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आदिकाल में उठते सवाल
ये प्रश्न आदिकाल से मानव मन को मथते रहे हैं। कठोपनिषद में भी इस प्रश्न को मथा गया है। नचिकेता की कथा में इसे देख सकते हैं। इसे मतांतर से भी देखें। नास्तिकतावाद आत्मा या पुनर्जन्म की अवधारणा का खंडन करता है। महर्षि चार्वाक इसके उदाहरण हैं। उनके विचार में मृत्यु के बाद कुछ नहीं बचता है। जो है वह इसी जीवन में है।
आज की चर्चा सत्य की खोज में
आज की चर्चा इसी सत्य की खोज में है। सत्य की सत्ता अनंत है। हर पथिक की सीमा होती है। मेरी भी एक सीमा है। मंजिल की तलाश में यात्रा जारी है। मुझसे आगे कई लोग जा चुके हैं। कई पीछे से आने वाले हैं। कई लोग साथ चल रहे हैं। उनमें कई दृश्य-अदृश्य पथिकों के बीच मैंने जो सत्य समझा इसे बताने की चेष्टा करूंगा।
प्रचंड ऊर्जा का सूक्ष्मतम रूप है आत्मा
मुझे कई लोग सवाल उठाते दिखे। क्या भगवान की फैक्ट्री में आत्मा बनती है? मेरे विचार से आत्मा बनती नहीं है। क्योंकि इसका कोई रूप, गुण व आकार नहीं है। शरीर अवश्य इसका अभिव्यक्तित रूप है। शरीर के निष्प्राण होते ही प्रचंड ऊर्जा का सूक्ष्मतम रूप फिर अनंत पथ पर निकल जाता है। जाहिर है कि मैं भौतिक शरीर भर हूं।
प्राण और आत्मा एक नहीं
आज का चिंतन : मैं कौन हूं? इसमें चर्चा का केंद्र है कि क्या प्राण और आत्मा एक है? मेरा मानना है कि प्राण शरीर से अलग है। वह आत्मा का सहचर होता है। गर्भस्थ होने से लेकर शरीर के अंत तक साथ देता है। शरीर से आत्मा के निकलते ही प्राण को भी मुक्ति मिल जाती है। दोनों के अंतर को देखें। आत्मा सूक्ष्मतम आणविक इकाई मात्र है। प्राणवायु का वजन विज्ञान की कसौटी पर भी तौला गया है। यह अलग बात है कि वैज्ञानिक इसमें एकमत नहीं है। फिर भी यह सत्य है कि जीवित शरीर से निर्जीव शरीर के वजन में .30 से .70 ग्राम की कमी आती है।
आज की स्थिति में मोक्ष बेहद कठिन
आज की वर्णसंकर संस्कृति में मोक्ष बेहद कठिन है। बुरे कर्मों के फलों का भोग अंतश्चेतना के बावजूद उस शून्य में बिना शरीर के निरर्थक, निरुद्देश्य भटकाव के बीच पड़ाव की समझ गंवाकर भ्रम में अभिव्यक्ति के लिए शरीर की चाहत में तड़पती है। शरीर पाप-पुण्य का आधार माना जाता है। जैसे कर्म होते हैं वैसी योनि (शरीर) मिलती है। इसमें पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, थलचर, नभचर, जलचर सभी समाहित हैं। बाकी बातें फिर कभी..।
प्रस्तुति -योगेश नाथ झा,
सहायक संपादक, सेंटिनल, गुवाहाटी।
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