Dharma adhyatma : काशी के दक्षिण में बसे शूलटंकेश्वर महादेव के घाट से टकरा कर गंगा काशी में उत्तरवाहिनी होकर प्रवेश करती हैं। भगवान शिव ने इसी स्थान पर अपने त्रिशूल से मां गंगा के वेग को रोक दिया था। माना जाता है कि शूलटंकेश्वर महादेव के दर्शन करने वाले भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। शहर से 15 किलोमीटर की दूरी पर शूलटंकेश्वर महादेव का मंदिर विराजमान है।
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माधोपुर में शूलटंकेश्वर महादेव का शिवलिंग स्थापित है
माधोपुर गांव में शूलटंकेश्वर महादेव का शिवलिंग स्थापित है। मंदिर में महादेव के अलावा हनुमान जी, मां पार्वती, भगवान गणेश, कार्तिकेय के साथ नंदी विराजमान हैं। पौराणिक मान्यता है कि भगवान शिव ने मां गंगा के वेग को शांत करने के लिए अपना त्रिशूल फेंका था। इस वजह से काशी में गंगा उत्तरवाहिनी हुईं। मंदिर के पुजारी राजेन्द्र गिरि के अनुसार पुराणों के प्रसंग बतातै हैं कि गंगा अवतरण के बाद गंगा काशी में अपने रौद्र रूप में प्रवेश करने लगीं। वह काशी को अपने साथ बहा ले जाना चाहती थीं।
नारद के अनुरोध पर भगवान शिव ने काशी के दक्षिण में ही त्रिशूल फेंक कर गंगा के वेग को रोक दिया था
नारद ऋषि के अनुरोध पर भगवान शिव ने काशी के दक्षिण में ही त्रिशूल फेंक कर गंगा के वेग को रोक दिया। भगवान शिव के त्रिशूल से मां गंगा को पीड़ा होने लगी। उन्होंने भगवान से क्षमा याचना की। भगवान शिव ने गंगा से यह वचन लिया कि वह काशी को स्पर्श करते हुए प्रवाहित होंगी। साथ ही, काशी में गंगा स्नान करनेवाले किसी भी भक्त को कोई जलीय जीव हानि नहीं पहुंचायेगा। गंगा ने जब दोनों वचन स्वीकार कर लिये, तब शिव ने अपना त्रिशूल वापस लिया।
माधेश्वर ऋषि ने किया था घोर तप
पुजारी राजेन्द्र गिरि के अनुसार मान्यता यह भी है कि माधोपुर में माधेश्वर ऋषि ने घोर तप किया था। उनसे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने दर्शन दिये और वरदान मांगने को कहा। उन्होंने कहा कि आप यहीं विराजमान हो जायें, तो स्वयंभू शिवलिंग प्रकट हुए और वह माधेश्वर महादेव कहलाये। गंगा अवतरण के समय भगवान शिव ने अपना त्रिशूल फेंका, तबसे वह शूलटंकेश्वर महादेव कहलाने लगे।