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इतिहास और आस्था का केंद्र : कांचीपुरम के कामाक्षी मंदिर में देखिए वास्तुकला और अध्यात्म का अद्भुत संगम

इतिहास और आस्था का केंद्र : कांचीपुरम के कामाक्षी मंदिर में देखिए वास्तुकला और अध्यात्म का अद्भुत संगम

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Amazing blend of spirituality and architecture in Kanchipuram Kamakshi Temple : अध्यात्म व वास्तुकला का सम्मिश्रण कांचीपुरम का कामाक्षी मंदिर। मदुरै का मीनाक्षी मंदिर की चर्चा करें तो यही कहा जा सकता है कि नाम ही काफी है। अद्भुत वास्तुशिल्प के साथ आध्यात्म का जबर्दस्त संगम है कामाक्षी मंदिर। देवी का यह मंदिर कांचीपुरम शहर के बीचों बीच स्थित है। हालांकि ये कांचीपुरम के बाकी मंदिरों की तरह विशाल परिसर वाला नहीं है। पर यह श्रद्धालुओं की आस्था का बड़ा केंद्र है। आध्यात्म का बड़ा केंद्र होने के कारण इस मंदिर में श्रद्धालुओं की सबसे ज्यादा भीड़ उमड़ती है। डेढ एकड़ में फैला ये मंदिर माता शक्ति के तीन सबसे पवित्र स्थानों में एक है। मदुरै और वाराणसी अन्य दो पवित्र स्थल हैं।

51 शक्तिपीठों में एक 

शहर के शिवकांची में स्थित कामाक्षी देवी मंदिर देश के 51 शक्ति पीठों में से एक है। मंदिर में कामाक्षी देवी की आकर्षक प्रतिमा देखी जा सकती है। यह भी कहा जाता है कि कांची में कामाक्षी, मदुरै में मीनाक्षी और काशी में विशालाक्षी विराजमान हैं। मीनाक्षी और विशालाक्षी विवाहिता देवियां हैं। इष्टदेवी देवी कामाक्षी खड़ी मुद्रा में होने के बजाय बैठी मुद्रा में हैं। देवी पद्मासन (योग मुद्रा) में बैठी हैं और उनके आसपास बहुत शान्त और स्थिर वातावरण है। वे दक्षिण पूर्व की ओर देख रही हैं।

मां पार्वती हैं कामाक्षी देवी के रूप में

अध्यात्म व वास्तुकला का सम्मिश्रण है मंदिर परिसर। इसमें गायत्री मंडपम भी है। मंदिर में भगवती पार्वती का श्रीविग्रह है, जिसको कामाक्षीदेवी अथवा कामकोटि भी कहते हैं। भारत के द्वादश प्रधान देवी-विग्रहों में से यह मंदिर एक है। इसकी चारदीवारी के चारों कोनों पर निर्माण कार्य किया गया है। एक कोने पर कमरे बने हैं, तो दूसरे पर भोजनशाला, तीसरे पर हाथी स्टैंड और चौथे पर शिक्षण संस्थान बना है। कहा जाता है कि कामाक्षी देवी मंदिर में आदिशंकराचार्य की काफी आस्था थी। उन्होंने ही सबसे पहले मंदिर के महत्व से लोगों को परिचित कराया। परिसर में ही अन्नपूर्णा और शारदा देवी के मंदिर भी हैं।

बीजाक्षरों का यांत्रिक महत्व

मान्यता है कि देवी कामाक्षी के नेत्र इतने कमनीय या सुंदर हैं कि उन्हें कामाक्षी संज्ञा दी गई। वास्तव में कामाक्षी में मात्र कमनीय या काम्यता ही नहीं, वरन कुछ बीजाक्षरों का यांत्रिक महत्त्व भी है। यहां पर ‘क’ कार ब्रह्मा का, ‘अ’ कार विष्णु का, ‘म’ कार महेश्वर का प्रतीक है। इसीलिए कामाक्षी के तीन नेत्र त्रिदेवों के प्रतिरूप हैं। सूर्य-चंद्र उनके प्रधान नेत्र हैं। अग्नि उनके भाल पर चिन्मय ज्योति से प्रज्ज्वलित तृतीय नेत्र है। कामाक्षी में एक और सामंजस्य है ‘का’सरस्वती का। ‘मां’  महालक्ष्मी का प्रतीक है। इस प्रकार कामाक्षी के नाम में सरस्वती तथा लक्ष्मी का युगल-भाव समाहित है।

छठी शताब्दी का मंदिर

संभवत: ये मंदिर छठी शताब्दी में पल्लव राजाओं ने बनवाया था। मंदिर के कई हिस्सों को पुन: निर्मित कराया गया है क्योंकि मूल संरचनाएं या तो प्राकृतिक आपदा में नष्ट हो गए या फिर इतने समय तक खड़े न रह सके। हालांकि कांचीपुरम के सभी शासकों ने भरपूर प्रयास किया कि मंदिर अपने मूल स्वरूप में बना रहे। अध्यात्म व वास्तुकला का सम्मिश्रण देखना चाहते हैं तो कांचीपुरम का कामाक्षी मंदिर अवश्य जाएं। मंदिर सुबह 5.30 बजे खुलता है और दोपहर 12 बजे बंद हो जाता है। दुबारा शाम को 4 बजे खुलता है और रात्रि 9 बजे बंद हो जाता है। 

Parivartankiawaj.com के माध्यम से,

साभार–विद्युत प्रकाश मौर्य।

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