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Dharm-adhyatm : हिन्दू समाज और श्राद्धकर्म, आइए जानें इस कर्मकांड की क्या है महत्ता

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Hindu society and Shraddha ritual, let’s know the importance of this ritual, dharm, religious, Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, jyotish Shastra, dharmik totke, dharm adhyatm : हिंदू धर्म में जन्म से लेकर देहावसान तक कई कर्मकांडों की प्रधानता है। विभिन्न मंचों पर इसकी महत्ता को लेकर चर्चा आम बात रही है। कुछ लोग इसे आध्यात्म और परलोक से जोड़कर देखते हैं तो कुछ इसकी वैज्ञानिक अवधारणाओं पर भी बातें करते हैं। बहरहाल वर्तमान सूचना एवं प्रौद्योगिकी के दौर में यह सवाल तो बनता ही है कि आखिर श्राद्ध क्यों किया जाए। आइए, आज हम इसी पर चर्चा करें…

… तो क्या मनुष्य की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा फिर मनुष्य का ही रूप धारण करती है

हिंदू धर्म में प्रचलित मान्यताओं की बात करें तो मृत्यु के बाद मनुष्य की आत्मा मनुष्य की योनि से निकलकर निम्न योनियों में सामान्य तौर पर नहीं जाती। माना जाता है कि मनुष्य योनि इन सब योनियों में सर्वश्रेष्ठ है और देहावसान के बाद यह फिर मनुष्य का ही शरीर धारण करता 

 है। यह बात अलग है कि उसमें स्त्री अथवा पुरुष का भेद हो सकता है। इसमें एक वर्ग ऐसा भी है, जिसका मानना है कि यह मनुष्य रहते हुए उसके कर्मो पर निर्भर करता है कि वह किस योनि में जन्म लेगा, जबकि एक अन्य वर्ग का मानना है कि एक बार मनुष्य योनि में जन्म ले लेने के बाद जब उसकी मृत्यु होती है तो वह जन्म-मृत्यु के बंधन से सदा-सदा के लिए छुटकारा पा जाता है, परन्तु श्राद्धकर्म उसकी आत्मा की शांति के लिए आवश्यक है।

आखिर क्यों करें श्राद्धकर्म?

जहां बात आलोचना और समालोचना की हो, वहां यह जानना जरूरी है कि आखिर श्राद्धकर्म क्यों? कहा जाता है कि साधारण मृत्यु में सिर्फ स्थूल शरीर ही नष्ट होता है, सूक्ष्म शरीर नहीं। योग सूत्र में सात शरीरों की जानकारी दी गई है, वह है स्थूल, आकाश, सूक्ष्म, मानस, आत्म, ब्रह्म और निर्माण। साधारण मृत्यु में यह सारे शरीर स्थूल शरीर को छोड़कर हमारे साथ होते हैं। भौतिक रूप से हमारे पास इंद्रियां नहीं होती किंतु मन हमारे साथ होता है,जो सूक्ष्म शरीर के रूप में श्राद्धकर्ता द्वारा शरीर छोड़कर जा चुकी आत्मा के लिए किए गए कर्म को मानसिक रूप से ग्रहण करता है। यह बात सच है कि सामान्य तौर ओर मनुष्य की मृत्यु के बाद आत्मा दूसरे शरीर में प्रवेश कर जाता है, किंतु उस आत्मा ने कब दूसरा शरीर धारण किया, यह हमें पता नहीं होता है। इसलिए ही उस सूक्ष्म शरीर में प्रविष्ट आत्मा के लिए श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। ऐसा नहीं करने पर सूक्ष्म शरीर भी ठीक वैसी हीं प्रतिक्रिया देता है,जैसे स्थूल शरीर में रहते हुए मान-अपमान होने पर देता है। श्राद्धकर्म नहीं होने पर किस तरह की प्रतिक्रिया देगा, अच्छा या बुरा, यह हमारे समझ से परे होता है, ऐसे में श्राद्धकर्म आवश्यक हो जाता है।

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