Dharm adhyatma : पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण और गरीब सुदामा का रिश्ता मित्रता की मिसाल मानी जाती है । इसे लेकर तमाम किवदंती प्रचलित है। आइए जानते हैं वह कथा- आखिर सुदामा निर्धन क्यों थे ?- सुदामा के इस जीवन की कई व्याख्यायें की जाती है। भौतिक दृष्टि से देखा जाये तो सुदामाजी बहुत निर्धन थे, परंतु अध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाये सुदामा जी बहुत धनवान थे। जो धन उनके पास था किसी के पास नही था। उन्हें भगवान का सखा भाव में विशेष अनुग्रह प्राप्त था। फिर भी भौतिक दृष्टि से उनकी विपन्नता आखिर क्यों थी?
भिक्षा ना मिलने पर भूखे रह जाती थी ब्राह्मणी
पौराणिक कथा के अनुसार एक ब्राह्मणी थी। जो अत्यंत निर्धन थी। वह भिच्छा माँग कर अपना जीवन यापन करती थी। यदि उसे किसी दिन भिक्षा ना मिले तो वह भूखे रहती। एक समय ऐसा आया कि उसे पाँच दिन तक भिक्षा नही मिली। इस वजह से वह भगवान का नाम लेकर और फिर पानी पीकर सो जाती थी। छठवें दिन उसे भिक्षा में चना मिले । जब वह अपनी कुटिया पहुंची पहुँचते-पहुँचते रात हो गयी। ब्राह्मणी ने सोंचा अब इस चने को रात मे नही खाऊँगी। प्रात:काल पूजा के बाद प्रभु को भोग लगाकर ही खाऊँगी । इसके बाद उस ब्राह्मणी ने चने को कपड़े में बाँधकर रख दिया और प्रभु का नाम जपते-जपते सो गयी ।
ऋषि के आश्रम में चोर छोड़ आए थे चने की गठरी
आगे की स्टोरी और भी मार्मिक है। जिसने पूरे परिदृश्य ही बदल दिया। उस ब्राह्मणी के सोने के बाद कुछ चोर उसकी कुटिया मे आ गये। उसने इधर उधर काफी ढूँढा। तब उनकी नजर चने की बँधी हुई गठरी पर गई। चोरों ने समझा कि इसमे सोने के सिक्के हैं। इतने मे ब्राह्मणी जग गयी और शोर मचाने लगी । उसकी आवाज़ सुन गाँव के सारे लोग चोरों को पकडने के लिए दौडे। चोर उस गठरी को लेकर भाग गए। उस गांव के पास ही संदीपन मुनि का आश्रम था। जहां कृष्ण-सुदामा शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। भागते-भाग चोर पकडे जाने के डर से भागकर संदीपन मुनि के आश्रम में छिप गये। गुरुमाता को आश्रम के अन्दर किसी के आने आहट महसूस की। जब गुरुमाता उन्हें देखने के लिए आगे बढीं तबतक चोर समझ गये कोई आ रहा है। चोर डर गये और आश्रम से भाग गए। वहां से भगते समय चोरों की गठरी वहीं छूट गयी।
यह चना जो खाएगा हो जाएगा वह दरिद्र
इधर भूख से व्याकुल ब्राह्मणी का यह थोड़ा सा अनाज भी चोर उठा ले गये । तब ब्राह्मणी ने श्राप दे दिया कि ” मुझ दीन दुखिया का जो भी चने खायेगा वह दरिद्र हो जायेगा ” ।
अगले दिन प्रात:काल जब गुरु माता आश्रम मे झाडू लगाने लगी, तब उन्हें वह गठरी मिली। गुरु माता ने उसे खोल कर देखी तो उसमे चने थे। सुदामा जी और कृष्ण जी प्रतिदिन जंगल से लकड़ी लाने जाते थे। उस दिन भी वे जा रहा थे। गुरु माता ने उस चने को भूनकर सुदामा जी को दे दी। उसने कहा बेटा – जब वन मे भूख लगे तो तुम दोनो इसे खा लेना।
सुदामा जी ने श्री कृष्ण को नहीं दिए श्रापित चने
कथा यह कहती है कि सुदामा जी जन्मजात ब्रह्मज्ञानी थे। चना की गठरी उन्हें मिलते ही उसका सारा रहस्य उन्हें ज्ञात हो गया। सुदामा जी के मन में यह बात आई कि गुरु माता ने कहा है यह चने दोनो बराबर बाँट के खाना। अगर मै इसे प्रभु श्री कृष्ण को खिला दिया तब सारी सृष्टि ही दरिद्र हो जायेगी। मै प्रभु के साथ ऐसा कदापि नही करुँगा । मै ये चने स्वयं खा जाऊँगा लेकिन कृष्ण को नही खाने दूँगा।
सुदामा ने दरिद्र होने का विष पिया
सुदामा जी प्रभु श्री कृष्ण से इसे छिपाकर रखा और सारे चने खुद खा लिए। उन्होंने भगवान शंकर की तरह दरिद्र होने का विष पी लिया। लेकिन अपने मित्र श्री कृष्ण को श्रापित चने का एक भी दाना नही दिया। किस्सा यह प्रचलित है कि सुदामा ने श्रीकृष्ण के साथ छल किया था और सारे चने स्वयं खा लिए। परंतु श्रीकृष्ण तो त्रिकालदर्शी है, उन्होंने मित्रता की मिसाल पेश की। कालांतर में उन्होंने विप्र सुदामा को इस श्राप से मुक्त किया, उनके महल बनाए और सारे ऐश्वर्य प्रदान किए।