Indian Railway is the lifeline of Indian life. वाकई भारतीय रेलवे भारतीय जीवन की धड़कन है। ट्रेनों के बिना आम जनता का जीवन ठप्प हो जाता है। रेलवे के हर जोन में जहां-जहां रेलवे स्टेशन नहीं होते हैं, उन स्थानों को ट्रेनों से जोड़ने की मांग होती है। हर साल नयी ट्रेनें खोलने की योजना बनती है, ताकि देश के अधिक से अधिक हिस्से एक दूसरे से जुड़ जाएं ट्रेनों में भीड़ का क्या कहना। प्रतिदिन देश के लाखों नहीं करोड़ों की संख्या में लोग लोकल और दूर की ट्रेनों में यात्रा करते हैं। यह आश्चर्यजनक लगता है कि अगर कहीं कोई ट्रेन किसी रूट पर चल रही है, तो उस ट्रेन पर यात्री ही न मिलें। हमारे नार्थ ईस्टर्न रेलवे (North Eastern Railway) में एक ऐसी ट्रेन है, जो चलती तो है, लेकिन उस पर यात्री ही नहीं मिलते। ऐसे में रेलवे भविष्य में इस ट्रेन को तो बंद करने के बारे में ही सोचेगा।
इस स्थिति में बंद हो जाती है कोई ट्रेन
रेलवे की ओर से जानकारी मिली है कि नॉर्थ ईस्टर्न (NE) रेलवे की कुछ ट्रेनें ऐसी हैं, जहां यात्रियों का बहुत टोटा है। नौतनवा से छपरा वाया गोरखपुर इंटरसिटी की हालत पूरे एनईआर में सबसे अधिक खराब बताई जा रही है। इस ट्रेन की लगभग सभी बोगियां आधी से अधिक खाली रह जा रही हैं। ऐसा कहा जाता है कि यात्रियों की संख्या 10 फीसदी से भी नीचे आने पर ट्रेन स्थगित या बंद भी हो सकती है।
क्षमता 12 साल की, यात्री 300 से कम
गोरखपुर से दिल्ली की रूट पर ट्रेनों में नौतनवा-छपरा रूट पर यात्रियों का सबसे अधिक टोटा है। इस ट्रेन में ढूंढे से भी यात्री नहीं मिल रहे हैं। नौतनवा से छपरा वाया गोरखपुर इंटरसिटी में पिछले सप्ताह ऑक्यूपेंसी महज 17 फीसदी रही, जो एक्सप्रेस ट्रेनों की सूची में सबसे निचले पायदान पर है। 1200 यात्रियों की क्षमता वाली ट्रेन में महज 260 से 280 यात्री ही यात्रा कर रहे हैं। यानी हर कोच में औसतन 15 से 18 यात्री ही सवार हो रहे हैं। रेलवे की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार,कम यात्रियों की सूची में दूसरे पायदान पर मैलानी-बिछिया ट्रेन है। इसकी ऑक्यूपेंसी भी महज 20 फीसदी के आसपास ही है। 700 की क्षमता वाली इस ट्रेन में रोजाना महज 130 से 150 यात्री ही यात्रा कर रहे हैं।