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जीवन में परम लक्ष्य पाने के लिए भगवान शिव की ध्यान विधियां जानें

जीवन में परम लक्ष्य पाने के लिए भगवान शिव की ध्यान विधियां जानें

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Learn Lord Shiva’s meditation method : भगवान शिव की ध्यान विधियां जानें। जब इंद्रियां हृदय में विलीन हों, तभी कमल के केंद्र में पहुंचने का सबसे उपयुक्त समय होता है। कैवल्य उपनिषद् इसी की शुरुआत करता है। उपनिषद् में प्रार्थना है कि हे प्रभु! मेरी इंद्रियां ज्यादा सबल हों, ज्यादा मजबूत हों, मैं ज्यादा संवेदनशील बनूं। जितनी आपकी संवेदनशीलता होगी, उतना ही होश होगा, उतना ही ध्यान होगा, उतने ही आप जीवंत होंगे। जीवन के केंद्र, परमात्मा को पहचान सकेंगे। यह भावप्रवण लोगों के लिए है। 

इंद्रियों को संवेदनशील बनाएं

सबसे पहले तो अपनी इंद्रियों को ज्यादा संवेदनशील बनाना, जब किसी चीज को छूते हों, तो उस स्पर्श की संवेदना को खूब सघन होने दें। मानो आपने अपना पूरा हृदय ही उलीच दिया है। तब आपकी हथेलियां बस यूं ही किसी को न छुएं। ठंडे हाथों से, मुर्दे की भांति। आपके पूरे प्राण हथेलियों पर आ जाएं। किसी वृक्ष के किनारे बैठे हों या टिककर बैठे हों तो कभी वृक्ष को गले लगाएं। उससे लिपट जाएं। उससे और पूरे शरीर से वृक्ष के स्पर्श को महसूस करें। उसके साथ एकात्म हो जाएं।

मन-प्राण से कोई अनुभव करें

किसी फूल की जब सुगंध लें तो इतनी गहराई से लें कि पूरे प्राण आंदोलित हो जाएं। आपका हृदय कमल खिलने लगे। जब भोजन करें तो बिना किसी विचार के मात्र भोजन करें। उसका भरपूर स्वाद लें। मैं देखता हूं लोगों को, भोजन की टेबल पर बैठे खाना खा रहे हैं और राजनीति की चर्चाएं चल रही हैं। नहीं, उस समय अन्य विचार की कोई जरूरत नहीं। जब भोजन कर रहे हों, स्वाद ही हो जाएं, पूरे के पूरे स्वाद में निमज्जित हो जाएं। इस प्रकार धीरे-धीरे आपकी संवेदनशीलता बढ़ेगी।

धूप के माध्यम से सूरज के स्पर्श को महसूस करें 

ठंड की सुबह है। कुनकुनी धूप चेहरे पर पड़ रही है। अपने लॉन में आराम कुर्सी पर बैठे हैं। तब धूप की किरणों को यूं महसूस करें, जैसे इनके माध्यम से सूरज ने अपने हाथ आप तक फैला दिए हैं। जैसे कि सूरज आपको स्पर्श कर रहा है। आपके चेहरे पर पड़ती ये गुनगुनी धूप आपके हृदय को आंदोलित करे। भाव से भरें। केवल इसी प्रकार के व्यक्ति के लिए शिव की यह विधि काम आएगी। भगवान शिव की ध्यान विधियों में जानें कि शिव जब कहते हैं कमल, तो याद रखें। उनका तात्पर्य कमल से हृदय ही है। पुराने जमाने में कमल की उपमा सहस्त्रा के लिए और हृदय के लिए विशेष रूप से दी जाती थी। 

हृदय से नाभि केंद्र तक पहुंचें

हमारे देश में एक खूबी है, कोई एक उपमा अगर प्रसिद्ध हो जाती है, फिर सभी के लिए हम उसी का उपयोग करने लगते हैं। हाथों के लिए भी हम कहने लगते हैं कमल और चरणकमल कहने लगते हैं पैरों के लिए। इस विधि में जब शिव कह रहे हैं कि इंद्रियों को हृदय में विलीन होने दो और कमल के केंद्र पर पहुंचो। इसे ऐसे समझें, जैसे किसी फूल की पांच पंखुड़ियां होती हैं, ऐसी ही हमारी पांच इंद्रियां हैं। जिस बिंदु पर वे मिलती हैं अगर वह बिंदु हृदय है, तब बड़ी आसानी से किसी भी संवेदना के माध्यम से आप अपने हृदय में प्रवेश कर जाएंगे। फिर हृदय से नाभि केंद्र पर पहुंचना बहुत आसान है।

ध्यान विधि 

हृदय पर अपने दोनों हाथ रख लें। भक्तिभाव से भरें, महसूस करें कानों से आ रही संगीत की तरंगे, ध्वनियां सीधे हृदय में जा रही हैं। बंद आंखों में पलकों के माध्यम से आ रही रोशनी सीधे हृदय में उतर रही है। नीचे जमीन या गद्दे के स्पर्श से हृदय आंदोलित हो रहा है। श्वास में आती-जाती हवा की सुगंध सीधे हृदय को छू रही है। हृदय पुलकित हो रहा है। इस भाव में बैठ कर चारों ओर की हवाओं में परमात्मा की दिव्य उपस्थिति को महसूस करें। धीमी व गहरी श्वास लें। श्वास लेते हुए कोहनी को ऊपर उठाएं। तीन सेकंड श्वास को भीतर रोकें, फिर आहिस्ता-आहिस्ता श्वास छोड़ते हुए कोहनियों को नीचे जाने दें। अंत में एक मिनट पूर्ण विश्राम, सारी इंद्रियां हृदय में विलीन हो गई। 

विचार छोड़ें, भाव को बचाएं

भगवान शिव की ध्यान विधि में अब अति संवेदनशील होकर कमल के केंद्र में पहुंच कर शिथिल हो जाएं। लेट जाएं। हृदय के केंद्र में स्थित हो जाएं। जीवन के इस केंद्र में विश्राम ही समाधि है। विश्राम, होशपूर्ण, प्रेमपूर्ण, पूरी तरह आराम की मुद्रा में हो जाएं। आनंदपूर्ण विश्राम में डूबें। हृदय ही आनंद को जानता है। परमानंद के भाव में विलीन हो जाएं। आप हृदयपूर्वक व प्रेमपूर्वक उसे देखते हें। किंतु बाद में बुद्धि हस्तक्षेप करने लगती। भाव के बीच में विचार आ जाते हैं। कल्पना, स्मृतियां और तुलनाएं बीच में आ जाती हैं। तब भाव नष्ट हो जाता। अपने भाव को बचाना है। विचारों को छोड़ें।

ओशो ने बताई ध्यान विधि 

ओशो इस विधि को समझाते हुए कहते हैं। आंख बंद करो और किसी चीज को स्पर्श करो। अपने प्रेमी या प्रेमिका को छुओ। अपनी मां को या बच्चे को छुओ या मित्र को या वृक्ष को, फूल को या महज धरती को स्पर्श करो। आंखें बंद करो। अपने और धरती के बीच, प्रेमिका और अपने बीच होते आंतरिक संवाद को महसूस करो। भाव करो कि तुम्हारा हाथ ही तुम्हारा हृदय है, जो धरती को स्पर्श करने आगे बढ़ा है। स्पर्श की अनुभूति को हृदय से जुड़ जाने दो। अगर संगीत सुन रहे हो, उसे दिमाग से मत सुनो, भूल जाओ मस्तिष्क को और समझो कि मैं बिना सिर के हूं। मेरा कोई मस्तिष्क ही नहीं है। 

बिना सिर के अपना चित्र सोने के कमरे में रखें

अच्छा हो कि अपने सोने के कमरे में अपना एक चित्र रख लो, जिसमें तुम्हारा सिर न हो। फोटोग्राफर से ऐसा एक चित्र बनवा लो। उस पर ध्यान को एकाग्र करो और भाव करो कि तुम बिना सिर के हो। सिर को बीच में आने ही मत दो। संगीत को सीधा-सीधा हृदय से सुनो। भाव करो की संगीत तुम्हारे हृदय में जा रहा है। हृदय को संगीत के साथ उद्वेलित होने दो। हमारी इंद्रियों को भी हृदय से जुडऩे दो, मस्तिष्क से नहीं। यह प्रयोग सभी इंद्रियों के साथ करो और अधिकाधिक भाव करो कि प्रत्येक ऐंद्रिक अनुभव हृदय में जाता है और उसमें विलीन हो जाता है। यही है भगवान शिव की ध्यान विधि।

शिव कहते हैं-हृदय ही कमल 

हे भगवती! जब इंद्रियां हृदय में विलीन हों, कमल के केंद्र पर पहुंचें। शिव कह रहे हैं, हृदय ही कमल है और इंद्रियां कमल की पंखुड़ियां हैं। पहली बात अपनी इंद्रियों को हृदय के साथ जुड़ने दें और दूसरी बात सदा भाव करें कि इंद्रियां सीधे हृदय में गहरी उतरती हैं और उसमें घुल-मिल जाती हैं। जब ये दो काम हो जाएंगे, तभी आपकी इंद्रियां आपकी सहायता करेंगी। तब वे आपको आपके हृदय तक पहुंचा देंगी। तब आपका हृदय कमल बन जाएगा। यह हृदय कमल आपका केंद्र होगा और जब आप अपने हृदय के केंद्र को जान लेंगे। तब नाभि केंद्र को पाना बहुत आसान हो जाएगा।

अत्यंत सरल है यह विधि 

आपने देखा कि भगवान शिव की ध्यान विधियां अत्यंत सरल है।  सूत्र उसकी चर्चा भी नहीं करता, उसकी आवश्यकता भी नहीं है। अगर आप सच में ही समग्रता से हृदय में विलय हो गए और बुद्धि ने काम करना छोड़ दिया, तो आप नाभि केंद्र में पहुंच जाएंगे। हृदय से नाभि की ओर द्वार खुलता है। सिर से नाभि की ओर जाना बहुत कठिन है। तो आज हम जो विधि करेंगे, अपनी संवेदनशीलता को और जागरूकता को बढ़ाने की विधि है।

धर्मों में बुद्धि से अधिक भाव पर बल 

इसके पहले एक बात और समझ लें, पुराने जितने धर्म हैं, हिसनात, यहूदी, ईसाई, मुसलमान आदि, वे सब भाव प्रधान विधियों पर, प्रार्थनाओं पर जोर देते हैं। पुराने जमाने में जब इतनी शिक्षा नहीं थी, विज्ञान नहीं था। लोग ज्यादा भावप्रधान थे। आज के युग के लिए बुद्ध और महावीर की विधियां ज्यादा कारगर होंगी। क्योंकि लोग हृदय से नहीं, मस्तिष्क से जीने लगे हैं। विशेषकर आधुनिक शिक्षित मनुष्य, उसके लिए ओशो की विधियां ही कारगर होंगी। वे बुद्ध और महावीर की विधियों के भी नए संस्करण हैं, तो याद रखें। शिव की यह विधि अति संवेदनशील लोगों के काम की है।

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