– 

Bengali
 – 
bn

English
 – 
en

Gujarati
 – 
gu

Hindi
 – 
hi

Kannada
 – 
kn

Malayalam
 – 
ml

Marathi
 – 
mr

Punjabi
 – 
pa

Tamil
 – 
ta

Telugu
 – 
te

Urdu
 – 
ur

होम

वीडियो

वेब स्टोरी

Dharm: आदि शक्ति की उपासना का पर्व है चैत्र नवरात्र

20200910 205801 696x892 1

Share this:

Chaitra Navratra is the festival of worship of Adi Shakti,dharm, religious, Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, jyotish Shastra, dharmik totke, dharm adhyatm : आदि शक्ति की उपासना का पर्व है चैत्र नवरात्र। इसमें कम मेहनत में ही साधक को मनचाहा फल प्राप्त होता है। वैसे भी प्रत्येक जीवात्मा के लिए आवश्यक है शक्ति। इसलिए आदिकाल से न सिर्फ मनुष्य, बल्कि ईश्वर भी आदि शक्ति की उपासना करते रहे हैं। तभी तो ऋग्वेद में देवी रूप में उषा की स्तुति लगभग तीन सौ बार की गई है। भारत में शक्ति उपासना की परंपरा बहुत पुरानी है। माना जाता है कि जब सृष्टि आरंभ हुई, उस समय ब्रह्मा दैत्यों से भयभीत होकर भगवान विष्णु को जगाने लगे। इसके लिए उन्होंने शक्ति की स्तुति की। भारत में शक्ति की उपासना तीन प्रकार से होती रही है। वैदिकी, पौराणिकी तथा तांत्रिकी। जगत की उत्पक्ति ही शक्ति (प्रकृति) द्वारा हुई है। जगत की सृष्टि, स्थिति एवं संहार क्रिया का कारण प्रकृति ही है।

सृष्‍टि की कारक है शक्‍ति 

ऋग्वेद में शक्ति पूजा के रूप में सर्वप्रथम अदिति की स्तुति की बात कही गई है। इसके अनुसार, अदिति सर्वत्र हैं। यही स्रष्टा और सृष्टि भी हैं। यही अंतरिक्ष, माता-पिता और पुत्र भी हैं। विश्वदेव भी अदिति हैं। उपनिषद ग्रंथों में इसी शक्ति को अजा कहा गया है। रात्रि सूक्त में अदिति को ही शक्ति का रूप माना गया है, जो जगत की उत्पत्ति, पालन और फिर उसका संहार भी करती हैं। देवसूक्त में वे स्वयं कहती हैं कि मैं ही रुद्र, वसु, आदित्य तथा विश्व देवों के रूप में विचरण करती हूं। योग शास्त्र में वर्णित कुंडलिनी शक्ति भी यही आद्या शक्ति ही हैं, जिसे योगी गण उत्थान करके षड्चक्र भेदन करते हुए सदाशिव से मेल कराते हैं। इन्हीं आदि शक्ति की उपासना का पर्व है चैत्र नवरात्र।

मात्र रूप है शक्‍ति

वेदों के अनुसार, सृष्टि संचालन में प्रकृति की ही प्रधानता है। कहा गया है कि सृष्टि की दो धाराएं हैं- स्त्री एवं पुरुष। मूल प्रकृति से स्त्री धारा का विशेष संबंध है। अत: यह कथन सर्वथा सत्य है कि इसीलिए स्त्री को प्रकृति माना गया है। देवी भागवत के अनुसार, सभी देवियां तथा समस्त स्त्री जाति प्रकृति की अंशरूपिणी हैं। ब्रह्म शक्ति जब ब्रह्मोन्मुख होती है, तब प्रकृति कही जाती है। वही जब ब्रह्म से विमुख हो जाती है, तब विकृति हो जाती है। भारतीय परंपरा में प्रकृति पूजा का विधान है, न कि विकृति पूजा का। लोक में यह बात प्रत्यक्ष देखी जाती है कि संकट के समय इंसान माता को ही पुकारता है। माता कहकर वह आद्या शक्ति का ही स्मरण करता है।

जन्‍म से मृत्‍यु तक शक्‍ति का महत्‍व

‘आपदि मातैव शरणम’ अर्थात विपत्ति में माता ही शरण देती हैं। यही कारण है कि भारत में सदा मातृ शक्ति की उपासना होती रही है। वाक व्यवहार में नाम स्मरण के समय शक्तिमान से पूर्व शक्ति का नाम लिया जाता है। सीता-राम, राधे-श्याम, लक्ष्मी-नारायण, गौरी-शंकर, श्री-गणेश आदि। शक्ति के बिना शक्तिमान भी अपूर्ण हैं। परब्रह्म स्वरूपिणी जगत जननी दुर्गा विश्व की अंबा हैं। यही जगदंबा समस्त प्राणियों में मातृरूप में अवस्थित हैं। ये एक होते हुई भी भक्तों पर कृपा करने के लिए अनेक रूप धारण करती हैं। यही नारायणी रूप में श्री और लक्ष्मी हैं। भक्तों को शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य, विद्या बुद्धि तथा आर्थिक संपत्ति प्रदान करने के लिए ही महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती इन तीनों रूपों को धारण करती हैं। वैदिक पूजन परंपरा में सप्तमातृका, षोडशमातृका, चौंसठ योगिनियों की पूजा का विधान है। बच्चे का जन्म होने पर छठे दिन षष्ठी देवी की पूजा की जाता है।

दुर्गा के नौ रूपों की उपासना

आदि शक्ति की उपासना का पर्व है चैत्र नवरात्र। नवरात्र के नौ दिनों में क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्धिदात्री के रूप में दुर्गा की उपासना होती है। नवरात्र के समय इन सभी रूपों की आराधना की जाती है। अदिति, उषा, इंद्राणी, इला, भारती, होला, सिनीवाली, श्रद्धा, पृश्नि की उपासना प्रत्येक मांगलिक कार्यों में सदा से होती आई है। उषा का अर्थ भले ही प्रभात हो, लेकिन देवी रूप में इनकी स्तुति ऋग्वेद में लगभग तीन सौ बार की गई है। ऋग्वेद में शची, इंद्राणी, वाक देवी तथा नदियों की स्तुति देवी रूप में की गई है। महामृत्युंजय मंत्र त्रयंबक तीन अंबाओं के बिना पूर्ण नहीं माना जाता है। गायत्री एवं सावित्री मंत्रों का संबंध शक्ति से ही है।

जगदंबा का स्‍वरूप

मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, ‘स्‍त्रीय: समस्ता सकला जगत्सु’ अर्थात संसार में समस्त स्‍त्रियां जगदंबा की अंश हैं। परमात्मा की संपूर्ण शक्ति ही जगदंबा है। मनु ने कहा है-यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता:। शक्तिस्वरूपिणी स्त्री की पूजा को प्रधान माना गया है। ईश्वर भी जब अवतार लेकर पृथ्वी पर आते हैं, तब वह शक्ति की उपासना करते हैं। राम की शक्ति पूजा, कृष्ण की अंबिका वन में दुर्गा पूजा, परशुराम का त्रिपुरा देवी की आराधना, उत्तरकालीन बौद्धों की तारा देवी की आराधना शक्ति की उपासना परंपरा की ओर इंगित करता है। संपूर्ण विश्व में जहां कहीं शक्ति का स्फुरण दिखता है, वहां जगदंबा की ही सत्ता है। शक्ति के बिना कोई भी प्राणी किसी भी कार्य को संपन्न नहीं कर सकता है।

Share this:




Related Updates


Latest Updates