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Ramayan: मां सीता का मुक्त होना और अग्नि परीक्षा 

Ramayan: मां सीता का मुक्त होना और अग्नि परीक्षा 

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हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता…धरा से निकल कर धरा में समाने तक हैं माता सीता के अनेक प्रेरक दृष्टांत ! (3) 

Ramayan: Mother Sita’s liberation and the ordeal, dharm, religious, Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, jyotish Shastra, dharmik totke, dharm adhyatm : माता सीता को सारी सूचनाएं त्रिजटा के माध्यम से ही मिलती रहीं  कि किस प्रकार श्रीराम ने वानर सेना सहित लंका पर चढ़ाई कर दी हैं। एक-एक करके रावण के सभी योद्धा व भाई-बंधु मारे गयेशव अंत में रावण का भी अंत हो गया। तब लंका के नये राजा विभीषण द्वारा माता सीता को सम्मान सहित मुक्त कर दिया गया। प्रचलित मान्यता के अनुसार माता सीता लंका में एक वर्ष से कुछ ज्यादा समय तक रही थीं। जब माता सीता श्रीराम के पास आयीं, तो उन्हें अग्नि परीक्षा देने को कहा गया। दरअसल, वह सीता असली सीता की केवल परछाई मात्र थी। असली सीता तो रावण द्वारा हरण किये जाने से पहले ही अग्नि देव के पास चली गयी थीं। तब अग्नि परीक्षा द्वारा माता सीता पुनः वापस आयीं व श्रीराम के साथ अयोध्या लौट गयीं।

जगत जननी सीता का वन जाने का निर्णय 

अयोध्या लौटने के पश्चात श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ तथा माता सीता वहां की प्रमुख महारानी बन गयी। सब कुछ हंसी-खुशी चल रहा था कि अचानक उन्होंने देखा कि श्रीराम बहुत उदास रहने लगे हैं। तब उन्होंने अपने गुप्तचरों के माध्यम से पता किया कि वह क्यों उदास हैं। अपने गुप्तचरों के माध्यम से उन्हें पता चला कि प्रजा में उनके चरित्र को लेकर संदेह किया जा रहा है। वे माता सीता के लंका में एक वर्ष तक रहने पर श्रीराम द्वारा उनका त्याग कर दिये जाने की बात कह रहे हैं। यह सुन कर माता सीता बहुत निराश हो गयीं। वह श्रीराम के पास गयीं तथा स्वयं का त्याग करने को कहा। इस पर श्रीराम विचलित हो गये तथा स्वयं उनके साथ वनवास में जाने का कहने लगे। तब माता सीता ने उन्हें राजधर्म समझाया व अकेले वनवास जाने का निर्णय लिया।

वाल्मीकि आश्रम जाना और दो पुत्रों का जन्म देना 

माता सीता को वन में छोड़ने का उत्तरदायित्व उनके देवर लक्ष्मण को मिला। लक्ष्मण उन्हें वन में अकेला नहीं जाने दे रहे थे तथा स्वयं पुत्र की भांति उनकी सेवा करने का हठ कर रहे थे। तब माता सीता ने लक्ष्मण के आगे एक सीता रेखा खींची तथा उसे लांघने से मना किया। इसके बाद माता सीता वहां से आगे पैदल चल कर वाल्मीकि के आश्रम में चली गयीं। वहां उन्होंने अपना परिचय एक साधारण महिला के रूप में दिया तथा सभी उन्हें वनदेवी के नाम से जानने लगे। जब वह वन में गयी थीं, तब वह गर्भवती थीं तथा वहां जाकर उन्होंने दो पुत्रों लव व कुश को जन्म दिया।

माता सीता का लवकुश पर क्रोध 

अपने पुत्रों के जन्म के बाद माता सीता ने उनका अच्छे से पालन-पोषण किया। महर्षि वाल्मीकि द्वारा उनके पुत्रों को शस्त्र व संगीत की शिक्षा दी गयी। उन्होंने गुरु वाल्मीकि के अलावा आश्रम में किसी को भी अपना असली परिचय नहीं दिया था, यहां तक कि अपने पुत्रों को भी नहीं।

एक दिन जब वह पूजा करके लौटीं, तो उनके पुत्रों ने उन्हें बताया कि उनका श्रीराम की सेना के साथ युद्ध हुआ था। इस युद्ध में उन्होंने श्रीराम की सारी सेना को हरा दिया था। जब उनका श्रीराम से युद्ध होने लगा, तब महर्षि वाल्मीकि ने आकर युद्ध रुकवा दिया। यह सुन कर माता सीता जोर-जोर से विलाप करने लगीं तथा सभी को सत्य से अवगत करा दिया। उन्होंने अपने दोनों पुत्रों व आश्रम में सभी को बता दिया कि वह ही अयोध्या की महारानी सीता हैं तथा श्रीराम उनके पति। लवकुश को पता चल चुका था कि जिससे वे युद्ध करने वाले थे, वे स्वयं उनके पिता हैं।

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