These acts have been described as great sins in Shrimad Bhagwat Geeta, know what our religious scriptures sa, dharm, religious Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, jyotish Shastra, dharmik totke, dharm adhyatm : मनुष्य को अपने जीवन में क्या करना चाहिए और क्या नहीं, इसके बारे में श्रीमद्भागवत गीता में इस बारे में विस्तार से बताया गया है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि भगवत गीता में किन कामों को करना महापाप माना गया है। सनातन धर्म में कई ऐसे धार्मिक ग्रंथ हैं, जो व्यक्ति के जीवन से जुड़ी बड़ी से बड़ी समस्या व कठिनाई से लड़ना सिखाते हैं। यह ग्रंथ व्यक्ति को कठिन परिस्थितियों से बाहर निकलना और परेशानियों के उपाय सुझाते हैं। ऐसा ही एक पवित्र ग्रंथ श्रीमद्भागवत गीता है। गीता ग्रंथ में भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश हैं, जो जीवन से जुड़े कई अहम विषयों पर आधारित हैं। व्यक्ति को अपने जीवन में क्या करना चाहिए और क्या नहीं, गीता में इसके बारे में विस्तार से बताया गया है। साथ ही गीता में पाप और पुण्य से जुड़ी बातों के बारे में भी उल्लेख मिलता है। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको बताने जा रहे हैं कि भगवत गीता में किन कामों को करना महापाप माना गया है।
हिंसा
आपको बता दें कि यदि कोई व्यक्ति हिंसा का मार्ग अपनाता है, या किसी को शारीरिक तौर पर नुकसान पहुंचाता है। किसी की हत्या करता है फिर वह इंसान हो या जानवर। ऐसा करना गीता में महापाप माना जाता है।
चोरी
श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार चोरी करना भी महापाप माना जाता है। चोरी का अर्थ सिर्फ धन चुराने से नहीं है। बल्कि अगर आप छल से किसी व्यक्ति की सफलता उसकी प्रतिष्ठा आदि को चुराते हैं। तो इसको भी महापाप माना जाता है।
वासना
इसके अलावा किसी पुरुष या महिला को उसकी इच्छा के बिना वासना का शिकार बनाना भी महापाप की श्रेणी में आता है। वासना के कारण किसी की मर्यादा को भंग करना बेहद अनुचित कार्य माना गया है।
लालच
जो व्यक्ति धन, खाने-पीने की चीजों, कपड़ों या फिर जमीन-जायदाद के बारे में ज्यादा लालच करता है। उसको भी श्रीमद्भागवत गीता में महापाप माना गया है।
ईर्ष्या
किसी व्यक्ति से ईर्ष्या या जलन की भावना रखना भी महापाप माना जाता है। भले ही ईर्ष्या करना किसी को सामान्य भाव लगता है, लेकिन ईर्ष्या के कारण व्यक्ति कई बार अनुचित मार्ग पर चलने लगता है।
अहंकार
वहीं जो व्यक्ति अहंकार में पूरी तरह से डूबा होता है। वह सही-गलत का निर्णय नहीं कर पाता है। अंहाकर में चूर व्यक्ति ऊपर बताए गए पापों में से कोई न कोई पाप कर बैठता है। इसलिए गीता जैसे पवित्र ग्रंथ में इसे सबसे बड़ा पाप माना गया है।