Dharm, Chatra News, Jharkhand news, maa bhadrakali : कई कालखंड गुजरता गया राजवंश इतिहास का विषय बनकर रह गया पर आज भी पौराणिक काल और वर्तमान के बीच साक्षी भाव से मां भद्रकाली मौजूद हैं। जी टी रोड से 12 किलोमीटर पर झारखंड के ईटखोरी में मां भद्रकाली का भव्य मंदिर है। पुराणों में वर्णित भद्रा क्षेत्र आज अपभ्रंश रुप में भदुली धाम के नाम से प्रसिद्ध है। जो महाने और बक्सा नदी के संगम पर स्थित है। पुराणों में वर्णित है कि कुल्लेश्वरी क्षेत्र से भागकर राजा सुरत यहीं आए थे। इस क्षेत्र में सुमेध ऋषि का आश्रम था। ऋषि ने उसे मां दुर्गा की आराधना की सलाह दी। उत्खनन से प्राप्त शिला लेखों तथा ताम्र पत्रों से मिले साक्ष्य के अनुसार मंदिर का निर्माण पालवंश के शासक महेंद्र पाल ने 988 ई से 1038 ई के बीच कराया था। महेंद्र पाल बंगाल के शासक थे। जिसके अधीन मगध भी था और भदुली मगध का एक हिस्सा था।
मां भद्रकाली मंदिर परिसर 158 एकड़ में फैला है
मां भद्रकाली मंदिर 158 एकड़ में फैला हुआ है। यहां मुख्य मंदिर के अलावा कई अन्य मंदिर है, जहां विभिन्न देवी देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित है। मुख्य मंदिर परिसर में बेशकीमती गोमेद पत्थर से निर्मित मां भद्रकाली की प्रतिमा है। जिस पर काल का अब तक कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। यहां घने जंगलों के बीच पाल राजाओं का मंदिर ढ़ह गया था, मात्र प्रतिमा ही बची हुई थी, स्थानीय पण्डित जी सुबह शाम वहां जाकर पूजा करते थे और आसपास के कुछ गणमान्य लोग एवम प्रशासन के लोग कभी कभार जाते थे। पूजा 1968 तक मंदिर परिसर में मां भद्रकाली के अलावा अष्टभुजी मां दुर्गा की भी प्रतिमा स्थापित थी। जो 1968 में मां भद्रकाली और अष्टभुजी मां दुर्गा की प्रतिमा चोरी हो गई। उस वक्त तक स्थानीय लोगों को प्रतिमा की कीमत का अंदाज नहीं था। परंतु लोक आस्था थी कि उस घटना के बाद क्षेत्र में हाहाकार मच गया।
मंदिर से मूर्ति चोरी की अप्रत्याशित घटना
मुख्य पुजारी बालो बाबा के द्वारा सूचना मिलते ही लोग भाव विभोर होकर प्रतिमा की खोज में जुट गए। थाने में मामला दर्ज किया गया। थानेदार के साथ बीड़ीओ विद्ययानंद झा, स्थानीय समाजसेवी यशवंत नारायण सिंह काफी चिंतित थे। बीडीओ श्री झा मां के भक्त थे। इसी बीच चोरी की घटना के एक सप्ताह बाद आश्चर्यजनक तरीके से बीडीओ को एक गुमनाम पत्र मिला।
व्यापारी ने चोरी का बनाया था प्लान
ऐसा कहा जाता है कि नालंदा जिले के चंडी का एक सोने चांदी का व्यवसायी मास्टर माईंड था, जिसने चोरी का पूरा प्लान तैयार किया था। इसी दल का एक सदस्य मां के प्रकोप से ड़र कर गुमनाम पत्र लिखा था। इस पत्र में लिखा था कि नालंदा (बिहार) के एक व्यक्ति ने 50 लोगों के साथ मिलकर प्रतिमा की चोरी की है। जिसे बिहार-शरीफ या कलकात्ता में रखा गया है। 2-3 दिनों के अंदर प्रतिमा अमेरिका पहुंच जाएगा। इस पत्र के बाद चतरा पुलिस प्रशासन सक्रिय हुआ। पुलिस की दो टीमें बनाई गयी। एक टीम बिहार शरीफ तथा दूसरी टीम कोलकाता रवाना हुई। कलकत्ता के स्पेशल ब्रांच के एसपी मृणाल कान्ति ने खरीदार के वेष में छापामारी की तैयारी की। यह तय हुआ कि वहां वही जायेगा जो मां की प्रतिमा को पहचान ले और अपनी भावना पर नियन्त्रण रखे। पण्डित बालो बाबा भावुक हो सकते थे, अतः यह तय हुआ कि पुलिस के साथ यशवंत नारायण सिंह जायेंगे,जो हिम्मती भी हैं और मां की प्रतिमा को पहचान कर गम्भीर रहेंगे।
यशवंत नारायण सिंह खरीदार बनकर पहुंचे
कलकता पुलिस के साथ लोग लालबजार के मूर्ति व्यापारी नौलखा के गोदाम में पुरानी मूर्ति के खरीदार बनकर पहुचे। मां की मूर्ति दिखाने के लिए रात का समय तय हुआ। इससे पूर्व कोलकाता में पुलिस के एक पदाधिकारी ने भेष बदल कर नौलखा से प्रतिमा के सौदा के लिए बिचौलिया की भूमिका में था। तय समय में आसपास सादे भेष में पुलिस तैनात की गयी । सौदे के दौरान आधी रात दो बजे का समय था, पैक मूर्ति खुलते ही यशवंत सिंह भावुक हो गये, जिसका ड़र था और मूर्ति मां की मूर्ति को पकड़ कर रोने लगे। इस दौरान वहां मौजूद महिलायें समझ गयी कि लोग खरीददार नहीं बल्कि मूर्ति को जानने वाले लोग हैं, यशवंत सिंह पर उस गिरोह की एक महिला ने रिवाल्वर तान दी,एसपी मृणाल कांत ने भी अपना रिवाल्वर निकालकर कहा कि आपसब पुलिस से घेरे में है, नौलखा की तीन पत्नियाँ थी। इस तरीके से पुलिस की टीम ने छापामारी कर मां भद्रकाली की प्रतिमा बरामद किया। इस मामले में व्यापारी नौलखा को गिरफ्तार किया गया। जिसे बाद में प्रतिमा चोरी के लिए सजा भी मिली थी।
प्रतिमा की वापसी के बाद मंदिर की बढ़ी ख्याति
बताया जाता है कि प्रतिमा चोरी होने के पहले मंदिर एक छोटे स्वरूप में था। मंदिर परिसर में गांव के दो मंडप जैसा मंदिर था। एक में मां भद्रकाली तथा दूसरे में अष्टभुजी मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित था। चोरी की घटना के बाद प्रतिमा मिलने के बाद मंदिर की प्रसिद्धि बढ़ने लगी। मां की पुनः प्राण प्रतिष्ठा की गई। स्थानीय विद्वान मुन्नेश्वर पांडेय ने भदुली गांव की मां भदुली पर काफी अनुसंधान किया था, ग्रंथों के आधार पर यह स्थापित हुआ कि प्रतिमा का यह स्वरूप मां भद्रकाली का हैं। उन्होंने इसे प्रमाणित करने के लिए संस्कृत भाषा में एक पुस्तक भी लिखी थी। देश के कोने कोने से श्रद्धालु मां भद्रकाली की पूजा व दर्शन के लिए पहुंचने लगे और देखते हीं देखते मां भद्रकाली मंदिर राज्य के प्रमुख पर्यटन स्थलों में शुमार हो गया।
वास्तुकला का उत्कृष्ट का उदाहरण
आज भद्रकाली मंदिर परिसर में मां भद्रकाली मंदिर के अलावा पंचमुखी हनुमान मंदिर भी अवस्थित है। यह मंदिर मुख्य मंदिर के बगल में अवस्थित है। इसके अलावा मुख्य मंदिर परिसर से सटा हुआ एक और मंदिर है जिसे सहस्त्र शिवलिंग मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर परिसर में एक बड़े शिवलिंग में 1008 छोटे-छोटे शिवलिंग उत्कीर्ण किए गए हैं। साथ ही इस मंदिर के मुख्य द्वार पर विशाल शिला से निर्मित भगवान शंकर का वाहन नंदी की प्राचीन प्रतिमा स्थापित की है। यहां स्थापित अधिकांश प्रतिमाएं प्राचीन काल की है, जो वास्तुकला का उत्कृष्ट का उदाहरण है।
15 फीट ऊंचा है बौद्ध स्तूप, हमेशा भरा रहता है जल
मां भद्रकाली मंदिर परिसर में 15 फीट ऊंचा विशाल बौद्ध स्तूप है। यह स्तूप मंदिर परिसर के उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित है। इस बौद्ध स्तूप में 1004 छोटे तथा चार बड़े विभिन्न मुद्राओं में भगवान बुद्ध की प्रतिमा उत्कीर्ण है। यह स्तूप वर्तमान में 6 – 7 फुट दिखता है आधे से अधिक भाग जमीन में दबा हुआ है। यह स्तूप आस्था के साथ चमत्कार और विज्ञान के लिए भी आश्चर्य से कम नहीं है। क्योंकि इस शिला स्तूप के ऊपरी हिस्से में बने गढ़े में जल हमेशा भरा रहता है। उसे खाली करने के बाद भी पानी वापस भर जाता है और स्तूप से नीचे गिरने के बजाय हमेशा एक लेवल तक स्थिर रहता है। यह चमत्कारिक स्तूप आज भी विज्ञान के लिए एक पहेली बना हुआ है। इस स्तूप को देखने के लिए देश-विदेश से सैलानी यहां पहुंचते हैं।
1008 भगवान शीतल नाथ जैन मंदिर
भद्रकाली मुख्य मंदिर परिसर में जैन धर्म के 10 वें तीर्थंकर भगवान शीतल नाथ का मंदिर स्थापित किया गया है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शीतल नाथ का जन्म इसी पावन भूमि पर हुआ था। 1983 में हुए खुदाई में भगवान शीतलनाथ के जोड़ा चरण यहां से प्राप्त हुए हैं। जिसे फिलहाल मंदिर परिसर में स्थित म्यूजियम में रखा गया है। जो भी श्रद्धालु यहां आते इसका दर्शन करते हैं।
ईटखोरी नामकरण का रोचक प्रसंग
ईटखोरी का नाम प्राचीन काल से जुड़ा है। ईटखोरी “इत” ‘खोई‘ से बना है। प्राचीन कथा के अनुसार सिद्धार्थ तथागत अर्थात गौतम बुद्ध यहां अटूट साधना में लीन थे। उस समय उनकी मौसी प्रजापति उन्हें कपिलवस्तु वापस ले जाने के लिए यहां आईं थी। परंतु तथागत अर्थात बुद्ध का ध्यान मौसी के आगमन से भी नहीं टूटा। तब मौसी के मुख से अचानक “ईतखोई ” शब्द निकला जिसका शाब्दिक अर्थ होता है ‘यहीं खोया’ अर्थात पुत्ररत्न सिद्धार्थ तपस्या में यही खो गए। इसी घटना के पश्चात संभवत: इसका नाम “ईतखोरी” पड़ा होगा। जो अब कालांतर में परिवर्तित होकर ईतखोरी से ‘इटखोरी‘ में बदल गया है।
ईटखोरी महोत्सव की शुरुआत
हिंदू, बौद्ध व जैन धर्म के आस्था का केंद्र बना भद्रकाली मंदिर में ईटखोरी महोत्सव ने मंदिर की ख्याती में और चार चांद लगाया। वर्ष 2015 में तत्कालीन सासंद सुनील कुमार सिंह की पहल पर मंदिर परिसर में इटखोरी महोत्सव की शुरुआत हुई। वर्ष 2016 में तत्कालीन झारखंड सरकार ने ईटखोरी महोत्सव को राजकीय महोत्सव का दर्जा दिया। उसी के बाद से प्रत्येक वर्ष 19 से 21फरवरी तक तीन दिवसीय ईटखोरी महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इस महोत्सव में देश-विदेश से कलाकारों की टीम आती है। लेखक : पंडित रामदेव पांडे, दिनेश सिंह