डॉ. आकांक्षा चौधरी
मैंने न कभी भेद किया-
माता कौन; विमाता कौन !
पिता की आज्ञा को शिरोधार्य किया।
शांत रहा बस सत्य कहा।
अवध में जन्मा, अवध का राम !!
मैं पहुंचा निर्जन कुटिया में-
पग पड़ते ही निरीह शिला पर
उस परित्यक्ता को स्वीकार किया।
सौम्य रहा बस प्रेम दिया।
तारणहार बना, संतन का राम!!
अस्पृश्यता के कोहरे से ढंके-
बेरों का मैंने स्वाद चखा;
बूढ़ी राह तकती आंखों को-
चैन दिया, मैंने शीतल किया।
सबमें रमा, मानस का राम !!
मैंने कहा सिय प्रिय से-
पग पथरीले झंझावात भरे;
पर पति संग रहने की मृगतृष्णा ने
सिया को मोह में बांध लिया।
दुष्ट दानवों का मोक्ष धाम !!
एक पत्नीव्रत धर्म का पालन-
वानर, भालू, रक्ष; सब समान
सबसे प्रेमवत् व्यवहार किया।
मैंने सबका सम्मान किया।
जन-जन का पालक, सबका राम !!
नैतिक मूल्यों को स्थापित कर-
राज-पाट का मोह नहीं;
कहीं सौंगध मेरे नाम से-
अवध फिर जगमग धाम हुआ।
मर्यादा पुरुषोत्तम, जय श्री राम !!