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असुर और राक्षस से कलयुग में लोहा लेने के लिए करें सहस्र चंडी यग्न पाठ 

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Dharma adhyatma : सत्ता बल, शरीर बल, मनोबल, शस्त्र बल, विद्या बल, धन बल आदि आवश्यक उद्देश्यों को प्राप्ति के लिए सहस्र चंडी यग्न का महत्त्व हमारे धर्म-ग्रंथों में बताया गया है। इस यग्न को सनातन समाज में देवी माहात्म्यं भी कहा जाता है। सामूहिक लोगों की अलग-अलग इच्छा शक्तियों को इस यज्ञ के माध्यम से पूरा किया जा सकता है। यदि कोई संगठन अपनी किसी एक इच्छा की पूर्ति या किसी अच्छे कार्य में विजयी होना चाहता है, तब यह सहस्र चंडी यग्न बेहद महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है। असुर और राक्षस लोगों से कलयुग में लोहा लेने के लिए इसका पाठ किया जाता है।

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पूजा विधि

मार्कण्डेय पुराण में सहस्र चंडी यग्न की पूरी विधि बतायी गयी है। सहस्र चंडी यग्न में भक्तों को दुर्गा सप्तशती के एक हजार पाठ करने होते हैं। दस पांच या सैकड़ों स्त्री पुरुष इस पाठ में शामिल किये जा सकते हैं और एक पंडाल रूपी जगह या मंदिर के आंगन में इसे किया जा सकता है। यह यग्न हर ब्राह्मण या आचार्य नहीं कर सकता है। इसके लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ करनेवाले व मां दुर्गा के अनन्य भक्त, जो पूरे नियम का पालन करता हो, ऐसा कोई विद्वान एवं पारंगत आचार्य ही करे, तो फल की प्राप्ति होती है। विधि-विधानों में चूक से मां के कोप का भाजन भी बनना पड़ सकता है, इसलिए पूरी सावधानी रखनी होती है। श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले मंत्रोच्चारण के साथ पूजन एवं पंचोपचार किया जाता है। यग्न में ध्यान लगाने के लिए इस मंत्र को उच्चारित किया जाता है।

ॐ बन्धूक कुसुमाभासां पञ्चमुण्डाधिवासिनीं।

स्फुरच्चन्द्रकलारत्न मुकुटां मुण्डमालिनीं॥

त्रिनेत्रां रक्त वसनां पीनोन्नत घटस्तनीं।

पुस्तकं चाक्षमालां च वरं चाभयकं क्रमात्॥

दधतीं संस्मरेन्नित्यमुत्तराम्नायमानितां।

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