Religion and spirituality : भावनगर गुजरात में स्थित कोलियाक तट से थोड़ी दूरी पर अरब सागर में निष्कलंक महादेव मंदिर स्थित है। यहां हर दिन अरब सागर की लहरें शिवलिंगों को जल से स्नान कराती हैं। लोग पैदल ही पानी में चलकर इस मंदिर की दर्शन करने आते हैं। इसके लिए उन्हें उठने की बारिश का इंतजार करना पड़ता है। जब तेज बारिश होती है, तभी मंदिर की पताका और खम्भा दिखाई देते हैं। यह देखकर किसी को भी पता नहीं चल सकता कि पानी के नीचे समुद्र में एक प्राचीन महादेव मंदिर स्थित है। इस मंदिर में पांच स्वयंभू शिवलिंग हैं, जो भक्तों को आकर्षित करते हैं।
पाप से छुटकारा पाने के लिए पांडव श्रीकृष्ण से मिले
यह मंदिर महाभारत काल से संबंधित है। महाभारत युद्ध में पांडवों ने कौरवों को पराजित करके जीत हासिल की। युद्ध के बाद, पांडवों को एक दुःख हुआ कि उन्हें अपने आपसी रिश्तेदारों की हत्या के पाप का सामना करना पड़ रहा है। इस पाप से छुटकारा पाने के लिए पांडव भगवान श्रीकृष्ण से मिले। पाप से मुक्ति के लिए श्रीकृष्ण ने पांडवों को एक काले ध्वज और एक काली गाय सौंपी और उन्हें बताया कि जब तक ध्वज और गाय का रंग काले से सफेद नहीं हो जाता, तब तक वे समझेंगे कि उन्हें पाप से मुक्ति मिल गई है। साथ ही, श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि ऐसे स्थान पर जहां ऐसा होता है, वहां आप सभी को भगवान शिव की तपस्या भी करनी चाहिए।
पांडवों को लिंग रूप में भगवान शिव ने दिए थे दर्शन
श्री कृष्ण के कथा के अनुसार, पांचों भाइयों ने काली ध्वजा और काली गाय के पीछे चलते हुए कई दिनों तक अलग-अलग स्थानों पर यात्रा की। इस दौरान, गाय और ध्वजा का रंग कभी नहीं बदला। हालांकि, जब वे वर्तमान गुजरात में स्थित कोलियाक तट पार पहुंचे, तो गाय और ध्वजा का रंग सफेद हो गया। इससे पांचों पांडव भाई बहुत खुश हुए और उन्होंने वहीं पर भगवान शिव का ध्यान करते हुए तपस्या शुरू की। भगवान भोले नाथ ने उनकी तपस्या को प्रसन्नता से देखा और पांचों भाइयों को अलग-अलग रूपों में शिवलिंग का दर्शन कराया। वे पांच शिवलिंग अभी भी वहीं स्थित हैं और उनके सामने नंदी की प्रतिमा भी है। इन पांच शिवलिंगों का निर्माण एक वर्गाकार चबूतरे पर हुआ है और यह कोलियाक समुद्र तट से पूर्व की ओर 3 किलोमीटर की दूरी पर अरब सागर में स्थित है। इस चबूतरे पर एक छोटा सा पानी का तालाब भी है, जिसे पांडव तालाब कहा जाता है।
भादो महीने की अमावस को लगता है भाद्रवी मेला
यहां आकर पांडवों ने अपने भाइयों के कलंक से मुक्ति प्राप्त की थी, जिसके कारण इसे निष्कलंक महादेव कहा जाता है। भादो माह की अमावसा को यहां पर मेला आयोजित होता है, जिसे भाद्रवी मेला कहा जाता है। अमावसा के दिन इस मंदिर में भक्तों की विशेष भीड़ आती है। हालांकि, पूर्णिमा और अमावसा के दिन ज्वार अधिक सक्रिय रहता है, फिर भी श्रद्धालु उसके अनुरूप इंतजार करते हैं और फिर भगवान शिव की दर्शन करते हैं।
चिता की राख से लिंग पर लगाने से मिलता है मोक्ष
शिवलिंग पर चिता की राख और जल का प्रयोग करके मोक्ष प्राप्ति के विषय में लोगों की मान्यता है। भगवान शिव के मंदिर में उन्हें राख, दूध, दही और नारियल चढ़ाए जाते हैं। वार्षिक भाद्रवी भावनगर मेले की शुरुआत महाराजा के वंशजों द्वारा फहराए जाने वाले मंदिर के ध्वज से होती है और यही ध्वज अगले साल तक मंदिर में लहराता रहता है। एक अद्भुत बात यह है कि इस ध्वज को एक साल तक लगे रहने के बावजूद कभी नुकसान नहीं हुआ है। यहां तक कि 2001 के विनाशकारी भूकंप के समय भी, जब इस क्षेत्र में 50,000 लोगों की मौत हुई थी, ध्वज को कोई क्षति नहीं पहुंची। यदि आप प्राकृतिक विचित्रता के प्रेमी हैं, तो यह आपके लिए सटीक स्थान है, और यदि आपमें भोलेनाथ के प्रति श्रद्धा है, तो यह स्थान आपके लिए स्वर्ग से कम नहीं है।