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RELIGION AND SPIRITUALITY : क्या आप जानते हैं ? भगवान श्रीराम ने रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना क्यों की थी, नहीं तो जान लीजिए

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Ramayan ki katha, the story of Ramayan : रामेश्वरम में जो शिवलिंग स्थापित है, वह हिन्दुओं के लिए अत्यधिक पवित्र स्थल हैं। यह स्थल चार धामों में से एक माना जाता है। इसकी स्थापना स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले की थी। आखिर श्रीराम ने उसी स्थल पर शिवलिंग की स्थापना क्यों की थी और इसके पीछे उनका क्या उद्देश्य था। इस बात की जानकारी हम आगे साझा कर रहे हैं।

इसलिए किया रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित

धार्मिक ग्रंथ के अनुसार यह रावण के अंत की शुरुआत हो रही थी। साथ ही साथ भगवान श्री राम को लंका पर चढ़ाई कर रावण का अंत करना था, इसलिये उन्होंने अपने आराध्य देव भगवान शिवशंकर की याद में यहाँ शिवलिंग स्थापित करने का सोचा। श्रीराम के अवतार लेने का मुख्य उद्देश्य पृथ्वी को पापियों से मुक्त करना तथा राक्षसों के राजा रावण का अंत करना था। लंका पर चढ़ाई करने के कुछ ही दिनों बाद रावण का अंत हो गया। इसलिये श्रीराम ने उससे पहले अपने आराध्य भगवान शिव की स्तुति करने का निर्णय लिया। इसके लिए भगवान श्रीराम ने महाराज सुग्रीव को आदेश दिया था कि वे आसपास से सिद्धि प्राप्त सभी पंडितों और ऋषि-मुनियों को बुलाए और उनके द्वारा पूरे विधि-विधान के साथ भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाए।

महज 5 दिनों में ही बन गया समुंदर पर सेतु

रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना के दौरान श्रीराम ने अपने हाथ से उस स्थल पर समुंद्र की मिट्टी का शिवलिंग बनाया व उस पर जल, बेलपत्र इत्यादि चढ़ाएं। समुंद्र पर लंका तक सेतु का निर्माण करने में पांच दिन का समय लगा था। इतने दिनों तक भगवान श्रीराम शिवलिंग की पूजा करते रहे और भगवान शिव की स्तुति में डूबे रहे। अन्तंतः जब सेतु का निर्माण कार्य पूरा हो गया, तब उन्होंने भगवान शिव से आशीर्वाद लेकर लंका के लिए चढ़ाई शुरू की औश्र रावण रूपी महापापी का अंत किया। इस स्थल का नाम रामेश्वरम इसलिये पड़ा, क्योंकि इसे राम भगवान के ईश्वर अर्थात भगवान शिव से जोड़कर देखा गया। यह नाम स्वयं भगवान श्रीराम ने ही दिया।

समुंद्र पर बनवाया सेतु

जब प्रभु श्रीराम को हनुमान के द्वारा माता सीता के लंका में सुरक्षित होने की बात पता चली तो वे वानर सेना के साथ किष्किन्धा से तमिलनाडु के धनुषकोडी नामक स्थल पर पहुंचे। यह स्थल लंका के समीप सबसे निकट भूमि थी। यही से उन्होंने समुंद्र देव से आज्ञा लेकर नल औशर नील की सहायता से समुंद्र सेतु के निर्माण का कार्य शुरू करवाया था।

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