Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, Dharm-Adhyatm : जब भी बात श्री रामचरित मानस और महाराज दशरथ की रानियों में से एक कैकेयी का प्रसंग आता है, कैकेयी के कोप भवन में जाने की बात सहसा सामने आ जाती है। कोप भवन का तब कितना प्रभाव हुआ करता था, रामायण को थोड़ा भी जानने वालों को पता है। कोप का अर्थ है क्रोध या दुःख में रोना।आखिर कोप भवन का राज क्या था और यह क्यों बनाये जाते थे, आज आज हम इसी विषय पर चर्चा कर रहे हैं।
क्रोध प्रकट करने कोप भवन में जाती थी रानियां
प्राचीन जमाने की बात करें तो एक राजा की कई-कई रानियां होती थी। अयोध्या नरेश राजा दशरथ की भी तीन रानियां थीं। कुछ राजाओं के पास इससे भी अधिक रानियां हुआ करती थीं। चूंकि राजा दिन भर अपने मंत्रियों, राज्य के लोगों व अन्य कामों में व्यस्त रहते थे, जिस कारण उन्हें किसी-किसी रानी से मिले महीनों बीत जाया करते थे। ऐसे में जब कोई रानी राजा से किसी बात पर नाराज़ हो जाती थी तो वह अपना क्रोध प्रकट करने के लिए सब कुछ त्याग कर कोप भवन में चली जाती थी।
सिर्फ राजा को ही जाने की होती थी इजाजत
कोप भवन का निर्माण राज महलों के पास किया जाता था, जहां चारो ओर अंधेरा होता था तथा कोई भी विशिष्ट वस्तु वहां नहीं होती थी। किसी सिपाही तक को अंदर जाने की अनुमति नही होती थी। जब कोई रानी या राज परिवार का सदस्य राजा से नाराज़ होता था तो वह उस कोप भवन में चला जाता था। यह कोप भवन मुख्यतया राजा की रानियों के लिए होता था। चूंकि राजमहल में सभी सुख-सुविधाओं की वस्तु उपलब्ध होती थी, इसलिये रानियां कोप भवन जैसी वीरान स्थल पर जाकर राजा के प्रति अपना क्रोध प्रकट करती थी।
राजा के नहीं जाने पर देह त्याग कर देती थीं रानियां
कोप भवन में जाने से पहले रानियों को अपने सभी राजसी वस्त्रों व आभूषणों का त्याग करना होता था। बिना साज – सज्जा के रानियां कोप भवन में जाती थीं। जब राजा को इस बात की जानकारी मिलती थी तो उसे उस रात रानी के पास कोपभवन में जाना अनिवार्य हो जाता था। अन्यथा रानी के द्वारा स्वयं के शरीर का त्याग भी किया जा सकता था। इन कारणों से कोप भवन का प्रभाव बहुत बढ़ जाता था। चूंकि रानियों के कोप भवन में जाने की संभावना बहुत कम होती थी, लेकिन जब भी कोई रानी कोप भवन में जाती थी तो स्वयं राजा की प्रतिष्ठा पर प्रश्न उठता था। इसी कारण राजा का कोप भवन में जाकर रानी को मनाना अत्यंत आवश्यक हो जाता था।