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Environment Fair : अपनी जीवनशैली को बदलें, रीसाइकिलिंग पर गौर करें-राजेंद्र शर्मा

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पुरानी जीवनशैली को अपनाना वक्त की जरूरत
थ्री आर- रिड्यूस, रियूज एंड रीसाइकल के सिद्धांत पर चलें

Ranchi, Jharkhand latest Hindi news : रीसाइकिलिंग एंड इन्वायरमेंट इंडस्ट्री एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सचिव सह महानिदेशक राजेंद्र पी शर्मा ने कहा है कि अगर हम लोग अपनी लाइफ स्टाइल को नहीं बदलेंगे तो आने वाले दिनों में दिक्कतें ज्यादा बढ़ जाएंगी। उन्होंने कहा कि हमें अपनी जरूरतों को कम करना होगा। उन्होंने थ्री आर का फार्मूला दिया-रिड्यूस, रियूज एंड रीसाइकल।

प्राकृतिक संसाधनों की भी एक सीमा है

पर्यावरण मेले में शिरकत करने आए राजेंद्र पी शर्मा ने कहा कि प्रकृति ने हमें जो भी संसाधन दिये हैं, उन सभी की एक सीमा है। एक सीमा के बाद वो खत्म हो जाएंगे। फिर क्या बचेगा हमारे पास, इस पर अब सोचने का वक्त आ गया है।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हमें अपने जीवन को फिर से रीसेट करना होगा। आज से 30-40 साल पहले जो जिंदगी हम लोग जीते ते, उस जिंदगी को ही फिर से जीना होगा। यह करना ही होगा। तय आपको करना है कि आप इसे कब और कैसे करेंगे। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे पहले या अभी भी आप गांवों में चले जाएं। उन गांवों में आपको डंप नहीं मिलेगा। आप यह पूछ सकते हैं कि डंप क्यों नहीं मिलता। इसका सीधा सा जवाब हैः गांव के लोग डंप की स्थिति पैदा ही नहीं होने देते। अव्वल तो कुछ बचता नहीं। अगर बच भी गया तो उसे वे अपने खेत में इस्तेमाल कर लेते हैं। नतीजा यह निकलता है कि वहां न तो कोई गंभीर बीमारी फैलती है, न ही किसी चीज का मिसयूज होता है।

हमें एक चेन बनानी होगी

एक सवाल के जवाब में शर्मा ने बताया कि एक चेन बनानी होगी। मान लें, आपने एक शर्ट खरीदी। उस शर्ट को आपने साल-दो साल पहना। फिर उसका कलर उतर गया या फैशन में परिवर्ततन हो गया तो आप उसे उतार देते हैं। अंतः दीपावली या किसी अन्य मौके पर आप उस शर्ट को लैंडपील्ड में ही फेंक आते हैं। आप किसी भी लैंडफील्ड में चले जाएं, 25 प्रतिशत आपको कपड़े ही नजर आएंगे। ये संसाधन को नष्ट करने के समान ही है। इसका दूसरा इस्तेमाल रीसाइकिल करके हो सकता है। आप पहले के दौर को याद करें। तब माताएं-बहनें कपड़ों को फेंकती नहीं थी। वो कपड़ों को जमा करती थीं। कपड़े जब ज्यादा हो जाते थे तो उसे बर्तन वालों को दे देती थीं। कपड़ों के एवज में दो-तीन स्टील के या पीतल या कांसे के बर्तन मिल जाते थे। यानी, उस कपड़े को लैंडफील्ड में नहीं फेंका गया बल्कि उसका इस्तेमाल बदल कर दूसरा सामान ले लिया गया। अब जिसे आपने कपड़े दिये हैं, वो उसे मार्केट में सेकेंड हैंड में बेच देगा और जो गरीब आबादी है, वो उसे नए सिरे से इस्तेमाल करेगी। यही चेन है। आपने शर्ट को फेंका नहीं और उसी शर्ट के बदले में आपको बर्तन भी मिल गए तथा आपने एक रोजगार भी पैदा कर दिया, एक तीसरे शख्स ने उसे दो पैसे कम देकर खरीद भी लिया। यही चेन है। इसे एडॉप्ट करना ही होगा।

कोई भी चीज बेकार नहीं है

यह पूछे जाने पर कि रीसाइक्लिंग को लेकर आम जनमानस में क्या जागरूकता फैलाने की जरूरत है, राजेंद्र शर्मा ने कहाः हमें इस बात को समझना होगा कि कोई भी चीज बेकार नहीं है। उदाहरण के लिए आप मोबाइल को ले लें। एक मोबाइल फोन आपने दो-तीन साल यूज किया। फिर आपने नई ले ली। अब आप पहले वाले हैंडसेट का क्या करेंगे, यह आपके ऊपर निर्भर करता है। अगर आपको पता हो कि आपने मोबाइल हैंडसेट में लोहा, पीतल, तांबा, अल्यूमिनियम, चांदी, सोना (परावर्तित रूप में) मौजूद है तो आप उसे कहां रीसाइकिल करेंगे। आपके पास मशीन नहीं है तो आप ये करें कि उसे किसी बढ़िया दुकानदार को दे दें। खास कर जो बड़ी कंपनियों के दुकान हैं, उन्हें ही दें। वो आपको मोबाइल हैंडसेट का उचित मूल्य भी देंगे और उसे रीसाइकिल करने के लिए भेज देंगे। इससे फायदा यह होगा कि मोबाइल में जो नुकसानदेह पदार्थ हैं, बैटरी है, केमिकल है, अन्य पदार्थ हैं, उनका समुचित इस्तेमाल हो जाएगा। इससे कम से कम पर्यावरण को कोई खतरा नहीं होगा। इसलिए यह हर आदमी को समझना होगा कि अगर रीसाइकिलिंग के सिस्टम को आज नहीं समझा गया तो आने वाले वक्त में कई समस्याएं खड़ी हो जाएंगी। मानव जीवन पर खतरा यूं ही मंडरा रहा है, यह और बढ़ जाएगा।

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