Motihari news : भगवान विश्वकर्मा का पूजनोत्सव 17 सितम्बर बुधवार को हर्षोल्लास पूर्वक मनाया जाएगा। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार बाबा विश्वकर्मा जी की पूजा का विधान वैदिक काल से ही है और वास्तु विधान के प्रसंग में उनकी अर्चना सर्वदा से होती रही है। यह सर्व विदित है कि विश्वकर्मा ने ही सर्वप्रथम स्वर्गलोक की रचना की। बाद में लंका तथा द्वारिका आदि अनेक पुरियों का निर्माण देवलोक के शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने ही किया। पुरूरवा के राज्य में जब बारह वर्षीय यज्ञ हुआ था तब वहां यज्ञशाला का निर्माण विश्वकर्मा ने ही किया था। यह जानकारी महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पांडेय ने दी।
माता का नाम था अंगीरसी
उन्होंने बताया कि सृष्टि के प्रारंभ में सर्वप्रथम भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेष शय्या पर आविर्भूत हुए। उनके नाभि कमल से ब्रह्मा दृष्टिगोचर हुए। ब्रह्मा के पुत्र धर्म तथा धर्म के पुत्र वास्तुदेव हुए। धर्म की वसु नामक स्त्री से उत्पन्न अष्ट वसुओं में से वास्तु सातवें पुत्र थे जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे,उन्हीं के पुत्र विश्वकर्मा जी हुए। इनकी माता का नाम अंगीरसी था।
पूजन करना है मंगलप्रद
सत्ययुग का स्वर्गलोक, त्रेता की लंका, द्वापर की द्वारिका तथा कलियुग का हस्तिनापुर आदि नगर विश्वकर्मा की ही रचना है। इससे यह प्रमाणित है कि धन-धान्य एवं सुख-समृद्धि चाहने वाले मनुष्यों को भगवान विश्वकर्मा का पूजन करना मंगलप्रद होता है।