Mumbai news, Bollywood news: संजीव कुमार, जिन्हें उनके करीबी प्यार से हरिभाई कहते थे, हिंदी सिनेमा के सबसे प्रतिभाशाली और बहुआयामी अभिनेताओं में से एक थे। उनका जीवन और करियर एक अलग ही मिसाल है – एक ऐसा कलाकार जिसने अभिनय को सिर्फ पेशा नहीं, बल्कि एक भावनात्मक अनुभव बना दिया। नौ जुलाई 1938 को जन्मे और महज 47 साल की उम्र में छह नवंबर 1985 को इस दुनिया को अलविदा कह देने वाले इस कलाकार ने अपने छोटे से करियर में लगभग 165 फिल्मों में काम किया।
भविष्यवाणी कि थी वे बुढ़ापा नहीं देख पाएंगे
संजीव कुमार को अक्सर उम्रदराज़ किरदारों में देखा गया और ये चुनाव महज एक्टिंग स्किल नहीं था, बल्कि उनकी सोच और किस्मत से जुड़ा था। दिवंगत अभिनेत्री तबस्सुम के अनुसार संजीव ने एक बार बताया था कि एक हस्तरेखाविद् ने भविष्यवाणी की थी कि वे बुढ़ापा नहीं देख पाएंगे। इसीलिए वे फिल्मों में अक्सर बुजुर्गों की भूमिका निभाते थे, ताकि वह जीवन जी सकें जो उन्हें असल में नसीब नहीं होना था। शोले’ में 37 की उम्र में ठाकुर और ‘त्रिशूल‘ में 40 की उम्र में अमिताभ और शशि कपूर के पिता की भूमिका निभाकर उन्होंने यह साबित किया कि उम्र महज़ एक संख्या है, कला और किरदारों की कोई उम्र नहीं होती।
‘नया दिन नई रात’ में एक साथ नौ किरदार निभाकर नया रिकार्ड बनाया
संजीव कुमार ने थिएटर से शुरुआत की थी और वहीं से उनका बुज़ुर्ग किरदारों की तरफ झुकाव भी शुरू हुआ। सचिन पिलगांवकर और ए.के. हंगल जैसे कलाकारों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि हरिभाई अपने शुरुआती दिनों से ही परिपक्व और गंभीर भूमिकाओं में गहराई से उतर जाते थे। हालांकि, वह सिर्फ उम्रदराज़ किरदारों तक सीमित नहीं रहे। ‘अंगूर‘, ‘कोशिश‘, ‘खिलौना‘, और ‘पति पत्नी और वो‘ जैसी फिल्मों में उन्होंने हास्य, रोमांस और सामाजिक भावनाओं को भी उसी आत्मीयता से निभाया। फिल्म ‘चेहरे पे चेहरा‘ में उन्होंने हिंदी सिनेमा में पहली बार प्रोस्थेटिक मेकअप का इस्तेमाल किया और ‘नया दिन नई रात’ में एक साथ नौ किरदार निभाकर एक नया रिकार्ड बनाया।
संजीव कुमार की कला, सादगी और गहराई ने उन्हें एक अलग ही दर्जा दिया। परेश रावल की किताब ‘संजीव कुमार: द एक्टर वी आल लव्ड’ में कहा गया है कि जब वे स्क्रीन पर आते थे तो दर्शकों को लगता था कि अब कुछ गलत नहीं होगा। वह सिर्फ एक अभिनेता नहीं, बल्कि अभिनय की आत्मा थे।



