होम

वीडियो

वेब स्टोरी

शिवजी को क्यों इतना प्रिय है श्रावण मास ? जानें कौन था बाबा का पहला कांवरिया 

IMG 20240817 WA0000

Share this:

Dharm adhyatma : श्रावण मास में भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्त्व है। इस माह में पड़नेवाले सोमवार “सावन के सोमवार” कहे जाते हैं, जिनमें स्त्रियां तथा विशेषतौर से कुंवारी युवतियां भगवान शिव के निमित्त व्रत रखती हैं। श्रावण मास भगवान शिवजी का प्रिय मास हैश्रावण अथवा सावन हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का पांचवां महीना होता है। इस माह में अनेक महत्त्वपूर्ण त्योहार मनाये जाते हैं, जिसमें ‘हरियाली तीज’, ‘रक्षा बन्धन’, ‘नाग पंचमी’ आदि प्रमुख हैं। श्रावण मास में ही पवित्र अमरनाथ यात्रा भी की जाती है।

यह भी पढ़े : पूजा-घर में नहीं रखें टूटी-फूटी वस्तुएं, देती हैं अशुभ फल

पूजा में गंगाजल के उपयोग को विशिष्ट माना जाता है

श्रावण मास में श्रद्धालु शिवजी के निमित्त व्रत और प्रतिदिन उनकी विशेष पूजा-आराधना करते हैं। शिवजी की पूजा में गंगाजल के उपयोग को विशिष्ट माना जाता है। शिवजी की पूजा-आराधना करते समय उनके पूरे परिवार अर्थात् शिवलिंग, माता पार्वती, कार्तिकेयजी, गणेशजी और उनके वाहन नन्दी की संयुक्त रूप से पूजा की जानी चाहिए। शिवजी के स्नान के लिए गंगाजल का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा कुछ लोग भांग घोंट कर भी चढ़ाते हैं। शिवजी की पूजा में लगनेवाली सामग्री में जल, दूध, दही, चीनी, घी, शहद, पंचामृत, कलावा, वस्त्र, जनेऊ, चन्दन, रोली, चावल, फूल, बिल्वपत्र, दूर्वा, फल, विजिया, आक, धूतूरा, कमल−गट्टा, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, पंचमेवा, धूप, दीप का इस्तेमाल किया जाता है।

IMG 20240817 WA0001

इस व्रत में फलाहार या पारण का कोई खास नियम नहीं

श्रावण मास के प्रथम सोमवार से व्रत को शुरू किया जाता है। प्रत्येक सोमवार को गणेशजी, शिवजी, पार्वतीजी की पूजा की जाती है। इस सोमवार व्रत से पुत्रहीन पुत्रवान और निर्धन धर्मवान होते हैं। स्त्री यदि यह व्रत करती है, तो उसके पति की शिवजी रक्षा करते हैं। सोमवार का व्रत साधारणतया दिन के तीसरे पहर तक होता है। इस व्रत में फलाहार या पारण का कोई खास नियम नहीं है, लेकिन आवश्यक है कि दिन−रात में केवल एक ही समय भोजन करें। सोमवार के व्रत में शिव−पार्वती का पूजन करना चाहिए।

एक बिल्वपत्र शिव को चढ़ाने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है

शिवजी को बेहद प्रिय श्रावण मास में देशभर के शिवालयों में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगती है तथा बम-बम भोले से मंदिर गुंजायमान होने लगते हैं। माना जाता है कि श्रावण माह में एक बिल्वपत्र शिव को चढ़ाने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है। एक अखंड बिल्वपत्र अर्पण करने से कोटि बिल्वपत्र चढ़ाने का फल प्राप्त होता है। इस मास के प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर शिवामुट्ठी चढ़ायी जाती है। इससे सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं तथा मनुष्य अपने बुरे कर्मों से मुक्ति पा सकता है। ऐसी मान्यता है कि भारत की पवित्र नदियों के जल से अभिषेक किये जाने से शिव प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं। इसलिए श्रद्धालुगण कांवड़िये के रूप में पवित्र नदियों से जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। 

IMG 20240817 WA0002

बाबा का पहला कांवरिया रावण था

माना जाता है कि पहला ‘कांवड़ियारावण था। श्रीराम ने भी भगवान शिव को कांवड चढ़ायी थी। श्रावण मास से जुड़ी विभिन्न मान्यताओं में एक मान्यता यह भी है कि इस दौरान भगवान शिव पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गये थे और वहां उनका स्वागत आर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है। इसके अलावा पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो विष निकला, उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की, लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसी से उनका नाम ‘नीलकंठ महादेव’ पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का खास महत्त्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। ‘शिवपुराण‘ में तो यहां तक उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं।

Share this:




Related Updates


Latest Updates