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Religion and spirituality : हनुमान जी का जन्म संसार की विलक्षण घटना

Hanuman jee

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सियाराम पांडेय ‘शांत’

संसार में रोज लाखों लोग जन्म लेते हैं। लाखों लोग मरते हैं।सबकी एक जीवन गाथा होती है।किसी की छोटी,किसी की बड़ी। बहुधा ये गाथाएं एक सी होती हैं।एक ही ढर्रे पर चलती हुई सी।लेकिन,हनुमान जी की जन्म गाथा रोचक भी है और प्रेरक भी। उसमें संसार को देने के लिए बहुत कुछ है। लोककल्याणकारी और परम उपकारी है भक्ति के परमाचार्य हनुमान जी का जीवन। रावण की प्राणघातिनी शक्ति से मूर्छित अपने पिता  केशरी के प्राण बचाने के लिए बचपन में ही संजीवनी बूटी लाते हैं । वही हनुमान जी संजीवनी को पहचानने में भूल कैसे कर जाते हैं,यह बौद्धिकों के लिए बहस का विषय हो सकता है लेकिन रावण जैसे चालाक शत्रु को जवाब भी देना है और उसे रामादल की शक्तियों से अवगत भी कराना है।इसीलिए वे पूरा पर्वत ही उखाड़ लाते हैं।

हनुमान जी का जन्म संसार की विलक्षण घटना है। उनका जन्म ही भगवान राम के काम के लिए हुआ है। राम काज लगि तव अवतारा। जामवंत जैसे विद्वान मंत्री ने यह बात ऐसे ही तो  कही नहीं होगी। और कोई अगर यह कह दे कि आपका जन्म क्यों हुआ है। आपके जन्म का उद्देश्य क्या है तो  क्या आप मान जाएंगे। इससे फूल कर माना कि कुप्पा हो जाएंगे लेकिन पर्वताकार होने की जहमत तो नहीं ही उठाएंगे। शरीर के फूलने और पचकने की भी अपनी सामर्थ्य होती है। पर्वताकार तो वही हो सकता है जो वाकई अतीन्द्रिय शक्तियों से युक्त हो। अणिमादि सिद्धियों का स्वामी हो। हनुमान जी शंकर सुवन केसरी नंदन।तेज प्रताप महा जग वंदन हैं। वे सामान्य जातक नहीं हैं। साक्षात शिव हैं।जिन्हें विष्णु अवतारी राम की मदद करनी है। इसलिए वे पर्वताकार भी हो लेते हैं और मशक की तरह सूक्ष्म भी हो जाते हैं।

रावण भी उनका शिष्य है।परम विद्वान है लेकिन उसके  ज्ञान और वैराग्य की आंखों को क्रोध और अहंकार का  मोतियाविन्द हो गया है। हनुमान जी को रावण का भी कल्याण करना है।इसलिए वे उसे समझाते हैं। गुरु का काम समझाना ही तो है। समझना और न समझना तो शिष्य के हाथ में है। शिष्य समझ भी ले और उस पर अमल न करे तो कोई कर भी क्या सकता है फिर हनुमान जी जैसा गुरु तो किसी भाग्यवान को ही मिलता है। ऐसे गुरु को रावण यह कह कर नकार देता है कि मिलहिं मोहिं महाकपि ज्ञानी। वह उन्हें मूढ़ सिखावनदाता भी कहता है। अपने ही गुरु को जलाकर मारने का प्रयत्न करता है। रावण वीर है तो हनुमान जी महावीर हैं। वह ज्ञानी है तो हनुमान जी महाराज महाज्ञानी हैं।ज्ञानिनाम अग्रगण्य हैं। संसार रावण जैसे मदान्ध शिष्यों से भरा पड़ा है। जो अपने अज्ञान और अंधकार की बदौलत हर क्षण अपना ही नुकसान करते रहते हैं।कदाचित ऐसे ही लोगों के लिए कहा गया है कि मूरख हृदय न चेत जो गुरु मिलहिं विरंचि सम। गुरु प्रकाश का नाम है और हनुमान जी तो परम प्रकाशवान हैं। उनके गुरु भगवान सुए के प्रकाश का तो कहना ही क्या? 

बचपन में भूख लगने पर वे भगवान सूर्य को अपने मुख में रख लेते हैं।  लोग कहते है कि हर व्यक्ति को गुरु मुख होना चाहिए। यानी गुरु के उपदेश के अनुरूप ही अपने जीवन की दशा और दिशा तय करनी चाहिए।हनुमान जी गुरु जी को ही मुख में रख लेते हैं और बदले में देवराज इंद्र का वज्र प्रहार भी  झेलते हैं। इंद्र का क्या उनकी तो मरुतों से पुरानी दुश्मनी हैं। 49 पवन उन्हीं की तो देन है। विमाता दिति के गर्भ में पल रहे भ्रूण को नष्ट करने की उनकी कोशिश नाकाम हुई थी। उसी कुल में उत्पन्न हनुमान को वे क्यों बर्दास्त कर लेते? सो उन पर वज्र प्रहार कर दिया लेकिन वायुदेव आंदोलित हो गए। बेटे के प्राण संकट में हो,तो वैसे भी  कौन पिता अपना काम करना चाहेगा और अगर करे भी तो मन नहीं लगेगा। जब सारे संसार का दम वायु के अभाव में घुटने लगा तो सभी देवताओं को आना पड़ा। हनुमान जी को तमाम वरदान देने पड़े।हालांकि हनुमान जी स्वयं भगवान शिव हैं।उनके लिए वरदान और शाप कोई मायने नहीं रखते। जिस भगवान शिव की आज्ञा से वायु बहती है।अग्नि जलती है। सूर्य तपता है।चंद्रमा और तारागण प्रकाशित होते हैं। जो भगवान शिव सम्पूर्ण सृष्टि के रचयिता,पालक और पोषक हैं। जो भगवान शिव ब्रह्मा,विष्णु और शिव स्वरूप में इस अखंड ब्रह्मांड का सृजन,पालन और संहार करते हैं,वे भगवान शिव अगर हनुमान रूप में सूर्य  को अपना गुरु बनाते हैं और उनके सामने मुख कर आसमान में पीछे  की तरफ सूर्य के रथ की गति से उड़ते हैं तो इसे उनकी महानता और संसार में गुरु के महत्व की प्रतिष्ठा नहीं तो और क्या कहा जाएगा?

हर जन्म का अपना लक्ष्य होता है।  हालांकि लक्ष्यपूर्ति  जातक के कर्म और विवेक पर निर्भर होती है। हर जातक का अपना गुण-कर्म और स्वभाव होता है,जिससे उसकी पहचान बनती है।और हनुमान जी का जन्म तो संसार के कल्याण के लिए हुआ है।संसार में धर्म और सत्य की प्रतिष्ठा के लिए हुआ है। भक्ति,ज्ञान और वैराग्य को शिखर पर पहुंचाने के लिए हुआ है।इसलिए उनके हर कर्म में एक उद्देश्य निहित है। उनका जन्म कब हुआ,कहाँ हुआ।पिता कौन थे?भगवान शिव,वायुदेव या वानरराज केशरी,यह बहस मुबाहिसे का विषय हो सकता है लेकिन हर कथा का अपना हेतु होता है।हर जन्म का अपना अभीष्ठ होता है।हम किस कुल में जन्मे,यह उतना मायने नहीं रखता,जितना यह कि इस क्षण भंगुर संसार में हमने क्या किया।अपना जीवन कैसे जिया?वह अपने लिए ही सीमित रहा या उससे संसार का भी कुछ भला हुआ। हनुमान जी के जन्म समय और जन्मस्थान को लेकर लोक भ्रांति हो सकती है लेकिन उनकी सर्वत्र उपस्थिति और अपने भक्तों पर कृपालु होने की प्रवृत्ति को नकारा नहीं जा सकता। वे अंतर्यामी प्रभु घट—घटवासी हैं। राम चरित मानस में लिखा है कि ‘जेहि सरीर रति राम सों सोई आदरहिं सुजान। रुद्रदेह तजि नेह बस बानर भे हनुमान। जानि राम सेवा सरस समुझि करब अनुमान। पुरुषा ते सेवक भए हर ते भे हनुमान।।’

  भगवान हनुमान रुद्रावतार तो हैं ही,भगवान श्रीराम के अंश भी हैं। जिस प्रकार सूर्यवंश में पुत्रेष्टि यज्ञ  की खीर से अंशों के साथ भगवान राम का अवतार हुआ, उसी तरह उसी खीर से वानरावतार यानी हनुमान जी का भी अवतार हुआ। आनंद रामायण में कथा आती है कि पुत्रेष्टि यज्ञ के बाद अग्नि देव से प्राप्त प्रसाद यानी खीर के वितरण के समय माता कैकेयी के हाथ से कुछ खीर झपट्टा मार कर चील ले गई, अंजन पर्वत पर ऋतुस्नाता माता अंजनी जब अपने बाल सुखा रही थी, उसी समय वह खीर उनकी गोद में गिर गई थी, उसी से हनुमान जी का अवतार हुआ था। कहते हैं कि ब्रह्मलोक की अप्सरा सुवर्चला के किसी कृत्य से नाराज होकर ब्रह्मा जी ने उसे मर्त्यलोक में चील होने का शाप दे दिया था। सुवर्चला के क्षमा मांगने पर उन्होंने कहा कि त्रेतायुग में जब महाराज दशरथ के पुत्रेष्टियज्ञ की खीर को वह कैकेयी के हाथ से लेकर उड़ जाएगी तब उस खीर के स्पर्श से उसका उद्धार होगा। यही हुआ भी। खीर अंजनी की गोद में गिरते ही खीर के स्पर्श प्रभाव से वह चील योनि से मुक्त हो गई और अपने मूल स्वरूप को प्राप्त कर ब्रह्मलोक की अप्सराओं के पास चली गई।  

  मानस में तुलसीदास ने जहां यह लिखा है कि ‘अंसन्ह सहित मनुज अवतारा। लैहऊं दिनकर वंस उदारा’ तो किष्किंधाकांड में वे जामवंत से हनुमान के लिए यह भी कहलवाते हैं कि ‘ राम काज लगि तव अवतारा।’ इस अर्धाली के बेहद गूढ़ निहितार्थ है। अध्यात्म रामायण में हनुमान जी ने भगवान राम से यही बात तो कही है कि शरीर से मैं आपका दास हूं और जीव दृष्टि से मैं आपका ही अंश हूं। परमार्थ की दृष्टि से जो आप हैं, वही मैं हूं।

‘ देहदृष्ट्या तु दासोहं जीवदृष्ट्या त्वदंशक:।

वस्तुतस्तु त्वमेवाहमिति मे निश्चिता मति:।।

 हनुमान जी महाराज  शिवावतार है। इसका उल्लेख वायु पुराण के पूर्वार्ध में देखने को मिलता है।

‘ अंजनीगर्भसंभूतो हनुमान पवनात्मज:। यदा जातौ महादेवो हनुमान सत्यविक्रम:।’ स्कंद महापुराण में भी हनुमान जी को साक्षात शिव कहा गया है। ‘ यो वै चैकादशो रुद्रो हनूमान स महाकपि:। अवतीर्ण: सहायार्थं विष्णोरमिततेजस:।’ अर्थात, ग्यारहवें रुद्र ही अमित तेजस्वी भगवान विष्णु की सहायता के लिए महाकपि हनुमान हुए।

  अगस्त्य संहिता में जहां यह बताया गया है कि हनुमान जी का जन्म कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को हुआ था, वहीं यह भी प्रतिपादित करने की कोशिश की है कि हनुमान के रूप में साक्षात भगवान शिव ने अवतार लिया था।

‘ ऊर्जे कृष्णचतुर्दश्यां भौमे स्वात्यां कपीश्वर:। मेष लग्ने अंजना गर्भात प्रादुर्भूत: स्वयं शिव:।’

 अर्थात कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी, मंगलवार को स्वाती नक्षत्र,मेष लग्न में भगवान शिव ने माता अंजनी के गर्भ से हनुमान के रूप में अवतार लिया। हनुमत्पंचमुखी कवच में भी हनुमान जी को रुद्रमूर्ति कहा गया है। स्कंद पुराण में वर्णित एक मंत्र में हनुमान जी के लिए रुद्रात्मकाय शब्द का प्रयोग हुआ है।

 हनुमान जी की जन्मतिथि और जन्मस्थान को लेकर विद्वानों में वैमत्य की स्थिति मिलती है। धर्मंग्रंथ भी इस समस्या का निर्णय कर पाने में समर्थ नहीं हैं। आनंद रामायण में जहां हनुमान जी के जन्म की तिथि चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी माना है, वहीं कल्प भेद से चैत्र पूर्णिमा को हनुमान जी  का जन्मदिन माना गया है, वही स्कंद पुराण भी इस मान्यता को अपनी सहमति देता है।  आनंद रामायण में लिखा है कि ‘ चैत्रे मासि सिते पक्षे हरिदिन्यांमघाभिधे। नक्षत्रे स समुत्पन्नो हनुमान रिपुसूदन:। महाचैत्री पूर्णिमायां समुत्पन्नो अंजनी सुत:। वदन्ति कल्पभेदेन बुधा इत्यादि केचन।’ स्कंद महापुराण में चैत्रपूर्णिमा को चित्रा नक्षत्र में मेष संक्रांति के वक्त हनुमान जी के जन्म की बात कही गई है।  जबकि वायुपुराण और हृषिकेश पंचांग वाराणसी का सुस्पष्ट मत है कि हनुमान जी का जन्म कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन ही हुआ था।  वाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमान जी  का जन्म कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हुआ था जबकि कुछ विद्वान  उनका जन्म चैत्र माह की पूर्णिमा को होना बताते हैं।ऐसा कल्पभेद की वजह से है।हनुमान जी के जन्मस्थल को लेकर भी विद्वानों में मतभेद की स्थिति है। कुछ विद्वानों का मानना है कि  हनुमान जी का जन्म नवसारी (गुजरात) स्थित डांग जिले में हुआ था। यह जिला पहले दंडकारण्य के अंतर्गत आता था। डांग जिला आदिवासियों का क्षेत्र है।आदिवासियों के प्रमुख देव राम हैं। आदिवासी मानते हैं कि भगवान राम वनवास के दौरान पंचवटी की ओर जाते समय डांग प्रदेश से गुजरे थे। डांग जिले के सुबिर के पास भगवान राम और लक्ष्मण को शबरी माता ने बेर खिलाए थे। शबरी भील समाज से थी। आज यह स्थल शबरी धाम नाम से जाना जाता है।

शबरी धाम से 7 किमी दूर पूर्णा नदी के पास पंपा सरोवर है। यहीं मतंग ऋषि का आश्रम था। डांग जिले के आदिवासियों की सबसे प्रबल मान्यता यह भी है कि डांग जिले के अंजना पर्वत में स्थित अंजनी गुफा में ही हनुमानजी का जन्म हुआ था। कुछ लोग हरियाणा प्रान्त के कैथल में हनुमान जी का जन्म होना बताते हैं।

 इसका प्राचीन नाम था कपिस्थल। कपिस्थल कुरू साम्राज्य का एक प्रमुख भाग था। आधुनिक कैथल पहले करनाल जिले का भाग था। पुराणों के अनुसार इसे वानर राज हनुमान का जन्म स्थान माना जाता है। कपिस्थल के राजा होने के कारण हनुमानजी के पिता को कपिराज कहा जाता था।

कैथल में पर्यटक ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं से जुड़े अवशेष भी देखे जा सकते हैं। इसके अलावा यहां पर हनुमानजी की माता अंजनी का एक प्राचीन मंदिर भी है और अजान किला भी। कुछ लोग मानते हैं कि हनुमानजी का जन्म झारखंड राज्य के गुमला जिला मुख्‍यालय से 20 किलोमीटर दूर आंजन गांव की एक गुफा में हुआ था। इसी जिले के पालकोट प्रखंड में बालि और सुग्रीव का राज्य था।  कहा तो यह भी जाता है कि यहीं पर शबरी का आश्रम था।

जंगल और पहाड़ों में से घिरे इस आंजन गांव में एक अति प्राचीन गुफा है। यह गुफा पहाड़ की चोटी पर स्थित है। माना जाता है कि यहीं पर माता अंजना और वानरराज केसरी रहते थे। यहीं पर हनुमानजी का जन्म हुआ था। गुफा का द्वार बड़े पत्थरों से बंद है लेकिन छोटे छिद्र से आदिवासी लोग उस स्थान के दर्शन करते हैं और अक्षत व पुष्प चढ़ाते हैं। लेकिन कुछ लोग मानते हैं कि यह स्थान हनुमान जी के जन्म से जुड़ा है। माना जाता है कि इस गुफा की लंबाई 1500 फीट से अधिक है। यह भी कि इसी गुफा से माता अंजना खटवा नदी तक जाती थीं और स्नान कर लौट आती थीं। खटवा नदी में एक अंधेरी सुरंग है, जो आंजन गुफा तक ले जाती है।  जन मान्यता तो यह भी है कि इस गुफा के आंजन पहाड़ पर रामायण काल में ऋषि-मुनियों ने सात जनाश्रम स्थापित किए थे। शबर,वानर, निषाद्, गृद्ध, नाग, किन्नर  और राक्षस नामक सात जनजातियां निवास करतीं थीं । जनाश्रम के प्रभारी थे- अगस्त्य, अगस्त्यभ्राता, सुतीक्ष्ण, मांडकणि, अत्रि, शरभंग व मतंग।

  हनुमान जी का जन्म रामकाज के लिए हुआ था। वे आजीवन भगवान राम के प्रति विनम्र रहे। उनके बारे में गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है कि ‘ वे भगवान राम के सेवक भी हैं, स्वामी भी हैं और मित्र भी हैं। ‘सेवक स्वामि सखा सिय पी के। हित निरुपधि सब विधि तुलसी के।’रंगनाथ रामायण की मानें तो हनुमान जी माता अंजनी के गर्भ में 20 हजार वर्ष तक रहने के बाद शिशु रूप में अवतरित हुए। मोल्ल रामायण में मिलता है कि वायुदेव की कृपा से हनुमान जी का जन्म हुआ। भगवान हनुमान स्मरण मात्र से ही अपने भक्तों का कल्याण करते हैं। हनुमान जी के दोनों ही दिन प्रिय हैं। शनिवार भी और मंगलवार भी। दोनों ही दिन उनके जन्म होने की मान्यता है। हनुमान जयंती के दिन उनकी आराधना करने से सारे अरिष्ट नष्ट होते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है। इस दिन  पूजन—भजन करने वालों पर वे विशेष अनुग्रह करते हैं, ऐसा विद्वानों का मत है।  

लेखक : सियाराम पांडेय ‘शांत’

संपर्क: आर.एच.ए-2,रॉयल ग्रीन सिटी कॉलोनी, लौलाई, चिनहट,लखनऊ,उत्तर प्रदेश।

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