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कर्ण पिशाचिनी साधना से लें भूत-वर्तमान की सटीक जानकारी

कर्ण पिशाचिनी साधना से लें भूत-वर्तमान की सटीक जानकारी

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Karn Pishachini Sadhana : कर्ण पिशाचिनी साधना से साधक को वर्तमान और भूतकाल की घटनाओं की सटीक जानकारी मिलती है। इससे आमतौर पर भविष्य की जानकारी नहीं मिल पाती है। हालांकि कुछ लोग भविष्य दर्शन का भी दावा करते हैं। आपने ऐसे लोगों को देखा या सुना होगा जो दूसरों की गोपनीय जानकारी उजागर करते हैं। उनसे प्रभावित होकर आप भविष्य की सलाह लेते हैं तो असफलता मिलती है। इसका कारण साधना की सीमा है।

चूक होने पर बड़े नुकसान का खतरा

यह साधना देवियों से एक पायदान नीचे की शक्ति यक्षिणी की है। उन्हें घर में नहीं स्थापित किया जाता है। शाबर मंत्र वाली यह साधना अत्यंत प्रभावी है। इसके साथ ही खतरा है कि चूक होने पर माफी नहीं मिलती हैं। यक्षिणी साधक को कड़ा दंड देती हैं। जान तक जाने का खतरा रहता है। इसीलिए बिना योग्य गुरु के मार्गदर्शन के इसे नहीं करना चाहिए।

शीघ्र सिद्ध होने वाली साधना

इस साधना को श्मशान, वन या निर्जन स्थान पर करना उचित होता है। साधना की अवधि 11 और 21 दिन की होती है। कर्ण पिशाचिनी साधना से यक्षिणी की सिद्धि होती है। वह साधक को उसकी इच्छानुसार वर्तमान व भूतकाल की जानकारी कान में बता देती हैं। इसी कारण इसका नाम कर्ण पिशाचिनी साधना पड़ा है। साधना के दौरान शारीरिक और मानसिक पवित्रता का ध्यान रखना अनिवार्य है।

साधना की प्रमुख प्रयोग विधि और सावधानी

इस साधना की प्रमुख सात प्रयोग विधि है। उनमें से किसी का भी उपयोग किया जा सकता है। साधकों की सुविधा के लिए में सिर्फ दो अधिक प्रचलित विधि को दे रहा हूं। साधना काल के दौरान बिना सिले काले वस्त्र पहनें। काले हकीक की माला व काले आसान का प्रयोग करें। 24 घंटे में एक समय भोजन करें और जमीन पर सोएं। मन, क्रम और वचन से शुद्ध रहें। महिला या कन्या से बातचीत से परहेज करें। इसका अर्थ सामान्य बातचीत से नहीं, विषय-वासना से है। साधना काल में बाल व नाखून नहीं काटें।

साधना की तैयारी

कर्ण पिशाचिनी साधना से पहले संकल्प रूप में विधि, नियम, समय, स्थान आदि तय कर लें। चौघड़िया मुहुर्त का समय देखकर कभी भी दिन या रात में शुरू कर सकते हैं। होली, दिवाली, पूर्णिमा, अमावस्या व कार्तिक माह की चतुर्थी तिथि स्वयं शुभ समय है। वैसे तो यह साधना 11 व 21 दिन की ही मानी जाती है। मेरे विचार से इसे कम से कम तीन बार करने से सफलता में कोई संदेह नहीं रहता है।

पहला प्रयोग (11 दिन की साधना)

मंत्र  : ऊं नमः कर्ण पिशाचिनी अमोघ सत्यवादिनि मम कर्णे अवतरावतर अतीता नागतवर्त माननि दर्शय-दर्शय मम भविष्य कथय-कथय ह्यीं कर्ण पिशाचिनी स्वाहा।

प्रयोग विधि :   साधना स्थल को गोबर से या पानी से साफ कर लें। फिर तय समय पर वहां पवित्र मन से बैठें। पीतल या कांसे की थाली में ऊंगली का प्रयोग करते हुए सिंदूर व चमेली के तेल से त्रिशूल बनाएं। नीचे जौ रखकर ऊपर थाली रखें। फिर गाय घी और तिल के तेल का एक-एक दीपक जलाएं। इसके बाद प्रतिदिन दिन व रात में क्रमशः 11-11 माला मंत्र का जप करें।

दूसरा प्रयोग (21 दिन की साधना)

साधना की सभी विधियों में यह सर्वाधिक पवित्र व प्रभावी माना जाता है। महर्षि वेद व्यास ने भी इसी विधि से कर्ण पिशाचिनी साधना की थी। सिद्धि के लिए नियम तो एक ही बार साधना करने का है। मेरा मानना है कि इसकी तीन आवृत्ति साधक को ही मजबूती देती है।

मंत्र : ऊं ह्रीं नमो भगवति कर्ण पिशाचिनीचंडवेगिनी वद वद स्वाहा।

प्रयोग विधि : मध्य रात्रि में सबसे पहले रक्त चंदन से मंत्र लिखें। ऊं अमृत कुरू कुरू स्वाहा से लिखे हुए मंत्र की पूजा करें। इसके बाद मछली की बलि दें। बलि देते समय निम्न मंत्र पढ़ें।

ऊं कर्ण पिशाचिनी दग्धमीन बलि, गृहण गृहण मम सिद्धि कुरू कुरू स्वाहा।

मछली की बलि देने के बाद मूल मंत्र का पांच हजार बार जप करें। सुबह निम्न मंत्र से तर्पण करें।

ऊं कर्ण पिशाचिनी तर्पयामि स्वाहा।

साधना अवधि की अनुभूति

साधना अवधि में ही साधक को कान में फुसफुसाने की आवाज सुनाई देने लगती है। यह इस बात का प्रमाण है कि साधना सही दिशा में हो रही है। साधना पूर्ण होते-होते कान में स्पष्ट आवाज सुनाई देती है। कई बार यक्षिणी प्रत्यक्ष दर्शन भी देती हैं। यदि दर्शन दे तो उनसे वरदान की तरह इच्छित वचन ले लेना चाहिए। ध्यान रखें कि कर्ण पिशाचिनी साधना से जन उपयोगी कार्य हो। इसका दुरुपयोग साधक के लिए खतरनाक हो सकता है।

प्रयोग विधि : मध्य रात्रि में सबसे पहले रक्त चंदन से मंत्र लिखें। ऊं अमृत कुरू कुरू स्वाहा से लिखे हुए मंत्र की पूजा करें। इसके बाद मछली की बलि दें। बलि देते समय निम्न मंत्र पढ़ें।

ऊं कर्ण पिशाचिनी दग्धमीन बलि, गृहण गृहण मम सिद्धि कुरू कुरू स्वाहा।

मछली की बलि देने के बाद मूल मंत्र का पांच हजार बार जप करें। सुबह निम्न मंत्र से तर्पण करें।

ऊं कर्ण पिशाचिनी तर्पयामि स्वाहा।

साधना अवधि की अनुभूति

साधना अवधि में ही साधक को कान में फुसफुसाने की आवाज सुनाई देने लगती है। यह इस बात का प्रमाण है कि साधना सही दिशा में हो रही है। साधना पूर्ण होते-होते कान में स्पष्ट आवाज सुनाई देती है। कई बार यक्षिणी प्रत्यक्ष दर्शन भी देती हैं। यदि दर्शन दे तो उनसे वरदान की तरह इच्छित वचन ले लेना चाहिए। ध्यान रखें कि कर्ण पिशाचिनी साधना से जन उपयोगी कार्य हो। इसका दुरुपयोग साधक के लिए खतरनाक हो सकता है।

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