New Delhi news : विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने गुरुवार को कहा कि देश भर के 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 410 विशिष्ट पोक्सो अदालतों सहित लगभग 755 फास्ट ट्रैक विशेष अदालतें कार्यरत हैं।
राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में, विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2018 के अनुसरण में, सरकार बलात्कार और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम से सम्बन्धित लम्बित मामलों के शीघ्र परीक्षण और समयबद्ध तरीके से निपटान के लिए अक्टूबर, 2019 से विशेष पोक्सो अदालतों सहित फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालयों (एफटीएससी) की स्थापना के लिए एक केन्द्र प्रायोजित योजना को लागू कर रही है।
मेघवाल ने कहा कि योजना को शुरू में एक वर्ष के लिए लागू किया गया था, जिसे मार्च, 2023 तक बढ़ा दिया गया था। अब इस योजना को 1952.23 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ 31.03.2026 तक बढ़ा दिया गया है। इसमें से 1207.24 करोड़ रुपये केन्द्रीय हिस्से के रूप में निर्भया कोष से खर्च किये जायेंगे।
उन्होंने कहा कि मई, 2024 तक उच्च न्यायालयों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, देश भर के 30 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में 410 विशिष्ट पोक्सो (ई-पोक्सो) अदालतों सहित 755 एफटीएससी कार्यरत हैं। इन अदालतों ने अब तक 2,53,000 से अधिक मामलों का निपटारा किया है।
फास्ट ट्रैक विशेष अदालतों की स्थापना की सराहना करते हुए मंत्री ने कहा कि यह प्रयास महिला सुरक्षा, यौन और लिंग आधारित हिंसा से निपटने, बलात्कार और पोक्सो अधिनियम से सम्बन्धित लम्बित मामलों के बैकलॉग को कम करने और यौन अपराधों के पीड़ितों के लिए न्याय तक बेहतर पहुंच प्रदान करने के प्रति सरकार की अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
उन्होंने कहा कि संवेदनशील यौन अपराध मामलों को सम्भालने में विशेषज्ञ पेशेवर और अनुभवी न्यायाधीशों और सहायक कर्मचारियों के साथ, ये अदालतें सुसंगत और विशेषज्ञ-निर्देशित कानूनी कार्यवाही सुनिािचत करती हैं, जिससे यौन अपराधों के पीड़ितों को आघात और संकट को कम करने में त्वरित समाधान मिलता है और उन्हें आगे बढ़ने में सक्षम बनाया जाता है। मेघवाल ने कहा कि फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालयों ने पीड़ितों की सुविधा के लिए न्यायालयों के भीतर कमजोर गवाह बयान केन्द्र स्थापित करने और एक दयालु कानूनी प्रणाली के लिए महत्त्वपूर्ण समर्थन प्रदान करने के लिए न्यायालयों को बाल-अनुकूल न्यायालय बनाने के दृष्टिकोण को उल्लेखनीय रूप से अपनाया है।