Maa Mansa Puja, Relation of Manasa Devi and Snake, Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, Dharm- adhyatm, religious : सांपों की देवी मां मनसा की पूजा पश्चिम बंगाल से सटे झारखंड के अधिकतर गांवों में अमूमन हर वर्ष 17 अगस्त को होती है। इसके लिए प्रतिमा बनाने का दौर करीब 15-20 दिन पहले ही शुरू हो जाता है। मां मनसा की पूजा करने के पीछे कुछ मान्यताएं हैं। आइये लेते हैं इस संबंध में जानकारी…
पूजा की रात देते हैं बकरा और बत्तख की बलि
कृषि बहुल क्षेत्र होने के कारण अधिकतर ग्रामीणों व किसानों का नाता सांप-बिच्छुओं के खतरे वाले स्थलों से बना रहता है। ऐसी मान्यता है कि मां मनसा की पूजा-अर्चना से सांप-बिच्छुओं के खतरों से उन्हें सुरक्षा मिलती है। इस क्रम में पूजा की रात को बकरा और बत्तख की बलि देने की परंपरा है तो अगले दिन पारण के मौके पर इसे प्रसाद के रूप में खाया जाता है। वैसे मां मनसा की पूजा पूरे एक महीने की होती है।
.. तो बत्तख के मांस व खून में होती है पेट के अंदर के कीटाणुओं को नष्ट करने की शक्ति
मनसा पूजा में बत्तख की बलि देने के पीछे वैज्ञानिक आधार है। ग्रामीणों के अनुसार इस महीने में सभी कृषक खेतों में जाकर कार्य करते हैं। एक समय था, जब प्रायः कृषक खेतों में कार्य के दौरान अपनी प्यास बुझाने के लिए खेत-डांड़ी का पानी पीते थे। आज भी कमोबेश ऐसी स्थिति है। इनका मानना है कि खेत-डांड़ी का पानी पीने से उसके साथ कई तरह के कीटाणु-विषाणु और कीड़े-मकोड़े भी पेट में चले जाते हैं। बत्तख के मांस व खून में यह खूबी होती है कि वह पेट के वैसे सभी कीटाणुओं को नष्ट कर देते हैं। पुरखों ने उसी को ध्यान में रखते हुए कृषि कार्य के बाद मनाए जाने वाले इस पर्व में बत्तख खाने की परंपरा शुरू की थी।
.. तो इसलिए की जाती है मां मनसा की पूजा, जानिए यह रोचक कथा…
मनसा पूजा को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। उनमें राजा चंद्रधर (चांद राजा) की कथा सर्वाधिक प्रचलित है. कथा के अनुसार किसी समय माता पार्वती ने काली का भयंकर रूप धारण कर हजारों दैत्यों का संहार किया था। नागलोक के राजा वासुकि की बहन की मौत भी हो गई। इससे वह काफी दुखी थे। तब भगवान शिव ने मस्तक के प्रभाव से मनसा को जन्म दिया और उसे वासुकि को बहन स्वरूप भेंट किया। वासुकि उसे लेकर नागलोक को निकल पड़े, लेकिन मनसा देवी का जहरीला ताप सहन नहीं कर पाने के कारण आधे रास्ते में अचेत होकर गिर पड़े। चूंकि शिव ने मनसा के जन्म से पहले विषपान किया था, इसलिए मनसा जन्म से काफी अधिक जहरीली थी। वासुकि ने शिव को पुकारा और कहा कि जब नवजात अवस्था में इसके जहरीले ताप को वह सहन नहीं कर पा रहे तो शिशु अवस्था में यह कन्या कैसे अपना ताप सह सकेगी। तब शिव ने पंचकोश क्रिया से उसे सीधे युवावस्था में पहुंचा दिया। मनसा में अद्भुत चमत्कारिक शक्तियां थी। उसके आधार पर मनसा ने पाताल लोक में अधिकार जमाना चाहा। वह चाहती थी कि शिव परिवार के गणेश, कार्तिक आदि की तरह उनकी भी पूजा हो। यह बात शिव को पता चलने पर मनसा को धरती पर अपने भक्त चंद्रधर के पास जाने की सलाह दी। कहा कि अगर वह तुम्हारी पूजा कर लेगा तो सभी तुम्हारी पूजा स्वीकार कर लेंगे। मनसा ने राजा चंद्रधर से बलपूर्वक अपनी पूजा करानी चाही पर वह तैयार नहीं हुए। उन्होंने कहा कि शिव के अलावा इस दुनिया में उनका अन्य कोई भगवान नहीं है। इससे क्रोधित मनसा ने एक-एक कर उनके सातों पुत्रों को मार डाला। उसके बाद चंद्रधर की पत्नी की प्रार्थना पर मनसा के वरदान से एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम रखा गया लक्ष्मी चंद्र उर्फ लखिन्द्र। उनकी शादी अखंड सौभाग्यवान महिला बेहल्या से हुई।
…और मां मनसा ने अपने ही वरदान से जन्मे लक्ष्मीचंद्र को उसके सुहागरात के दिन डस लिया
काफी प्रयासों के बाद भी जब चंद्रधर पूजा करने को तैयार नहीं हुए तो मां मनसा ने अपने ही वरदान से जन्मे लक्ष्मीचंद्र को उसके सुहागरात के दिन डस लिया। बेहल्या महान सती थी। देवताओं की सलाह पर वह केला के थम को नौका बनाकर शिव के पास गयी। इसके बाद शिव ने लक्ष्मीचंद्र को जीवित करने का निर्देश मनसा को दिया, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकी। इसके बाद उसे अपनी गलतियों का एहसास हुआ। फिर मनसा के आग्रह पर शिव ने लक्ष्मीचंद्र के अलावा राजा चंद्रधर के अन्य सातों पुत्रों को जीवित कर दिया। इसके बाद शिव ने बेहल्या की प्रार्थना पर राजा चंद्रधर को आदेश दिया कि वह फूल अर्पित कर मनसा की पूजा करें। साथ ही मनसा को वरदान दिया कि वह जगत में देवी के रूप में पूजी जाएगी और उनकी पूजा करने वालों की सभी मनोकामनाएं पूरी होगी।