Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, Dharm- adhyatm, dharm adhyatm, religious, Kalighat Kolkata, Kali temple Kalighat Kolkata: कालीघाट काली मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। हिन्दू धर्म के पुराण बताते हैं कि जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किये वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आ गये। ये अत्यन्त पावन तीर्थस्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का विस्तारपूर्वक वर्णन है।
काली घाट का यह काली मंदिर भी एक शक्तिपीठ माना जाता है। यहां सती के दायें पांव की 04 अंगुलियां (अंगूठा छोड़ कर) गिरी थीं। यहां की शक्ति ‘कालिका’ व भैरव ‘नकुलेश’ हैं। इस पीठ में काली की भव्य प्रतिमा मौजूद है, जिनकी लम्बी लाल जिह्वा मुख से बाहर निकली है। मंदिर में त्रिनयना माता रक्ताम्बरा, मुण्डमालिनी, मुक्तकेशी भी विराजमान हैं। समीप ही नकुलेश का भी मंदिर है।
कालीघाट मंदिर में देवी की प्रतिमा में मां काली का मस्तक और चार हाथ नजर आते हैं। यह प्रतिमा एक चौकोर काले पत्थर को तराश कर तैयार की गयी है। यहां मां काली की जीभ काफी लम्बी है, जो सोने की बनी हुई है और बाहर निकली हुई है। दांत भी सोने के हैं। आंखें तथा सिर गेरुआ सिन्दूर के रंग से बने हैं और माथे पर तिलक भी गेरुआ सिन्दूर का है। प्रतिमा के हाथ स्वर्ण आभूषणों और गला लाल पुष्प की माला से सुसज्जित है।
अष्टमी को विशेष पूजा
मंदिर में “कुंडूपुकर” नामक एक पवित्र तालाब है, जो मंदिर परिसर के दक्षिण पूर्व कोने में स्थित है। इस तालाब के पानी को गंगा के समान पवित्र माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि पानी में स्नान मात्र से हर मन्नत पूरी करने की शक्ति होती है। यहां मां कालिका के अलावा शीतला, षष्ठी और मंगलाचंडी के भी स्थान हैं।
मंगलवार और शानिवार के साथ अष्टमी को विशेष पूजा की जाती है और भक्तों की भीड़ भी बहुत ज्यादा होती है। बताते हैं कि यह मंदिर सुबह 05 बजे से रात्रि 10:30 तक खुला रहता है। बीच में दोपहर में यह मंदिर 02 से 05 बजे तक बंद कर दिया जाता है। इस अवधि में भोग लगाया जाता है। सुबह 04 बजे मंगला आरती होती है। भक्तों के लिए मंदिर सुबह 05 बजे ही खोला जाता है।
नित्य पूजा : सुबह 5:30 बजे से 7:00 बजे
भोग राग : दोपहर 2:30 बजे से 3:30 बजे
संध्या आरती : शाम 6:30 बजे से 7:00 बजे
एक प्रचलित पौराणिक कथा है। एक बार एक भक्त ने भागीरथ नदी से प्रकाश की उज्ज्वल किरण देखी। उसने प्रकाश स्थित किया और एक मानव पैर की उंगली के रूप में पत्थर के टुकड़े की खोज की। इसके आसपास के क्षेत्र में उन्होंने नकुलेश्वर भैरव का एक स्वयम्भू लिंगम पाया। इन छवियों को उसने छोटे से मंदिर में रखा और जंगल में इनकी पूजा करने लगा। मंदिर की लोकप्रियता समय के साथ बढ़ती गयी और इस तरह कालीघाट मंदिर को मान्यता मिल गयी।
लोगों का मानना है कि सच्चे मन से यहां आकर जो मुराद मांगें, पूरी हो जाती है। लोग मां काली के दर्शन को आते हैं। 51 शक्तिपीठों में से प्रमुख कालीघाट के बारे में मान्यता है कि यहां मां काली जाग्रत अवस्था में हैं, जहां पूरे बंगाल में काली पूजा के दिन देवी काली की आराधना होती है।
कोलकाता की दुर्गा पूजा देशभर में प्रसिद्ध
शक्ति की अधिष्ठात्री मां दुर्गे की आराधना और उत्सव का पर्व दशहरा हर बड़े शहर एवं महानगरों में धूमधाम मनाया जाता है। लेकिन, इस पर्व की रौनक और भव्यता के मामले में कोलकाता अग्रणी है। महानगर कोलकाता में आयोजित दुर्गा पूजा देशभर में प्रसिद्द है। यहां के पूजा पंडालों की भव्यता अद्वितीय और अद्भुत होती है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। कोलकाता में दुर्गा पूजा की एक और विशेषता यह होती है कि पूजा के विहंगम दृश्य में आधुनिकता के साथ-साथ प्राचीन परम्पराओं और भक्ति, आस्था का का अद्भुत संगम होता है। सम्पूर्ण महानगर इस भक्ति के सागर में डूब जाता है और ऐसा प्रतीत होता है जैसे देवी दुर्गा साक्षात प्रकट हो गयी हों। प्रायः पूजा पंडाल भी किसी न किसी थीम पर आधारित होते हैं, जो श्रद्धालुओं को काफी आकर्षित करते हैं।
प्राचीन मंदिरों में होती है परम्परागत पूजा
यहां के अनेक प्राचीन मंदिरों में भी परम्परागत तरीके से पूजा होती है। यहां श्रद्धालुओं की भी अपार भीड़ होती है। कोलकाता का एक ऐसा ही प्रसिद्ध काली मंदिर है, जिसे कालीघाट के नाम से जाना जाता है। देश भर के 51 शक्तिपीठों में से एक कालीघाट को भारत का सबसे सिद्ध काली मंदिर माना जाता है। इस शक्तिपीठ के प्रति श्रद्धालुओं में असीम आस्था है।
सती के दाहिने पांव का अंगूठा गिरा था यहां
पौराणिक कथाओं की मानें, तो कोलकाता के काली मंदिर वाले पवित्र स्थल पर माता सती के दाहिने पांव का अंगूठा गिरा था। तभी से यह शक्तिपीठ के रूप में स्थापित है। कालीघाट मंदिर का निर्माण 1809 ई में हुआ था। इस मंदिर का निर्माण कार्य शहर के प्रसिद्ध व्यवसायी स्वर्ण राय की सहायता से पूरा किया गया। इस शक्तिपीठ में स्थापित देवी की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कामदेव ब्रह्मचारी ने की थी। प्रचंड रूपवाली मां काली की यह प्रतिमा अद्भुत है। यह मंदिर पहले हुगली नदी भागीरथी के किनारे हुआ करता था। कालांतर में भागीरथी दूर होती चली गयी। अब मंदिर आदि गंगा नहर के किनारे स्थित हैं, जो अंततः हुगली नदी में जाकर मिलती है। अभिप्राय यह कि यहां का माहात्म्य बहुत है और उतनी ही प्रबल है लोगों की आस्था।