Dharmik kahani, kaise hua Bali sugriv ka janm : ऋष्यमूक पर्वत श्रेणियों के पर्वत पर एक विशाल बानर रहता था, जो ऋक्षराज के नाम से जाना जाता था। वह बड़ा बलवान था। इस घमंड में वह इधर से उधर विचरण किया करता था। पर्वत के पास ही एक तालाब था, जिसकी विशेषता यह थी कि अगर कोई भी उसमें स्नान करता तो वह एक अत्यंत सुंदर स्त्री बन जाता। ऋक्षराज को इसकी जानकारी नहीं थी। मस्ती-मस्ती में वह तालाब में कूद पड़ा और जैसे ही बाहर आया वह एक बहुत ही सुंदर युवती के रूप में परिणत हो चुका था। इस बीच देवराज इंद्र और सूर्य की नजर जब इस रूपवती युवती पर पड़ी तो दोनों उसपर मोहित हो गया, फिर क्या हुआ आगे पढिए…
इंद्र से उत्पन्न हुए बालि और सूर्य से सुग्रीव
आपको बता दें जैसे ही इंद्र की दृष्टि उस युवती पर पड़ी, उनका तेज स्थगित हो गया और वह उस स्त्री के बालों पर जा गिरा, जिससे बालि की उत्पत्ति हुई। थोड़ी ही देर बाद सूर्योदय होने पर सूर्य की दृष्टि भी उस पर पड़ी तो वह भी उसकी सुंदरता पर मोहित हो गए और उनका तेज भी स्खलित होकर उसकी ग्रीवा पर जा गिरा। चूंकि, तेज ग्रीवा पर गिरा था। इससे भी एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम बाली पड़ा। इस तरह बालि बड़े और सुग्रीव छोटे भाई हुए। दोनों का निवास उसी पर्वत पर था, जिसका जिक्र हम रामायण में भी करते हैं।
लाखों ऋषियों की हड्डी से बना है ऋष्यमूक पर्वत
बताया जाता है कि रावण के द्वारा सताए गए कई ऋषि एक साथ एक जगह मूक यानी कि मौन रहकर रावण का विरोध कर रहे थे। रावण जब विश्व विजय के लिए वहां से निकला तो उसकी नजर एक साथ लाखों ऋषियों पर पड़ी, जो कि एक जगह एकत्र थे। इतने ऋषियों को एक जगह इकठ्ठा देखकर रावण ने उनकी उपस्थिति का कारण जानना चाहा तो राक्षसों ने बताया कि ये आपके द्वारा सताए हुए ऋषिगण हैं, जो मौन रहकर आपका विरोध कर रहे हैं। रावण को यह बात अच्छी नहीं लगी और वह गुस्से से कांपने लगा। उसने राक्षसों को तत्काल उन सभी ऋषियों को मार डालने का आदेश दिया। राक्षसों ने ऐसा ही किया। कहते हैं, ऋषियों की हड्डियों से ही इस पर्वत का निर्माण हुआ है, जिसका नाम ऋष्यमूक पड़ा।