Latest Religious News: त्रेतायुग में 14 वर्ष के वनवास के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम माता सीता के साथ जब अवधपुरी वापस लौटते हैं तो इस उपलक्ष्य में अयोध्या को दुल्हन की तरह से सजाया गया और दीपोत्सव मनाया गया। इसी बीच सीताजी के मानस पटल पर एक प्रसंग कौंधा। सीता जी को याद आया कि वनगमन से पूर्व उन्होंने सरयु की धारा के समक्ष याचना की थी। इसके अनुसार जब वह पति और देवर के साथ सकुशल अवधपुरी वापस आऊंगी, तब सरयू की धारा की विधिवत रूप से पूजा अर्चना करूंगी ।
मनौती पूरी करने रात में सरयू तट पहुंची सीता माता
इस बात की याद आते ही सीता जी ने उसी समय रात्रि में लक्ष्मण को साथ लेकर सरयू नदी के तट पर गईं। सरयु की पूजा के लिए लक्ष्मण से जल लाने को कहा । सीता मैया के आदेश पर लक्ष्मण जी घड़े में जल लाने के लिए सरयू नदी में उतर गए।
अघासुर से बचाने को सीता जी ने लक्ष्मण को निगला
जिस समय लक्ष्मण जी जल भर रहे थे, उसी समय सरयू की धारा से एक अघासुर नाम का राक्षस निकला। राक्षस लक्ष्मण जी को निगलना चाहता था। तभी नदी के किनारे मौजूद मां सीता की नजर उस पर पड़ी और जबतक राक्षस लक्ष्मण जी को निगलता उसके पहले ही माता सीता ने लक्ष्मण जी को बचाने के लिए उन्हें निगल गईं ।
लक्ष्मण को निगलते ही सीता जी हुई जल में विलीन
जैसे ही माता सीता लक्ष्मण को निगलीं उसके बाद सीता जी का सारा शरीर जल बनकर गल गया। कथा के अनुसार पवन पुत्र हनुमानजी अदृश्य रूप से सीता जी के साथ सरयू तट पर मौजूद थे। जिसका आभास किसी को नहीं था। जैसे ही हनुमानजी को यह दिखा, वैसे ही सीता माता की तन रूपी जल को श्री हनुमान जी घड़े में भरकर भगवान श्रीराम के सम्मुख ले आए और पूरा वृतांत उन्होंने श्रीराम जी को सुनाया।
अघासुर को मिला था बाबा भोलेनाथ का वरदान
तब प्रभु श्रीराम ने कहा- हे पवन पुत्र मेरे हाथों तमाम राक्षसों का बध तो हो गया है, परंतु राक्षस अघरासुर मेरे हाथों से मरने वाला नहीं है। उन्होंने कहा कि इसे भगवान भोलेनाथ का वरदान प्राप्त है। इसकी मृत्यु के विषय में कहा गया है कि जब त्रेतायुग में सीता और लक्ष्मण का तन एक तत्व में बदल जायेगा, तब उसी तत्व के द्वारा इस राक्षस का बध होगा। वह तत्व रुद्रावतारी हनुमान के द्वारा अस्त्र रूप में प्रयुक्त किया जायें । प्रभु श्री राम ने आदेश दिया कि हनुमान जी इस जल को तत्काल सरयु जल में अपने हाथों से प्रवाहित कर दें। हे! रुद्रावतारी हनुमान तुम्हारे हाथों जल के सरयु के जल में मिलने से अघासुर का बध हो जायेगा और सीता तथा लक्ष्मण पुन:अपने शरीर को प्राप्त कर सकेंगे
घड़े का जल सरयू में मिलते ही अघासुर हुआ भस्म
प्रभु श्री राम के निर्देश पर हनुमान जी ने पहले जल को आदि गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित किया। उसके बाद उस जल को सरयु जल में डाल दिया। जैसे ही यह जल सरयु जल में मिला तभी नदी में भयंकर ज्वाला उठी और उसी में अघासुर जलकर भस्म हो गया। अघासुर के भस्म होते ही सरयु माता ने पुन: सीता तथा लक्ष्मण को पुनः अपने मूल स्वरूप में अवतरित किया ।