The Secret of flying saucer is written in Vedas : वेदों में लिखा है उड़न तश्तरी का भी रहस्य। यही कारण है कि वेदों को ज्ञान-विज्ञान का केंद्र कहा जाता है। भले ही आज के युवा और तथाकथित शिक्षित वर्ग वेदों की चर्चा कम करते हैं। विज्ञान के नाम पर वे वेदों को ढकोसला बताते हैं, लेकिन इससे वेद का महत्व कम नहीं हो सकता है। इसका ज्वलंत उदाहरण है आज के विज्ञान के लिए भी रहस्य और आकर्षण का केंद्र बनी उड़न तश्तरियां। उड़न तश्तरियां हमेशा से लोगों के आकर्षण का केंद्र रही हैं। लगातार वैज्ञानिक शोध और गंभीर खोज के बाद भी विज्ञान इसके बारे में कुछ ठोस बता पाने की स्थिति में नहीं है। वेद में इसका न सिर्फ इसका जिक्र है, अपितु इसके बारे में ठोस जानकारी भी दी गई है।
आधुनिक विद्वानों को इसकी अधिक जानकारी नहीं
सैकड़ों-हजारों प्रकाश वर्ष दूर के ग्रहों से आने वाली उड़न तश्तरियों को लेकर रहस्य बरकरार हैं। आधुनिक विद्वानों को इसकी अधिक जानकारी नहीं है। हालांकि छिट-पुट रूप में शोध का कार्य चल रहा है। कई इनके होने का दावा करते हैं तो कई इन्हें सिरे से नकार देते हैं। लेकिन, इतनी सच्चाई तो जरूर है कि दुनिया के हर देश में लोगों ने इन्हें देखने की बात कही है। कई ऐसे रहस्य हैं जिनके बारे में दुनिया के बड़े देश कुछ छिपा रहे हैं। इनमें से उड़न तश्तरी भी एक है। कई देखने वालों के अनुसार इनकी गति काफी तेज होती है। ये छोटे से लेकर काफी बड़े आकारों तक की हो सकती हैं। आधुनिक युग में उड़न तश्तरी शब्द 1940 में प्रचलन में आया। उस समय इन्हें आसमान में देखे जाने की घटनाएं काफी बढ़ गई थीं।
विभिन्न देशों की सरकार इनके अस्तित्व को नहीं मानतीं
वेदों में लिखा है उड़न तश्तरियों का रहस्य। हालांकि इसके अस्तित्व को आधिकारिक तौर पर दुनिया भर की अधिकांश देशों द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है। दूसरी ओर लोगों के इनके देखे जाने के कई रिकॉर्ड दर्ज किए गए हैं। माना जाता है की इन उड़ती वस्तुओं का संबंध परग्रही दुनिया से है क्योंकि इनके संचालन की असाधारण और प्रभावशाली क्षमता मनुष्यों द्वारा प्रयुक्त किसी भी उपकरण से बिल्कुल मेल नहीं खाती हैं। प्रत्यक्षदर्शियों के इससे जुड़े अनुभव भी पारलौकिक जैसे हैं। उड़न तश्तरियों का स्वरूप और प्रभाव दुनिया में उपलब्ध सैन्य या नागरिक उपकरणों से मेल भी नहीं खाते हैं। मानव इतिहास में प्राचीन काल से ही उड़न तश्तरियों के देखे जाने के तथ्य मिलते हैं। पिछले 60-70 वर्षों में ये अधिक प्रकाश में आई हैं। इनके अध्ययन को यूफोलॉजी कहा जाता है। ये वे लोग होते हैं जो इस प्रकार के घटनावृत्त की खोज करते हैं।
वेद में है उड़न तश्तरियों के बारे में
वेद में उड़न तश्तरी के बारे में काफी जानकारी थी। ऋग्वेद में वर्णित एक मंत्र से इस बात की पुष्टि होती है कि हमारे पास उसकी कुछ न कुछ तकनीक अवश्य मौजूद थी। मंत्र नीचे है-
अनेनो वो मरुतो यामो अस्त्वनश्वश्चिद्यमजत्यरथी:।
अनवसो अनभीशू रजस्तूर्वि रोदसी पथ्या याति साधन्।।
अर्थात- हे मरुतों! वीर सैनिकों! तुम्हारा यान, जहाज निर्विघ्न गतिकारी हो। तुम्हारा वह यान अणु शक्ति से चालित हो। यह बिना घोड़ों के, बिना सारथी के, बिना अन्न, बिना लकड़ी, कोयला या ईंधन, बिना रासों के, बिना लगाम के भूमि पर और आकाश में चल सके। कई गतियों को साधता हुआ यह विशेष रूप से और विविध प्रकार से गति कर सके। आवश्यकता है कि वेदों के ज्ञान को खोज कर उस पर अनुसंधान किया जाए। दुनिया के कई देशों में इस पर गंभीर शोध की बात कही जा रही है। दुर्भाग्य से अपने ही देश में यह उपेक्षित है।