Dharma adhyatma : जो महिलाएं मां बनना चाहती हैं या फिर जो मां बननेवाली हैं, उन महिलाओं को श्रीगोपाल अष्टकम मंत्र का रोजाना 108 बार जाप करना चाहिए। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के इस मंत्र में बहुत शक्ति होती है। हर महिला के जीवन में प्रेग्नेंसी का समय सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता है। ऐसे में महिलाओं को अच्छे-अच्छे कार्य किये जाने की सलाह दी जाती है, ताकि गर्भ में पलनेवाले बच्चे पर इसका अच्छा असर पड़ सके। कहा जाता है कि प्रेग्नेंसी के समय महिलाएं जो भी करती हैं, उसका अच्छा या बुरा असर बच्चे पर भी पड़ता है। ऐसे में अच्छी संतान की आस में प्रेग्नेंट महिलाओं को भगवान श्री कृष्ण को समर्पित श्री गोपाल अष्टकम का पाठ करना चाहिए।
भगवान श्रीकृष्ण के इस मंत्र में बहुत शक्ति
इस मंत्र का विशेष महत्त्व माना जाता है। मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के इस मंत्र में बहुत शक्ति होती है। ऐसे में जो महिलाएं मां बनना चाहती हैं या जो मां बननेवाली हैं, उन्हें श्रीगोपाल अष्टकम मंत्र का रोजाना 108 बार जाप करना चाहिए। बताया जाता है कि इस मंत्र के प्रभाव से संतान के जीवन में आनेवाली हर समस्या का अंत हो जाता है। इसलिए आज इस आर्टिकल में हम आपको श्रीगोपाल अष्टकम के बारे में बताने जा रहे हैं।
श्रीगोपालाष्टक मंत्र
भज श्रीगोपालं दीनदयालं, वचनरसालं तापहरम् ।
विहरत स्वच्छन्दं आनन्दकन्दं, श्रीव्रजचन्दं ब्रह्मपरम ।।
पूरणशशिवदनं, शोभासदनं, जित-छबिमदनं रूपवरम् ।
हलधरवरवीरं श्यामशरीरं, गुणगम्भीरं धीरधरम् ।।
राजत बनमाला, रूपविशाला, चाल मराला सुरतहरम् ।
कुण्डलधृतकरणं, गिरिवरधरणं, निज-जन शरणं कृपाकरम् ।
गोपिन कृतअंगं, ललित-त्रिभंगं, लज्जित अनंगं निरखि परम्।।
जलधरवरश्यामं, पूरणकामं, अति सुखधामं दुःखहरम्।
वृन्दावन-क्रीड़ित असुरन-पीड़ित, ब्रजतिय-व्रीड़ित रसिकवरम् ।
नूपुरध्वनिचरणं मुनिमनहरणं, तारणं-तरणं तुष्टतरम्।।
राधा-उपहार, रूप-अपारं, नीरविहारं चीरहरम् ।
कुञ्चित वरकेशं मुकुटविशेष, गोपसुवेषं, निगमवरम् ।
कोमल अतिचरणं, वेदविवरणं, जगदुद्धरणं मृदुलतरम् ।।
अकलन-मुखराजत मन्मथलाजत, किंकणीबाजत मधुरस्वरम् ।
वंशीकृतनादं, हरतविषादं, युगवरपादं तिमिरहरम् ।
भक्तन-आधीनं चरित-नवीनं, परम प्रवीनं प्रेम-परम् ।।
अतिनृत्यप्रवीरे धीरसमीरे, यमुनातीरे रासकरम् ।
कलगान अनूपं श्यामस्वरूपं, त्रिभुवनभूपं मोदभरम् ।
राधागुणगायक ब्रजसुखदायक, सुरवरनायक बेणुधरम्।।
सुन्दर मृदुहासं विपिन-विलासं कुञ्जनिवासं केलिकरम् ।
युवतीदृग-अञ्जन जनमनरञ्जन, केशीभञ्जन भारहरम्
।।
भूषण निज-भवनं गजगति गमनं, कालियदमनं नृत्यकरम्।।
गोरजमुखशोभित सुरनरलोभित, मन्मथक्षोभित दृश्यपरम्।
गोपनसहभुञ्ज विपिननिकुञ्ज, वत्सनपुञ्ज दुहिणहरम् ।।
यह छवि-तारायण लखि ‘नारायण’ भये परायण अखिल नरम्।
भज श्रीगोपालं दीनदयालं, वचनरसालं तापहरम् ।।