को जीता था।।
हां गलत किया हमने जो माता सीता को उठाकर लाया था।
तो क्या हुआ उन सितावो का क्या जिन्हें तुमने नोच कर खाया था।।
ना तू राम सा न्यायाधीश, ना तू राम सा भाई है।
तो फिर क्यों तुने राक्षस राजा तक आने की हिम्मत दिखाई है।
ना श्री राम सा दयावान ना श्री राम सा तेज है तुझ में।
अरे ना जाने तुझ जैसे कितने दुशासन कैद हैं मुझ में।।
खेलकर जुआ जो अपने औरत को दांव पर लगता है।
वो युधिष्ठिर आज दुनिया में धर्मराज कहलाता है।।
और यह नीचे समाज मुझ रावण का पुतला जलाता है।
हां मैं बता दू ना मैं नर हूं ना नारायण हूं, दस शिर वाला दानव हूं।। अरे मैं परम पूजनीय पंडित मैं महाकाल का तांडव हूं।।
अब तू नज़रें उठा और आगे बढ़ मुझ पर वार कर दिखा दे। पूरी दुनिया का कैसे दुशासन बनेगा श्रीराम मुझ लंका पति को मार के।।
और यह ग्रह नक्षत्र राहु केतु मैं अपनी उंगलियों पर गिनता हूं। अरे मुझे जलाने का हक मैं तुझ दुशासन से छिनता हूं।।
राक्षस राज रावण मैं महाकाल पर जीता हूं। यह मौत मृत्यु जीवन असत्य की चिलम फूक कर पीता हूं।।
ना मैं कोई कांड हूं ना कोई कर्म हूं।
मैं सदियों से चली आ रही एक रीत हूं।।
मैं फिर कहता हूं। तुम सब राम बन जाओ मैं रावण ही ठीक हूं।।
अब तक जो किया वह काफी नहीं है मेरे दोस्त। और इस रावण के दरबार में धोखा की कोई माफी नहीं है मेरे दोस्त।।
मैं फिर कहता हूं। तुम सब राम बन जाओ मैं रावण ही ठीक हूं।।
जय महाकाल जय
रचयिता: डीएन मणि