Maharashtra politics : राजनीति भी अजीब होती है। चल गई तो लाख की और नहीं चली तो खाक की। ऐसे ही हालात बने हुए हैं महाराष्ट्र की राजनीति में। कभी शिवसेना का सर्वेसर्वा माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे आज अपनी पार्टी को बचाने के लिए कड़ा संघर्ष कर रहे है। कभी उनके खासमखास माने जाने वाले एकनाथ शिंदे आज उनके लिए बड़ी चुनौती बन चुके हैं। उद्धव ठाकरे के हर चाल को वह अपनी राजनीतिक कुशलता से धराशाई कर दे रहे हैं। स्थिति अब ऐसी आ चुकी है कि एकनाथ शिंदे उनकी पार्टी शिवसेना पर लगभग कब्जा जमा चुके हैं। उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना अब उनके ही हाथ से निकलने को है।
रैली के लिए दोनों गुटों ने कसी कमर
पार्टी पर कब्जे की कवायद के बीच दशहरा रैली के लिए शिंदे और उद्धव गुट कमर कस चुके हैं। इसी दौरान शिवसेना सांसद कृपाल तुमाने ने एक बड़ा दावा किया है। उनका कहना है कि दशहरा रैली में उद्धव ठाकरे गुट के दो सांसद और पांच विधायक एकनाथ शिंदे गुट में शामिल हो जाएंगे। गौरतलब है कि एकनाथ शिंदे गुट में शिवसेना के 40 विधायक पहले से ही हैं। इन्हीं विधायकों के बल पर एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने और उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने को मजबूर कर दिया। महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद शिवसेना के 12 सांसद भी शिंदे गुट में शामिल हो गए थे।
… तो उधव ठाकरे के गुट में सिर्फ नौ विधायक बचेंगे
अगर तुमाने का दावा सही रहा तो शिंदे गुट में 14 साांसद और 45 विधायक हो जाएंगे। उधर उद्धव ठाकरे के गुट में केवल 9 विधायक ही बच जाएंगे। पाला बदलने वाले सांसदों में एक मराठवाड़ा से तो दूसरा मुंबई से है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार गजानन कीर्तिकर उद्धव गुट से शिंदे गुट में शामिल हो सकते हैं। वह पहले भी कई बार उद्धव सरकार के कामकाज की आलोचना कर चुके हैं। वहीं मराठवाड़ा से ओमराजराजे निबलकर और संजय जाधव का नाम सामने आ रहा है। इनमें से नेता एक पाला बदल सकता है।
56 साल के इतिहास में पहली बार निकलेगी दो रैलियां
56 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा कि दो दशहरा रैलियां निकाली जाएंगी। आयोजित की जा रही हैं। शिवसेना में बगावत के बाद से ही मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे दावा कर रहे हैं कि उनका गुट ही असली शिवसेना है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने यह तय करने का काम इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया को सौंप दिया है। यदि शिंदे कैंप में विधायक और सांसद शामिल हो जाते हैं तो जाहिर सी बात है कि चुनाव आयोग भी उन्हीं के पक्ष में फैसला सुना सकता है।