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संवेदना की मौत या कुछ और : दिल्ली मेट्रो में अपने बच्चे को गोद में लेकर फर्श पर बैठी रही महिला,किसी ने उसकी ओर..

संवेदना की मौत या कुछ और : दिल्ली मेट्रो में अपने बच्चे को गोद में लेकर फर्श पर बैठी रही महिला,किसी ने उसकी ओर..

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Death of Sambandha or something else: A woman was sitting on the floor with her child in her lap in Delhi Metro, someone pointed towards her..: बड़प्पन और शिष्टाचार हैसियत व कद में नहीं, बल्कि आचरण में होता है। अगर समाज में उच्च तकनीकी विकास के दौर में इसके अभाव के उदाहरण मिलने लगें तो बात चिंता की जरूरत है। दिल्ली मेट्रो से जुड़ा एक वीडियो इस बात की ओर इशारा कर रहा है।

 इस वीडियो में एक महिला मेट्रो के फर्श पर बैठी है, जबकि अन्य यात्री सीटों पर बैठे हैं। वीडियो देखकर ऐसा लग रहा है कि किसी ने भी महिला को सीट पर बैठने के लिए नहीं कहा। इसलिए उसे फर्श पर ही बैठना पड़ा। इसी बीच अन्य यात्री अपनी सीटों पर आराम से बैठे रहे। महिला के लिए किसी ने भी दया नहीं दिखाई। वीडियो को एक आईएएस अधिकारी अवनीश शरण ने अपने ट्विटर पर शेयर किया है। इस वीडियो को शेयर करते हुए अधिकारी ने कैप्शन में लिखा कि ‘आपकी डिग्री सिर्फ एक कागज का टुकड़ा है, अगर वो आपके व्यवहार में ना दिखे।’

ट्विटर पर मचा है हंगामा

इस वीडियो ने अब ट्विटर पर हंगामा मचा दिया है। कई लोगों ने कहा है कि आजकल लोगों में अपने साथियों के प्रति सहयोग और दया का भाव नहीं रहा। पत्रकार प्रीतिश नंदी ने वीडियो पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखा है कि ‘हम कोलकाता में पले बढ़े हैं। हमेशा खड़े रहना और एक महिला को अपनी सीट देना सिखाया गया है। भले ही महिला बच्ची हो, बुजुर्ग हो या जवान या फिर कोई दिव्यांग हो।’ इसे हमारे समय में शिष्टाचार कहा जाता था।

कहानी के दूसरे पक्ष को भी देखा गया

एक व्यक्ति ने कहानी का दूसरा पक्ष साझा करते हुए कहा कि ‘यह एक पुराना वीडियो है। यह पहले भी स्पष्ट किया गया था कि महिला को कई लोगों द्वारा सीट दी गई थी, लेकिन उसने मना कर दिया था। महिला ने फर्श पर बैठना पसंद किया, क्योंकि वह गोद में अपने बच्चे को लेकर आराम से बैठ पाती।’ वहीं एक अन्य यूजर ने भी इसी दृष्टिकोण से अपनी बात रखी और कमेंट में लिखा कि ‘हमें कैसे पता चलेगा कि किसी भी यात्री ने महिला को सीट नहीं दी। तस्वीरें सब सच नहीं बतातीं। शायद वह मां जमीन पर आराम से बैठी हो। उस स्थिति में उसने सीट पर बैठने से मना कर दिया हो। मुझे अब भी ऐसा लगता है कि मानवता अब भी बनी हुई है। कम से कम एक व्यक्ति ने तो सीट की पेशकश जरूर की होगी।’ दृष्टिकोण चाहे जिस रूप में आप रखें, लेकिन तस्वीर संकेत जरूर करती है कि हम संवेदना के धरातल पर नीचे की ओर जा रहे हैं और इसे बचाना जरूरी है।

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