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Dharm- adhyatm 16 मातृकाएं हैं जगत का आधार, उनके बिना कल्याण नहीं

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Mother power is the foundation of universe : 16 मातृकाएं हैं जगत का आधार। उनके बिना कल्याण नहीं हो सकता है। वही सृष्टि का आधार हैं। त्रिदेव भी उनके बिना निरर्थक हैं। इनके कई रूप हैं जिनका अलग-अलग लेखों में वर्णन किया जा रहा है। इस लेख में मैं चर्चा कर रहा हूं 16 मातृकाओं की। उनके बिना मातृशक्ति की चर्चा अधूरी है। ये सोलह मातृकाएं जगत कल्याण में लगी रहती हैं। ये भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करती हैं। मंगल कामना और कार्य के निर्विध्न संचालन के लिए इन 16 मातृकाओं का पूजन अवश्य करें। अनुष्ठान में अग्निकोण की वेदिका या पाटे पर सोलह कोष्ठक के चक्र की रचना कर उत्तर या पूर्व मुख के क्रम से सुपारी व अक्षत पर क्रमश: इन 16 मातृकाओं की पूजा की जाती है। इसी से कार्य की सिद्धि होती व संपूर्ण फल की प्राप्ति होती है।

16 मातृकाएं और उनके अलग-अलग रूप

ये 16 मातृकाएं हैं जगत का आधार। उनके नाम हैं- गौरी, पद्मा, शची  मेघा, सावित्री, विजया, जया, पष्ठी, स्वधा, स्वाहा, माताएँ , लोकमताएं, धृति, पुष्टि, तुष्टि तथा कुल देवता। नीचे उनके रूपों की जानकारी दी जा रही है। साथ ही उनके विशेषता व आराधना मंत्र भी हैं। उनकी उपासना से मनोकामना पूरी होती है। जरूरत है भक्ति और नियमित साधना की।

गौरी हैं पहली मातृका

यश, मंगल, सुख-सुविधा आदि व्यवहारिक पदार्थ तथा मोक्ष-प्रदान करना इनका स्वभाविक गुण है। वे शरणगतवत्सला एवं तेज की अधिष्ठात्री हैं। माता गौरी की कृपा से ही सूर्य में तेज है। महादेव को शक्ति संपन्न बनाए रखने में इनका अहम योगदान है। माता गौरी दु:ख, शोक, भय, उद्वेग को सदा के लिए नष्ट कर देती हैं। इसलिए देवी भागवत में कहा गया है कि बिना गौरी-गणेश की पूजा के कोई कार्य सफल नहीं हो सकता।

आराधना मंत्र

हेमाद्रितनयां देवीं वरदां शंकरप्रियाम्।

लम्बोदरस्य जननीं गौरीमावाहयम्यहम्।

पद्मा दूसरी मातृका

माता लक्ष्मी का ही रूप हैं पद्मा। जब भगवान कल्कि का अवतार ग्रहण करते हैं तब माता लक्ष्मी का नाम पद्मा होता है। पद्मा का अविर्भाव समुद्र मंथन के पश्चात हुआ है। वह ऐश्वर्य, वैभव, धन-धान्य व समृद्धि को प्रदान करती हैं। यह विष्णुप्रिया हमेशा कमल पर विराजमान रहती हैं।

आराधना मंत्र

पद्मापत्रेक्षणायै च पद्मास्यायै नमो नम:।

पद्मासनायै पदमिन्यै वैष्णव्यै च नमो नम:।

तीसरी मातृका है षष्ठी

माता षष्ठी का आविर्भाव ब्रह्मा के मन से हुआ है। अतः ब्रह्मा की मानस कन्या कही जाती हैं। 16 मातृकाएं जगत का आधार हैं। इनमें से ये जगत पर शासन करती हैं। इनके सेनापति कुमार स्कंद हैं। ब्रह्मा की आज्ञा से इनका विवाह कुमार स्कंद से हुआ। माता पष्ठी को देवसेना भी कहा जाता है। मूल प्रकृति के छठे अंश से प्रकट हुई है। इसलिए इनका नाम षष्ठी देवी है। माता पुत्रहीन को पुत्र, प्रियाहीन को पत्नी और निर्धन को धन देती हैं। विश्व के तमाम शिशुओं पर इनकी कृपा बरसती है। प्रसव गृह में छठे दिन, 21वें दिन और अन्नप्राशन के अवसर पर षष्ठी देवी की पूजा की जाती है।

आराधना मंत्र

मयूरवाहनां देवी खड्गशक्तिधनुर्धराम्।

आवाहये देवसेनां तारकासुरमर्दिनीम्।

मेधा हैं चौथी मातृका

मत्स्य पुराण के अनुसार यह आदि शक्ति प्राणिमात्र में शक्ति रूप में विद्यमान हैं। हममें जो निर्णयात्मिका बुद्धि शक्ति है वह आदिशक्ति स्वरूप ही है। माता मेधा बुद्धि में स्वच्छता लाती हैं। इसलिए बुद्धि को प्रखर और तेजस्वी बनाने एवं उसकी प्राप्ति के लिए मेधा का आह्वान एवं पूजन करना चाहिए।

आराधना मंत्र

वैवस्तवतकृत फुल्लाब्जतुल्याभां पद्मवसिनीम्।

बुद्धि प्रसादिनी सौम्यां मेधाभावाहयाम्यहम्।

पांचवीं मातृका शची

ऋग्वेद के अनुसार विश्व में जितनी भी सौभाग्यशाली नारियां हैं उनमें शची (इंद्राणी) सबसे अधिक सौभाग्यशालिनी हैं। इनके रूप से सम्मोहित होकर ही देवराज इंद्र ने इनका वरण किया। शची पवित्रता में श्रेष्ठ और स्त्री जाति के लिए आदर्श हैं। रूप, यौवन और कामुकता का अभय वरदान प्राप्ति के लिए शची की आराधना श्रेयकर माना जाता है।

आराधना मंत्र

दिव्यरूपां विशालाक्षीं शुचिकुण्डलधारिणीम।

रत्न मुक्ताद्यलडंकररां शचीमावाहयाम्यहम्।

विजया हैं छठी मातृका

विजया का विशेष स्थान है। ये विष्णु, रूद्र और सूर्य के श्रीविग्रहों में निवास करती हैं। जो प्राणी माता विजया की आराधना करता है वह सदा विजयी होता है। इसलिए कहा जाता है कि 16 मातृकाएं हैं जगत का आधार।

आराधना मंत्र

विष्णु रूद्रार्कदेवानां शरीरेष्पु व्यवस्थिताम्।

त्रैलोक्यवासिनी देवी विजयाभावाहयाभ्यहम।

जया हैं सातवीं मातृका

प्राणी को चहुं ओर से रक्षा प्रदान करने वाली माता जया का प्रादुर्भाव आदि शक्ति के रूप में हुआ है। दुर्गा सप्तशती के कवच में आदि शक्ति से प्रार्थना की गई है-‘जया में चाग्रत: पातु विजया पातु पृष्ठत:’। अर्थात हे मां, आप जया के रूप में आगे से और विजया के रूप में पीछे से मेरी रक्षा करें।

आराधना मंत्र

सुरारिमथिनीं देवी देवानामभयप्रदाम्।

त्रैलोक्यवदिन्तां देवी जयामावाहयाम्यहम्।

स्वधा हैं आठवीं 

पुराणों के अनुसार जब तक माता स्वधा का आविर्भाव नहीं हुआ था तब तक पितरों को भूख और प्यास से पीड़ित रहना पड़ता था। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार स्वधा देवी का नाम लेने मात्र से ही समस्त तीर्थ स्नान का फल प्राप्त हो जाता है और संपूर्ण पापों से मुक्ति मिल जाती है। ब्राह्मण वायपेय यज्ञ के फल का अधिकारी हो जाता है। यदि स्वधा, स्वधा, स्वधा, तीन बार उच्चारण किया जाए तो श्राद्ध, बलिवैश्वदेव और तर्पण का फल प्राप्त हो जाता है। माता याचक को मनोवंछित वर प्रदान करती है।

आराधना मंत्र

ब्रह्मणो मानसी कन्यां शश्र्वत्सुस्थिरयौवनाम्।

पूज्यां पितृणां देवानां श्राद्धानां फलदां भजे।

नौवीं हैं स्वाहा

हवन के दौरान जो आहुति दी जाती है उसे संबंधित देवता तक पहुंचाने में स्वाहा देवी ही मदद करती हैं। इन्हीं के माध्यम से देवताओं का अंश उनके पास पहुंचता है। इनका विवाह अग्नि से हुआ है। अर्थात मनुष्य और देवताओं को जोड़ने की कड़ी का काम माता अपने पति अग्नि देव के साथ मिलकर करती हैं। इनकी पूजा से मनुष्य की समस्त अभिलाषाएं पूर्ण हो जाती हैं।

आराधना मंत्र

स्वाहां मंत्राड़्गयुक्तां च मंत्रसिद्धिस्वरूपिणीम।

सिद्धां च सिद्धिदां नृणां कर्मणां फलदां भजे।

10वीं मातृका हैं मातर: (मातृगण:)

मातरः की महिमा निराली है। इनके कार्यों को देखकर सहज अंदाजा लगता है कि 16 मातृकाएं हैं जगत का आधार। इन्होंने शुंभ-निशुंभ के अत्याचारों से जगत को मुक्ति दिलाई। उसके बाद ही समस्त लोकों में फिर दैवीय शक्ति की स्थापना हुई। माता अपने अनुयायियों की रक्षा हेतु जब भी आवश्यकता होती है, प्रकट होती हैं। वे तमाम राक्षसी प्रकृति से भक्तों की रक्षा करती हैं। इनके उपासक को अच्छे विचार व कर्मों वाला होना चाहिए।

आराधना मंत्र

आवाहयाम्यहं मातृ: सकला लोकपूजिता:।

सर्वकल्याणरूपिण्यो वरदा दिव्य भूषिता:।

सावित्री हैं 11वीं

सविता सूर्य की अधिष्ठातृ होने से ही इन्हें सावित्री कहा जाता है। इनका आविर्भाव भगवान श्रीकृष्ण की जिह्वा के अग्रभाग से हुआ है। सावित्री वेदों की अधिष्ठात्री देवी हैं। संपूर्ण वैदिक वांङमय इन्हीं का स्वरूप है। ऋग्वेद में कहा गया है कि माता सावित्री के स्मरण मात्र से हीप्राणी के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और उसमें अभूतपूर्व नई ऊर्जा के संचार होने लगता है।

आराधना मंत्र

ऊं हृीं क्लीं श्री सावित्र्यै स्वाहा।

12वीं मातृका हैं लोक माताएं

राक्षसराज अंधकासुर के वध के उपरांत उसके रक्त से उन्पन्न होने वाले अनगिनत अंधक का भक्षण करने करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने अंगों से बत्तीस मातृकाओं की उत्पति की। ये सभी महान भाग्यशालिनी बलवती तथा त्रैलोक्य के सर्जन और संहार में समर्थ हैं। समस्त लोकों में विष्णु और शिव भक्तों की ये लोकमाताएं रक्षा कर उसका मनोरथ पूर्ण करती हैं।

मंत्र

आवाहये लोकमातृर्जयन्तीप्रमुखा: शुभा:। नानाभीष्टप्रदा शान्ता: सर्वलोकहितावहा:।

आवाहये लोक मातृर्जगत्पालन संस्थिता:। शक्राद्यैरर्चिता देवी स्तोत्रैराराधनैरतथा।

13वीं हैं घृति

माता घृति का रहस्य अद्भुत है। ये माता सती के आत्मदाह के बाद का प्रकटीकरण है। जिस पिता के कारण आत्मदाह किया इस रूप में उन्हीं के उद्धार का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने दक्ष के प्रजापति पद से पदच्युत होने के पश्चात् उनके हित के लिए साठ कन्याओं के रूप में खुद को प्रकट किया। उनकी पूजा कर दक्ष पुन: प्रजापति हो गए। मत्स्य पुराण के अनुसार पिंडारक धाम में आज भी देवी घृति रूप में विराजमान हैं। माता घृति की कृपा से ही मनुष्य धैर्य को प्राप्त करता हुआ धर्म मार्ग में प्रवेश करता है। यह साबित करती हैं कि 16 मातृकाएं हैं जगत का आधार।

नोट-अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका सीधा आवाहन ही किया जाता है। इसके बाद पूजन किया जाता है। इनके लिए अलग से मंत्र की आवश्यकता नहीं है।

पुष्टि हैं 14वीं

माता पुष्टि की कृपा से ही संसार के समस्त प्राणियों का पोषण होता है। इसके बिना सभी प्राणी क्षीण हो जाते हैं।

ध्यान व उपासना के लिए मंत्र

पोषयंती जगत्सर्व शिवां सर्वासाधिकाम।

बहुपुष्टिकरीं देवी पुष्टिमावाहयाम्यहम।

तुष्टि का 15वां स्थान

माता तुष्टि के कारण ही प्राणियों में संतोष की भावना बनी रहती है। माता समस्त प्राणियों का प्रयोजन सिद्ध करती रहती हैं।

आराधना मंत्र

आवाहयामि संतुष्टि सूक्ष्मवस्त्रान्वितां शुभाम्।

संतोष भावयित्रीं च रक्षन्तीमध्वरं शुभम्।

कुलदेवता हैं 16वीं 

मातृकाओं के पूजन क्रम में प्रथम भगवान गणेश तथा अंत में कुलदेवता की पूजा करनी चाहिए। इससे वंश, कुल, कुलाचार तथा मर्यादा की रक्षा होती है। इससे वंश नष्ट नहीं होता है और सुख, शांति तथा ऐश्वर्य की प्रप्ति होती है।

नोट-चूंकि अलग-अलग कुल के अलग-अलग देवियां और देवता होते हैं, इसलिए सबके मंत्र भी कुल के हिसाब से अलग-अलग हैं। उनका उसी रूप में आवाहन व पूजन किया जाना चाहिए। इस तरह आपने जाना कि 16 मातृकाएं हैं जगत का आधार।

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