(रावण वाणी भाग-1)
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बेहाल इतने रहे हम की आज खुद के हाल भूल गए।
ये ऊंची उड़ान भरने वाले परिंदे लगता हैं गुलेल की मार भूल गए।।
एक वक्त खामोश क्या बैठा रावण।
लगता है दुनिया वाले मेरी तलवार की धार भूल गए।।
चाहे इंसान हो या भगवान सब के लिए मैं बहुत बड़ी हानि था।
मैं रावण बचपन से ही सर्व श्रेष्ठ ज्ञानी था।।
मैं बेढंग शिवतांडव सा हूं।
मेरी मां के आशीर्वाद से थोड़ा दानव सा हूं।
जब दर्द में चीख कर हमने तांडव किया।
तब महाकाल ने मेरा नाम रावण दिया।।
महाकाल के इस नाम को कोई कैसे मिटा सकता है।
रावण ना कभी हारा है ना कोई हरा सकता है।।
मेघनाथ के लिए मैंने सारे गर्हो को 11वें स्थान पे बिठाया था।
मैंने रावण यमराज और सनी को अपना बन्दी बनाया था।।
सूर्य खुद देखो सनी महराज को बचाने आ गया।
सामने देखो कंकड़ पत्थर कैलाश को हिलाने आ गया।।
मुझे सिर्फ़ बिस्वास घात के तीरों ने भेदा था।
आरे मुझ ज्ञानी से ज्ञान ले खुद राम ने लक्ष्मण को भेजा था।।
हां हमने बुराई को जन्म दिया।
मैंने अपने ताकत पर घमण्ड किया।।
हमे एक नहीं साल में हजार बार जला दो।
आरे छोड़ो मुझ रावण की बात थोड़ा ही सही तुम राम बनकर दिखा दो।।
घमंड मुझमें मैं का होना जरूरी है।
और रावण होना बच्चों का खेल थोड़ी हैं।।
जमी धूल मेरे नाम से हट जाएगी।
जब मेरे बात की आंधी चल जाएगी।।
और आज जो ये नफरत नफरत करते हैं। ये भी रावण के रंग मे रंग जाएंगे।
एक वक्त बाद ये भी भेड़ जैसे बन जाएंगे।।
लिवास काला, आवाज काली मैं अंधेरे का प्रतीक हू।
तुम सब राम बन जाओ मैं रावण ही ठीक हूं।।
हसने वालो के नाम के साथ चेहरे भी याद हैं।
गलती रही होगी मेरी वर्ना इनकी कहां औकात है।।
बता दूं निहत्थे हाथ शेर पर वार नहि किया करते।
और ये नदी नाले ना समुन्दर पार नहीं किया करते।।
हां मैं हूं घमंडी जिस रास्ते गुजर जाऊ, उस रास्ते पर फिर झांकता नहीं हू।।
मैं रावण हूं दोस्तों कदम आगे बढ़ा दिया तो फिर पीछे कभी हटाता नहीं।
रचयिता: डीएन मणि