Spirituality : कहते हैं मुसीबत की घड़ी में जो साथ देता है देव तुल्य बन जाता है, देवी स्वरूपा बन जाती है। रामचरितमानस में त्रिजटा की मौजूदगी भले ही एक राक्षसी के रूप में रही हो, परंतु माता सीता के लिए वह देवी रूपा थी। एक राक्षसी होते हुए भी उसने जिस हद तक आगे बढ़कर मां वैदेही की सेवा-सुश्रुषा की, उनकी रक्षा की, सुरक्षा प्रदान किया, रावण की मायावी दुनिया के बीच उनका संबल बनी रही, वह अद्वितीय है। आइये आज के इस अंक में हम त्रिजटा के उस स्वरूप को जानें, जिसमें उसने राक्षसी कुल की होकर भी अप्रत्यक्ष रूप से भगवान श्रीराम व माता सीता की सहायता की। यह सर्वविदित है कि रावण के छोटे भाई विभीषण ने प्रत्यक्ष रूप से भगवान श्रीराम का साथ दिया था तो त्रिजटा ने एक गुप्तचर की भांति रावण के महल में रहकर सीता की मददगार बनी रही। आइये त्रिजटा के इस स्वरूप को और नजदीक से जानें…
एक मां की तरह त्रिजटा ने उनकी देखरेख की
जब रावण माता सीता को पंचवटी से छल से उठा लाया था, माता सीता अत्यंत दुखी थीं। राक्षसों के बीच उनका मन अत्यंत व्याकुल था। वह लगातार विलाप कर रही थीं, किंतु त्रिजटा ने अपनी सूझ-बूझ से उस स्थिति को ऐसा संभाला कि विपदा की घड़ी में माता सीता को जीने का एक बहाना मिल गया। एक सच्ची सहेली व एक मां की तरह त्रिजटा ने उनकी देखरेख की।
राक्षसनियों को सपना की बात त्रिजटा ने बताई
जब रावण माता सीता का अपहरण कर अशोक वाटिका लाया तो उसनें सभी राक्षसियों को आदेश दिया था कि किसी भी प्रकार से सीता को उनसे विवाह करवाने के लिए मनाया जाये। चाहे इसके लिए उन्हें कुछ भी करना पड़े। तब रावण के जाने के बाद सभी राक्षसियां सीता को तंग करने लगीं व उन पर रावण से विवाह करने के लिए दबाव बढ़ाने लगी। ऐसे में त्रिजटा आगे आई व सभी राक्षसियों को पिछली रात आए एक स्वप्न की चर्चा की। उसने बताया कि किस प्रकार भगवान श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ ऐरावत हाथी पर बैठकर आते है व माता सीता को ले जाते है। वे रावण का अंत कर देते हैं व रावण एक समुंद्र में डूबकर मर रहा होता है। त्रिजटा सभी राक्षसियों के मन में यह डर बिठा देती हैं कि एक दिन रावण का अंत होगा व भगवान श्रीराम माता सीता को ले जायेंगे और यदि वे उन्हें तंग करेंगी तो राम एक दिन सभी को दंड देंगे। इससे डरकर सभी राक्षसियां उन्हें तंग करना बंद कर देती हैं।
संकट में सीता को हिम्मत देती रही त्रिजटा
सीता अत्यंत दुखी थीं। उन्हें भगवान श्रीराम व लक्ष्मण का कोई संदेश भी प्राप्त नहीं हो रहा था। उन्हें यह भी उम्मीद नहीं थी कि उन्हें ढूंढ निकाला जाएगा, क्योंकि रावण उन्हें समुद्र पार कर लाया था। उनकी हिम्मत टूटने लगी थी। कई बार उनके मन में अपने शरीर के त्याग का भी विचार आया, जिसका जिक्र उन्होंने त्रिजटा से भी किया, लेकिन त्रिजटा उनकी हिम्मत बंधाती रही व कहती रही कि एक दिन राम अवश्य आएंगे व उन्हें रावण के चंगुल से मुक्ति दिलाएंगे।
युद्ध की पल-पल की जानकारी देती थी
वैसे तो त्रिजटा रावण की सेविका थी, किंतु वह गुप्त रूप से सीता के पास हर महत्वपूर्ण जानकारी पहुंचाया करती थी। जब भगवान राम लंका पर पुल बनाने लगे, हनुमान ने लंका में आग लगा दी, रावण के कई पुत्र, योद्धा आदि युद्ध में मारे गए तब त्रिजटा अपने सूत्रों से यह जानकारी लेकर तुरंत उन्हें सीता तक पहुंचाती थी, ताकि उनकी हिम्मत बनी रहें। भगवान श्रीराम के द्वारा किये जा रहे हर कार्य व युद्ध के परिणाम माता सीता तक पहुंचाने का कार्य त्रिजटा ही करती थी।
जब त्रिजटा ने बताया राम – लक्ष्मण जिंदा हैं
जब मेघनाथ ने अपने नागपाश में भगवान श्रीराम व लक्ष्मण को बांध दिया, तब पूरी लंका में यह बात फैल गई कि राम व लक्ष्मण युद्ध में मारे गए। यह बात रावण ने सीता तक भी पहुंचाई। यह सुनकर सीता प्रलाप करने लगीं। तब त्रिजटा ने ही अपने सूत्रों के हवाले से बताता कि दोनों जीवित हैं। गरुड़ देव ने दोनों को नागपाश से मुक्ति दिलाई है।
अधीर हो चुकी सीता को सच्चाई बताई
जब रावण युद्ध में लगातार अपने सगे-संबंधियों व बड़े-बड़े योद्धाओं को खो रहा था व सीता भी उससे विवाह के लिए तैयार नही हुई थीं, तब उसने माया का सहारा लेकर भगवान श्रीराम का कटा हुआ नकली सिर लेकर सीता के सामने पहुंचा व बताया कि उसने राम को युद्ध में मार गिराया है। यह देख सीता के दुख की सीमा नहीं। इसके बाद सीता ने फिर त्रिजटा से आत्महत्या कर लेने की बात कही। इस बार भी त्रिजटा ने उन्हें सत्य से अवगत कराया।