Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, Dharm- adhyatm, religious, raksha Bandhan : भाई-बहनों के अमर प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। बातार रंग-बिरंगी राखियों, उपहारों से पट चुका है। आखिर यह त्योहर क्यों मनाया जाता है। इसकी शुरुआत कैसे हुई। इसके पीछे की अवधारणा क्या है। आइये आज इन्हीं विषयों पर फोकस करते हैं। और सुनते हैं वह पांच कहानियां, जिसे इस त्योहार का सूत्रधार बताया गया है। ये कहानियां हैं कृष्ण और द्रौपदी, राजा बलि और मां लक्ष्मी, देवराज इंद्र और इंद्राणी, युधिष्ठिर और उनके सैनिकों तथा रानी कर्णावती और हुमायूं से जुड़ी हुई…
द्रौपदी ने अपनी लाज बचाने को पुकारा था श्रीकृष्ण को
करते हैं महाभारत की बात। शिशुपाल का वध करने के बाद जब सुदर्शन चक्र कृष्ण की अंगुली पर बैठने के लिए वापस लौटा तो उससे कृष्ण की कलाई पर भी हल्की चोट लग गई, जिससे खून बहने लगा। यह देश द्रौपदी ने फौरन अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर उसे कृष्ण की कलाई पर बांध दिया। कृष्ण ने उनका धन्यवाद किया और वचन दिया कि वे सदैव उनकी रक्षा करेंगे। कौरवों के हाथों जुए में हारे जाने के बाद जब द्रौपदी ने अपनी लाज बचाने के लिए श्रीकृष्ण से गुहार लगाई तो उन्होंने अपनी बहन के सम्मान की रक्षा कर अपना वचन निभाया।
गरीब का वेष धर लक्ष्मी पहुंची राजा बलि के पास
राजा बलि बड़े दानी राजा थे और भगवान विष्णु के भक्त थे। एक बार वे भगवान को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ कर रहे थे। अपने भक्त की परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु ने एक ब्राह्मण का वेष धरा और यज्ञ पर पहुंचकर राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी। राजा ने ब्राह्मण की मांग स्वीकार कर ली। ब्राह्मण ने पहले पग में पूरी भूमि और दूसरे पग में पूरा आकाश नाप दिया। राजा बलि समझ गए कि भगवान उनकी परीक्षा ले रहे हैं, इसलिए उन्होंने फौरन ब्राह्मण की तीसरा पग अपने सिर पर रख लिया। उन्होंने कहा कि भगवान अब तो मेरा सबकुछ चला गया है। अब आप मेरी विनती स्वीकार करें और मेरे साथ पाताल में चलकर रहें। भगवान को राजा की बात माननी पड़ी। उधर, जब विष्णु नहीं लौटें तो मां लक्ष्मी चिंतित हो उठीं। वह एक गरीब महिला का वेष धर राजा बलि के पास पहुंची और उन्हें राखी बांध दी। राखी के बदले राजा ने कुछ भी मांग लेने को कहा। मां लक्ष्मी फौरन अपने असली रूप में आ गईं और राजा से अपने पति भगवान विष्णु को वापिस लौटाने की मांग रख दी। राखी का मान रखते हुए राजा ने भगवान विष्णु को मां लक्ष्मी के साथ वापिस भेज दिया।
तब इंद्राणी ने अपने तपोबल से तैयार किया रक्षासूत्र
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार दैत्य वृत्रासुर ने इंद्र का सिंहासन हासिल करने के लिए स्वर्ग पर चढ़ाई कर दी। वृत्रासुर बहुत ताकतवर था और उसे हराना आसान नहीं था। युद्ध में देवराज इंद्र की रक्षा के लिए उनकी बहन इंद्राणी ने अपने तपोबल से एक रक्षासूत्र तैयार किया और इंद्र की कलाई पर बांध दिया। इस रक्षासूत्र ने इंद्र की रक्षा की और वह युद्ध में विजयी हुए। तभी से बहनें अपने भाइयों की रक्षा के लिए उनकी कलाई पर राखी बांधने लगीं।
युधिष्ठिर ने सैनिकों को बांधा रक्षा सूत्र
महाभारत के युद्ध के दौरान युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों से कैसे पार पा सकूंगा। इसके लिए कोई उपाय बताएं। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि वह अपने सभी सैनिकों को रक्षा सूत्र बांधें। युधिष्ठिर ने ऐसा ही किया और अपनी पूरी सेना में सभी को रक्षासूत्र बांधा। युद्ध में युधिष्ठिर की सेना विजयी हुई। इसके बाद से इस दिन को रक्षाबंधन के पर मनाया जाने लगा।
हुमायूं ने रखा राखी का मान
बात तब की है जब जब मुस्लिम आक्रमण के खिलाफ राजपूत लड़ रहे थे। इधर, पति राणा सांगा की मृत्यु के बाद मेवाड़ की बागडोर रानी कर्णावती के हाथ में थी। उस समय गुजरात के बहादुर शाह ने मेवाड़ पर दूसरी बार आक्रमण किया था। कर्णावती ने तब हुमायूं से मदद मांगने लिए उसे राखी भेजी। हुमायूं उस समय एक युद्ध के बीच में था, मगर रानी के इस कदम ने उसे भीतर से छू लिया। हुमायूं ने अपनी फौज फौरन मेवाड़ के लिए भेज दी। दुर्भाग्यवश, उसके सैनिक समय पर नहीं पहुंच पाए और चित्तौड़ में राजपूत सेना की हार हुई। रानी ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए जौहर कर लिया, लेकिन हुमायूं की सेना ने चित्तौड़ से शाह को खदेड़ कर रानी के पुत्र विक्रमजीत को गद्दी सौंप दी और अपनी राखी का मान रखा।