Pokhu Devta ka mandir, devbhumi Uttrakhand, uttarkashi : हिंदू धर्म में अनेक देवी- देवताओं की पूजा की जाती है। इन देवताओं के दर्शन के लिए उनके मंदिरों में भक्त जाते हैं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं, जहां भक्त देवता के सामने जाने की बजाय उनकी पीठ की ओर से दर्शन और पूजन करते हैं। यह मंदिर देवभूमि उत्तराखंड में स्थित है। उन्हें न्याय का देवता माना जाता है। यहां देवता के चेहरे की बजाय उनकी पीठ के दर्शन करने का रिवाज है। इस मंदिर में कई सदियों से यह मान्यता है कि जो लोग यहां हाजिरी देते हैं, उन्हें अविलंब न्याय की प्राप्ति होती है।
उत्तरकाशी के छोटे-से कस्बे नैटवाड़ में है यह मंदिर
पोखूवीर मंदिर उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के नैटवाड़ गांव में स्थित है। यह प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मंदिर भगवान पोखूवीर को समर्पित है, जिन्हें यहां न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है। यहां ऐसा विश्वास है कि जो भी व्यक्ति इस मंदिर में न्याय की मांग करता है, वे उसके मामले का निष्पक्ष और सही न्याय करते हैं। हालांकि, पोखूवीर देवता के मुख को यहां नहीं देखा जाता है। मान्यता है कि पोखूवीर मंदिर में देवता के प्रतीक का ऊपरी भाग मौजूद है, जबकि उनका मुंह पाताल में है। वे यहां उलटे और नग्न स्वरूप में प्रतिष्ठित हैं। इसलिए, पोखूवीर देवता को इस स्थिति में देखना अनुचित माना जाता है और इसलिए मंदिर के पूजारियों और श्रद्धालुओं को देवता की पीठ के प्रति समर्पित होकर पूजा करनी चाहिए।
पोखु देवता कर्ण के प्रतिनिधि और शिव के सेवक हैं
पोखु देवता मंदिर के संबंध में मान्यता है कि पोखू देवता कर्ण के प्रतिनिधि हैं और भगवान शिव के सेवक हैं। उनका स्वरूप डरावना होने के साथ ही उनका स्वभाव कठोर था। वे अपने भक्तों के प्रति सख्त रहते थे। इसलिए, लोग अभी भी उनके क्षेत्र में चोरी और अपराध करने से डरते हैं। यदि क्षेत्र में किसी प्रकार का संकट या मुसीबत आता है तो पोखू देवता गांव के लोगों की मदद करते हैं। पोखूवीर के प्रति लोगों की आस्था इतनी गहरी है कि पुराने समय में जब लोगों को न्याय नहीं मिलता था या वे न्याय की पेंच से बचना चाहते थे, तब वे पोखूवीर देवता से मदद मांगते थे। लोगों के अनुसार इस तरह के मामलों में पोखूवीर दोषी को किसी न किसी रूप में दंड जरूर देते हैं।
पोखूवीर से जुड़ी प्राचीन कथाएं
यूं तो पोखूवीर से जुड़ी कई कथाएं क्प्रचलित हैं। एक कथा में जहां इन्हें किरिमर नामक राक्षस से जोड़ा जाता है। वहीं, दूसरी एक प्रमुख कथा के अनुसार माना जाता है कि यही वभ्रूवाहन थे। जिनका श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध से ठीक पहले शीश काट दिया था। इस क्षेत्र की खासियत है कि यहां कई स्थानों पर कौरवों की पूजा होती है। यहां दुर्योधन का भी मंदिर है। यहां एक अन्य मंदिर में कर्ण की पूजा होती है।
पोखु देवता मंदिर की गाथा
पोखु देवता मंदिर के बारे में एक कथा और प्रचलित है।इसके अनुसार इस इलाके में महाभारत काल के दौरान किरिमर नामक राक्षस आतंक मचाया करता था। जनता की सुरक्षा के लिए राजा दुर्योधन ने राक्षस के साथ लड़ाई लड़ी और इस युद्ध में राक्षस हार गया। दुर्योधन ने उसकी गर्दन काटकर टोंस नदी में फेंक दी। इसके बावजूद, राक्षस का सिर नदी की प्रवाह की बजाय उल्टे दिशा में बहने लगा और उसका सिर रुपिन और सुपिन नदी के संगम में ठहर गया। दुर्योधन ने जब राक्षस के सिर को ठहरते हुए देखा तो उन्होंने उसे वहीं स्थापित कर दिया और उस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण किया गया, जो आजकल पोखुवीर के नाम से प्रसिद्ध है।
यह भी कथा जान लीजिए
पोखु देवता मंदिर से जुड़ी एक और अद्भुत कथा सुनाई जाती है। इस कथा के अनुसार किरिमर राक्षस की बजाय वर्भुवाहन नामक एक प्राणी था। श्रीकृष्ण भगवान ने महाभारत युद्ध से पहले ही उसका सिर काट दिया था। यह क्षेत्र अपनी विशेषता के लिए प्रसिद्ध है, क्योंकि यहां कई स्थानों पर कौरवों की पूजा की जाती है और इसी क्षेत्र में दुर्योधन का मंदिर भी स्थापित है, जबकि अन्य मंदिरों में कर्ण की पूजा की जाती है।