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मेरे दिए गए जवाबों की जख्मों में मौत के बाद भी दर्द होता है, क्योंकि किस्से और कहनी मे फर्क होता है।।

मेरे दिए गए जवाबों की जख्मों में मौत के बाद भी दर्द होता है, क्योंकि किस्से और कहनी मे फर्क होता है।।

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रावण वाणी – भाग 2

Ravana Vani, The wounds of the answers given by me hurt even after death. Because there is a difference between stories and sayings, dharm, religious, Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, jyotish Shastra, dharmik totke, dharm adhyatm : 

मेरे दिए गए जवाबों की जख्मों में मौत के बाद भी दर्द होता है। क्योंकि किस्से और कहनी मे फर्क होता है।।

मुझ रावण की चिता बारिश ने बुझा दी।

मैं उफ और मेरी हार दफना दी।।

मैं खुद के लिखे इतिहास पर घमंड रखता हूं।

मैं रावण हूं खुद को सर्रज पसन्द रखता हूं।

वेदों को खोद के पीने वाला मैं रावण हूं।

मैं महाकाल का भक्त तुम सब से पावन हूं।।

मैं सीधा अन्त करता हूं, करता कभी पहल नहीं 

मुझ को शाप समझने वालो तुम मुझ रावण के हाथ की मैल नहीं।।

इतना ज्ञानी हूं तो अभिमान करना बनता है।

ये घमंड और गुरूर मुझ रावण पर जमता हैं।।

उस भोले नाथ के लिए हमने सिर्फ़ तांडव गया था।

तब महाकाल ने खुद मेरे हाथ में अपना चंद्रहास धराया था।।

तीनों लोकों में लोग रावण नाम से डरते हैं।

क्यो की बजाय खून के मेरे सीने में महाकाल खून बनकर चलते हैं।।

खुद को तूफान बताने वाली हवाओं सुन लो

मैंने बड़े-बड़े सैलाब संभाले हुए हैं।।

बस गलती ये रही कि मुझ रावण ने आस्तीन में सांप पाले हुए हैं।।

गर जो राजे आड़ भी विभीषण को नही बताया होता।

तो क्या राम ने हमे हराया होता।।

चाहे कर्म काले थे मेरे मुझको पण्डित और काल विजयी माना जाता था।

आज भी महाकाल का बड़ा भक्त रावण को माना जाता है।।

जब राम ने मुझे हराने के लिए यज्ञ रचाया था।

उस यज्ञ को साकार करने खुद रावण आया था।।

रावण पूरी धरती है, कोई वजन या बोझ नहीं है।

मुझ रावण को मौत का भी खौफ नहीं है।।

अपने सुर वीर होने का प्रमाण हमने अपने कर्मो से दिया है।

फिर चाहे भगवान से लड़ना पड़ा मेरे कुल के लिए ठीक लगा सो किया है।।

मैं खुश नसीब हूं जो तुम सब को दी गई एक बहुत बड़ी सिख हूं।

मैं फिर कहता हूं कि तुम सब राम बन जाओ मैं रावण ही ठीक हूं।

कभी बैठ कर प्यार से समझा करो मित्रों।

अभी रुद्र रूप तो हमने निकाला ही नहीं हैं।

आरे तुम नाश्ता तो छोड़ दो नेवला भी नहीं है।

ये मेरे ही खेल के गुढ हमे सीखा रहे हैं।

कल के बच्चे खुद को रावण बता रहे हैं।।

मेरा उठाया हर कदम अलग होता है। कुतों को भौंकने और शेर के दहाड़ने में फर्क होता है।।

रचयिता: डीएन मणि

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