डाॅ. आकांक्षा चौधरी
अपने देश भारत में आधी आबादी को 33 प्रतिशत आरक्षण देने का रास्ता अब साफ हो गया है। महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के दस्तखत के साथ ही सम्बद्ध विधेयक कानून बन गया। हालांकि, यह लागू परिसीमन के बाद ही होगा। अपने देश में अभी बड़े-बड़े सरकारी पदों पर 15 प्रतिशत औरतें विराजमान हैं। किसी पुख्ता आंकड़े को मानना चाहते हैं, तो जानिए कि संयुक्त राष्ट्र की तरफ़ से जो आंकड़े जारी किये गये हैं, वे बताते हैं कि पूरी दुनिया की संसदों में केवल 26 प्रतिशत औरतों की ही भागीदारी है।
कभी-कभी औरतों के विशेष शुभचिंतक संगठनों और व्यक्तियों की तरफ़ से टिप्पणी की जाती है कि भारत में औरतों को दोयम दर्जा दिया जाता है, फलना ढिमकाना। उस समय मुझे व्यक्तिगत तौर पर बड़ा आश्चर्य होता है कि बाकी देशों से तो और भी अजब-गजब खबरें आती हैं। उन पर क्या इन अक्लमंदों का ध्यान नहीं जाता ? या ये लोग सच में मंद अकल ही हैं !!
कुछ विकसित राष्ट्र में कानूनन गर्भपात का आंकड़ा 11-15 प्रतिशत दिखाता है। रिपोर्ट के इतर न जाने कितने ही अप्रत्यक्ष तौर पर गर्भपात होते हैं। कम से कम हमने आबादी तो नम्बर एक पोजीशन पर पहुंचा दी है। अरे, हमारे यहां कम उम्र की लड़कियां स्कूलों में कम ही प्रेग्नेंट होती हैं, तो गर्भपात का आंकड़ा भी कम है। अव्वल तो हम लड़कियों को पैदा होने ही नहीं देते और यदि हो भी गयीं, तो उन्हें पढ़ने के लिए स्कूल कौन भेजता है ! हमारे यहां लड़कियों के हाथ पीले करके उन्हें ससुराल में मेराइटल रेप के विक्टिम के तौर पर ट्रेनिंग दी जाती है।
कुछ और विकसित राष्ट्रों की बात करें, तो हाल तक वहां आधी आबादी को वोट डालने का अधिकार भी नहीं मिला था। अरे भई, हमारे यहां तो ऐसा बिलकुल नहीं है। हमारे यहां तो पंचायत चुनाव में घर की औरतों के बदले चार पांच बार उसके पति, उसके जेठ, देवर, चचेरे देवर, बेटे इत्यादि वोट गिरा आते हैं। यह तो परिवार की परम्परा है।
मेडिकल, डेंटल, इंजीनियरिंग, एमबीए की डिग्री हर घर की बेटियां हासिल करतीं हैं भारत में, ताकि फाॅरेन में सेटल्ड किसी एनआरआई के साथ या किसी बढ़िया बिजनेस फैमिली में लड़की का कम दहेज में ही ब्याह पक्का हो जाये। अब देखिए, थोड़ा दहेज तो स्टेटस मेंटेन करने के लिए देना जरूरी है और साथ में हाई फाई रिच फैट वेडिंग भी तो करनी है। लड़की हमारे यहां इतनी इंडिपेंडेंट है कि हीरे-जवाहरात के दो चार सेट और लाखों के डेस्टिनेशन एंड हनीमून पैकेज को तो डिजर्व करती ही है।
बलात्कार, अप्राकृतिक यौनाचार, वेश्यावृत्ति तो हर समाज का अभिन्न अंग बने बैठे हैं। कहीं-कहीं तो वहां की आर्मी के जवानों को खुश रखने के लिए कम उम्र की लड़कियां रखी जातीं हैं। भारत में ऐसी शर्मनाक घटनाएं नहीं होतीं। यहां एक जाति का दूसरी जाति पर वर्चस्व स्थापित करने को या फिर ऑनर किलिंग को कुछ पंचायतों में मान्यता मिली हुई है। पंचायतों के इतर हर घर के बाप-चाचा तो यह वीटो पावर अपनी पाकेट में लेकर घूमते हैं, चाहे अपने घर का छोरा भले काले रंग की जीप या कार में किसी और की बहन-बेटी का दुपट्टा नोच रहा हो। फिर भी कुछ विद्वान भारत में औरतों की स्थिति पर दुखी हैं। मैं तो बस जरा ऊहापोह में फंसी हूं कि भारत में औरतों को 33 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है, फिर दोयम दर्जा कहां है ? पूरा विश्व अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाता है, आज तक कभी अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया गया है ? भई, आधी आबादी को इज्जत तो बहुत मिल रही है। बस ! मेरी समझ में यह नहीं आ रहा है कि फिर इज्जत लूट कौन रहा है !!