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Women Reservation Bill : नारी शक्ति वंदन का दोनों सदनों में अभिनन्दन, क्‍या अलग से मिलेगा एससी-एसटी आरक्षण?

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National news, national update, parliament news, women reservation bill, nari Shakti Bandan  : नये संसद भवन के दोनों सदनों में महिला आरक्षण बिल पास हो गया। इस नयी संसद में केन्द्र सरकार की ओर से पेश किया गया यह पहला विधेयक है। केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने संसद के निचले सदन में यह बिल पेश किया। यह बिल पर 20 सितम्बर को लोकसभा और 21 सितम्बर को राज्य सभा में पास हो गया। इस बिल की खासियत यह है कि इसमें महिलाओं को लोकसभा और राज्‍यों की विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण की सुविधा मिलेगी। 

महिला आरक्षण कब तक दिया जायेगा ?

यह बिल करीब 27 सालों से लटका था। साल 1996 में जब यह पेश किया गया था, तो उस समय उसके प्रस्ताव में लिखा गया था कि इसे सिर्फ 15 साल के लिए ही लागू किया जायेगा। इसके बाद इसके लिए फिर से विधेयक लाकर संसद के दोनों सदनों से पारित कराना होगा। कानून के जानकारों के मुताबिक, महिला आरक्षण की 15 साल की अवधि लोकसभा में इसके लागू होने के बाद से ही शुरू होगी। अगर यह 2029 में लागू हो जाता है, तो यह 2044 तक लागू रहेगा। इसके बाद दोबारा विधेयक संसद में लाना होगा और पूरी प्रक्रिया से गुजरना होगा।

महिला सांसदों की बढे़गी संख्या

महिला आरक्षण लागू होने के बाद संसद के निचले सत्र में कम से कम 181 महिला सांसद होंगी। वर्तमान समय में लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 78 है। अगर परिसीमन के बाद संसद सीटों की संख्‍या बढ़ती है, तो महिला सांसदों की संख्‍या में भी बढ़ोतरी होगी। अगर राज्‍यों की बात की जाये, तो फिलहाल ज्‍यादातर विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्‍व 15 फीसदी से भी कम है। वहीं, कई राज्‍य विधानसभाओं में तो महिलाओं की हिस्‍सेदारी 10 फीसदी से भी कम है। इसमें देश के 19 राज्यों की विधानसभाएं शामिल हैं। इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, ओड़िशा, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा और पुडुचेरी है।

27 सालों से लटका था बिल

बता दें कि महिला आरक्षण बिल 27 सालों से लटका था। साल 1996 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने पहली बार सदन में महिला आरक्षण बिल पेश किया था। उस समय सदन में भारी विरोध के कारण पास नहीं हो पाया। इसके बाद अलग-अलग सरकारों में समय-समय पर बिल सदन में पेश किया गया, लेकिन भारी विरोध के चलते अभी तक इसे मंजूरी नहीं मिल पायी है।

जब सदन में फाड़ी गयीं बिल की कॉपियां

साल 1998 और 1999 में बिल का सबसे बड़ा विरोध हुआ। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में बिल को लेकर सदन में जबरदस्त हंगामा हुआ। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सिर्फ जोरदार बहसबाजी के अलावा कानून मंत्री के हाथ से बिल छीन कर उसकी कॉपियां सदन में फाड़ दी गयी थीं। इसके बाद साल 2008 में यूपीए सरकार में बिल को राज्यसभा में मंजूरी मिल गयी, लेकिन लोकसभा में पेश नहीं हो पाने के कारण बिल 27 सालों से बिल लटका था।

क्‍या अलग से मिलेगा एससी-एसटी आरक्षण?

लोकसभा और राज्‍य विधानसभाओं में एससी-एसटी वर्ग के लिए पहले से आरक्षित सीटों में ही महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण मिलेगा। अभी लोकसभा में 47 सीटें एसटी और 84 सीटें एससी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। संसद की मौजूदा स्थिति के आधार पर कहा जा सकता है कि कानून बनने के बाद 16 सीटें एसटी और 28 सीटें एससी वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। बता दें कि लोकसभा में ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण की कोई व्‍यवस्‍था नहीं है।

संदर्भ पर 27 साल बाद कैसे एक हुए सभी दल ?

केन्द्र सरकार ने मंगलवार को गणेश चतुर्थी के दिन महिला आरक्षण बिल नारी शक्ति वंदन अधिनियम के नाम से लोकसभा में पेश किया। इस बिल के विरोध में कोई भी बड़ी पार्टी अबतक सामने नहीं आयी है। चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी ; दोनों इस मुद्दे पर एकसाथ हैं। ऐसे में लोकसभा और राज्यसभा में इसे आसानी से समर्थन मिल सकता है। यह बिल राज्यसभा से साल 2010 में पास हुआ था। उस समय देश में यूपीए की सरकार थी, लेकिन अब इसे दोबारा से पास करवाना होगा, क्योंकि केन्द्र सरकार ने इस बार बिल का नाम बदल दिया है। इस बार इसके पास होने में कोई भी दिक्कत नजर नहीं आ रही है।

कई राज्यों का मिल सकता है समर्थन

यदि किसी भी लेवल पर विरोध सामने आता भी है, तो उस दल को इसका भुगतान करना पर सकता है। विधान सभाओं से भी इसके पास होने में कोई बड़ी दिक्कत नहीं दिखाई दे रही है। कम से कम 50 फीसदी विधान सभाओं का समर्थन इस बिल को चाहिए। चूंकि, बिल पर कांग्रेस भी साथ है, तो मुश्किल बिलकुल नहीं लग रही है। वर्तमान समय में हिमाचल प्रदेश, छतीसगढ़, राजस्थान और कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है। देश में 11 राज्य ऐसे हैं, जहां या तो भाजपा स्पष्ट बहुमत से सरकार में है या फिर किसी न किसी दल या दलों के समर्थन से सरकार चला रही है। लेकिन, सीएम भाजपा के हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र ऐसा राज्य है, जहां ज्यादा विधायक होने के बावजूद भाजपा का सीएम नहीं है। बावजूद इसके समर्थन में कोई दिक्कत नहीं आने वाली। इतने समर्थन से ही यह बिल आसानी से विधानसभाओं से भी पास हो जायेगा। हालांकि, यह संख्या इससे ज्यादा भी होने की सम्भावना है। क्योंकि मेघालय, नागालैंड, सिक्किम में भाजपा का सीएम जरूर नहीं है, लेकिन वह सरकार में शामिल है। लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभाओं के समर्थन के बाद बिल पर राष्ट्रपति के दस्तखत होंगे और ‘नारी शक्ति वंदन’ यानी महिला आरक्षण बिल कानून के रूप में देश के सामने होगा।

नारी शक्ति की भागीदारी

लोकसभा में 543 सीटों में सिर्फ 78 महिला सांसद हैं। राज्यसभा में 238 में 31 महिला सांसद हैं। छतीसगढ़ में महिला विधायकों की संख्या 14 फीसदी है। पश्चिम बंगाल में महिला विधायक 13.7 फीसदी हैं। इसके अलावा झारखंड में यह संख्या 12.4 फीसदी है। उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड, दिल्ली में 10 से 12 फीसदी महिला विधायक हैं, जबकि अन्य सभी राज्यों में महिला विधायकों की संख्या 10 फीसदी से कम है।

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