Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, Dharm- adhyatm : रांची के बरियातू की हाउसिंग काॅलोनी क्षेत्र स्थित राम जानकी मंदिर में आयोजित शिव पुराण कथा में कथावाचक पंडित रामदेव पांडेय ने कहा कि शिव प्रकृति पुरुष हैं, अष्ट भैरव हैं, अष्ट मंगल हैं, सर्व कल्याणकारी हैं। शिव की प्रकृति आठ रूपों में बंटी है…पृथ्वी, जल, आग, हवा, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार। इन्द्रियां मन और बुद्धि भौतिक प्रकृति से हैं। यही आठ वसुधा का समान और सम्मिलित रूप ब्रह्मांड में है और जो ब्रह्मांड में है, वह इस मानव शरीर में है। इसलिए मानव शरीर और शिव लिंग को भी पिण्ड कहा जाता है।
मानव शरीर की रचना में आठ प्रकृति
मानव शरीर की रचना में आठ प्रकृति है। इसमें पांच उंगलियां और ज्ञान इन्द्रियां पांच देवता के प्रतिनिधि हैं। इस प्रकृति के जीव रूप में कामदेव के पांच बाण हैं। रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और आकाश, जो देवता, गन्धर्व, मनुष्य और पशु-पक्षी सभी जीवों में है। शिव काम कैलाश को दबा कर बैठे हैं, तो बसहा बैल धर्म को गतिमान रूप में सवारी बना कर रखे हैं। काम कैलाश पर शिव के अलावा कोई चढ़ भी नहीं सकता है, जहां आज भी ओमकार स्वयं प्रतिध्वनित होती है। गीता में कृष्ण ने भी कहा है, “मैं देवताओं में शंकर हूं, शिव के पूजन से कृष्ण सहित ब्रह्मांड के सभी देवताओं की पूजा हो जाती है। रुद्रअष्टअध्यायी के वैदिक मंत्र में गणेश, विष्णु-लक्ष्मी, इन्द्र, सूर्य, रुद्र, सोम, महामृत्युंजय देव, अग्नि, शिव सहित सभी वैदिक देवता की पूजा केवल रुद्राभिषेक करने से प्राप्त हो जाती है। इसलिए, हर व्यक्ति को साल में एक बार शिव का रुद्राभिषेक अवश्य करना चाहिए। यही काल है और स्थिति है, जो अमर है। जो अमर होगा, वही देवता आपको भी अमर करेगा।