Nari Shodhana Pranayama reaches to the physical-spiritual goal : भौतिक-आध्यात्मिक लक्ष्य तक पहुंचाता है नाड़ी शोधन प्राणायाम। आवश्यकता है इसकी विधि की सही जानकारी और पूरे विश्वास व मनोयोग से उसे अपनाने की। इससे मात्र शारीरिक लाभ ही नहीं, ग्रह-नक्षत्रों को भी संतुलित कर अपने अनुकूल किया जा सकता है। योग का यह विकसित रूप है। यह इतना विकसित है कि अभी तक विज्ञान भी वहां तक नहीं पहुंच सका है। आपने नाड़ी शोधन प्राणायाम के बारे में सुना ही होगा। इस लेख में आपको इस प्राणायाम को करने का सही तरीका और इससे होने वाले शारीरिक लाभ की जानकारी दी जाएगी।
शरीर में 72 हजार से अधिक नाड़ियां, सभी का विशेष महत्व
हमारे शरीर में 72 हजार से अधिक नाड़ियां है। सभी का विशेष महत्व है। फिलहाल इनमें से मात्र दो – सूर्य व चंद्र नाड़ी की बात। नाक के बाएं छेद से जुड़ी है चंद्र नाड़ी और दाएं छेद से सूर्य नाड़ी। हम दोनों नासिकाओं (छेद) से एक साथ सांस नहीं लेते हैं। जब हम बाईं नसिका से सांस ले रहे होते हैं तो योगिक भाषा में कहा जाता है कि चंद्र स्वर चल रहा है। जब हम दाईं नसिका से सांस ले रहे होते हैं तो कहते हैं कि हमारा सूर्य स्वर चल रहा है। चंद्र स्वर शरीर में ठंडक पहुंचाती है। इससे मन शांत होता है। सूर्य स्वर गर्मी देने वाला होता है। इससे तेज बढ़ता है। नाड़ी शोधन का कार्य इन दोनों में संतुलन बनाना है। यह हमारे सिंपेथेटिक और पैरा सिंपेथेटिक नर्वस सिस्टम पर प्रभाव डालती है।
नाड़ी शोधन करने का सही तरीका
अपनी कमर को सीधा रखते हुए पद्मासन, अर्ध पद्मासन या सुखासन जिसमें भी आप सुविधा से बैठ सकें, बैठ जाएं। फिर दाहिने हाथ के अंगूठे से दाईं नसिका को बंद करें। मध्यमा से बाईं नसिका को बंद करें। तर्जनी उंगली को अपनी भौं के बीच में रख लें। अपना दायां हाथ शरीर से चिपका लें। योग में सांस लेने को पूरक, सांस छोड़ने को रेचक और सांस रोकने को कुंभक कहते हैं। जब सांस लेकर रोकी जाए तो उसे आंतरिक कुंभक और जब सांस छोड़कर रोकी जाए तो उसे बाहरी कुंभक कहते हैं। आँखों को बंद कर लें। गर्मी के मौसम में चंद्र स्वर यानी बाईं नसिका से सांस भरते हुए इसे शुरू करें। सर्दी के मौसम में सूर्य स्वर यानी दाईं नसिका से सांस लेते हुए शुरू करें।
लंबी और गहरी सांस लेकर करें प्रारंभ
लंबी और गहरी सांस लें। पूरक और रेचक का अनुपात 1: 2 रखे। अर्थात यदि सांस लेने में पांच सेकेंड का समय लगता है तो सांस छोड़ने में 10 सेकेंड का वक्त लें। अब अगर कर सकते हैं तो धीरे धीरे कुंभक करें यानी सांस भरने के बाद जितना आसानी से रोका जा सके। फिर सांस छोड़ने के बाद जितना आसानी से रुक सकते हैं रोकें। ध्यान रखें कि इसमें जबरदस्ती नहीं करनी है। वरना प्राणायाम का अर्थ ही खत्म हो जाएगा। सब कुछ सहज भाव से चलने दें। इसके आगे जा सकते हैं तो फिर कुंभक में भी पूरक से दोगुना समय लगायें यानी सांस लेने में अगर 5 सेंकेंड लगे तो कुंभक (आंतरिक) में 10 सेकेंड, फिर रेचक (सांस छोड़ना) में 10 सेकेंड फिर कुंभक (बाहरी) में 10 सेकेंड। आपको एक एक करके आगे बढ़ना है। पहले केवल सांस लें और छोड़ें। फिर सांस लेने और छोड़ने में 1 और 2 का अनुपात रखें। फिर 1, 2 और 2 के अनुपात में सांस लें, सांस रोकें और सांस छोड़ें। इसके बाद 1, 2, 2 और 2 के अनुपात में सांस लें, सांस रोकें, सांस छोड़ें, फिर सांस रोकें।
एक से सांस लेकर दूसरी से छोड़ें
बाईं नसिका से सांस लेना, दाईं से छोड़ना और फिर दाईं नसिका से सांस लेना और बाईं से छोड़ने को एक आवृति माना जाता है। इसे आपको नौ बार यानी नौ आवृति करनी है। इस पूरी आवृत्ति (प्राणायाम) को नित्य करना ह। अधिक लाभ के लिए दिन में तीन बार करें। इसे सुबह, दोपहर और शाम को कर सकते हैं। यदि इतना संभव न हो तो एक बार करना भी लाभदायक होग। ऐसे में सुबह का समय सबसे अच्छा होता है।
नाड़ी शोधन के लाभ
इस प्राणायाम से दोनों नाड़ियों का संतुलन बनता है। शरीर का तापमान संतुलित बना रहता है। साथ ही तंत्रिका प्रणाली भी सुदृढ़ होती है। इसमें कुंभक करने से ऑक्सीजन फेफड़ों के साथ ही शरीर के आखिरी हिस्सों तक पहुंचती है। इससे खून में मौजूद गंदगी बाहर निकलती है, फेफड़ों की ताकत बढ़ती है और उनके काम करने की ताकत बढ़ती है। शरीर के हर हिस्से में आक्सिजन जाने से उसमें नवीन ऊर्जा का संचार होता है। शरीर की क्षमता में वृद्धि होती है।
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