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अगर सोच सकें हम यह सब कुछ!

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राजीव थेपड़ा

समय के साथ जैसे परिस्थितियां बदलती हैं, साधन बदलते हैं, वैसे ही सोच भी बदलती है और हर बदलाहट के साथ स्थिरता और परिवर्तन में रस्साकस्सी या घर्षण भी चलते ही रहते हैं। क्योंकि, बदलाहट की बातें करने वाले अपनी दृष्टि में सही रहते हैं, तो पुराने पर कायम रहनेवाले अपनी जगह से एक कदम भी हिलना नहीं चाहते।…और, इस प्रकार यह द्वन्द्व बढ़ता ही चलता है। एक समय वह था जब आप कुछ कहते थे और आपके विचार महीनों में या फिर बरसों में किसी एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंच पाते थे।…और, एक समय यह है कि बोल कर या लिख कर एक क्लिक मात्र भर से हमारे विचार सुदूर हजारों किलोमीटर दूर तक पहुंच जाते हैं !! 

                …तो, साधनों के इस परिवर्तनों ने दुनिया को बहुत ही ज्यादा तेजी से बदला है। यहां समझ लेनेवाली बात यह है कि साधन बदलेंगे, तो साधनों के साथ एक नयी साधन शैली भी हमारे समक्ष उत्पन्न होगी। ऐसा नहीं हो सकता कि यह चीज आये, तो उसके सिर्फ गुण ही गुण आयें, अवगुण बिलकुल भी नहीं आये !! …तो संचार के ये जो साधन हैं, ये साधन कितने द्रुतगामी हैं कि पलक झपकते ही एक चीज यहां से चांद तक पहुंच सकती है। अखिल ब्रह्मांड में परिक्रमा करने लगती है जैसे !! 

          …तो, इतना तेज हो गया है सब कुछ, संचार के साधन आयेंगे, तो साथ ही साथ दूर दूरस्थ के विचार भी आयेंगे !! आज आप अपने मोहल्ले में रहते हो, लेकिन संसार भर के विचार आपके समक्ष आपके हाथ के साधनों के ज़रिये आपके समक्ष तैरते रहते हैं। आप उससे प्रभावित तो होते हो, लेकिन आप उससे अप्रभावित रह जाना चाहते हो, किन्तु ऐसा थोड़ी ना होता है। आपके हाथ में मोबाइल है और कम्प्यूटर हैं या टीवी आदि, तो समझ लीजिये कि आपके हाथ में दरअसल पूरे संसार की सभ्यताएं भी हैं और आप किन से विचलित होते हो, किन से प्रभावित होते हो, किन से उद्वेलित होते हो, यह आप की समझ की बात है !! एक ग्लोबल चीज आपके हाथ में है, तो सारी ग्लोबल वस्तुएं भी आपके हाथ में होंगी ; चाहे वह वैलेंटाइन डे हो, फादर्स डे हो या चाहे कुछ और ही क्यों न हो, तरह-तरह की चीज़ें स्वतः-स्फूर्त आपके दिलो-दिमाग में समायेंगी ही !! 

          इंटरनेट आयेगा, टीवी आयेगा, मोबाइल आयेगा, तो साथ ही तो साथ ही बहुत सारी चीज़ें आयेंगी, जो आप को हिला देंगी, जो आपके मनोनुकूल ना होंगी, लेकिन आपको बर्दाश्त करनी ही पड़ेगी !! जब आपने संचार के समस्त साधन अपना लिये, तो फिर उसके मार्फत से आनेवाली समस्त वस्तुओं को भी आप को ना चाहते हुए भी अपनाना ही होगा, क्योंकि संचार के ये जो साधन हैं, वे अब सिर्फ आप के हाथ ही में नहीं हैं, बल्कि वे अब हर किसी के हाथ में ही हैं और हर कोई अपने मनोनुकूल तरीकों से सब चीजों को ग्रहण कर रहा है !! अब यह सब कोई मोहल्ले टोले की बात नहीं रही !! दुनिया में द्रुत गति से विचार फ़ैल रहे हैं और उससे भी ज्यादा द्रुत गति से संप्रेषित किये जा रहे हैं। आपकी मर्जी कि आप इसे ग्रहण करो या फिर ना करो !! 

          …तो दोस्तों ! जिस युग में हम रह रहे हैं उसकी तीव्रता को अगर हम आत्मसात न कर पायेंगे, तो सदा ही दिल में कुलबुलाहट बनी रहेगी, क्योंकि स्वभाव से आदमी स्थिर रहना चाहता है। तुरंत-तुरंत और तुरंत की  बदलाहट को आत्मसात ही नहीं कर पाता। यह स्वभाव है, लेकिन जब आप स्वभाव के उलट चीजों का निर्माण करेंगे, तो वे चीजें आपके स्वभाव को ही बदल डालेंगी। इस बात को भी तो समझिए ना !!…और, दरअसल यह द्वन्द्व बढ़ता ही जायेगा, क्यों बढ़ता जायेगा ?? क्योंकि, हर आदमी अपने हिसाब से अपने विचारों को संप्रेषित करता चल रहा है और आप उसको या वह आपको गलत समझ कर अपने उतावलेपन में इस द्वन्द्व को बढ़ाते चले जा रहे हैं !! 

            इस युग में यह बहुत जरुरी है कि हम अपने सामने आनेवाले हर विचार को ठहर कर सोचें कि सामने वाला कहना आखिर क्या चाहता है !! जिस आसानी से हम किसी को देशद्रोही करार दे रहे हैं, जिस आसानी से हम अपने को देशभक्त साबित कर रहे हैं, उससे कुछ होने जाने को नहीं है, बल्कि उससे सिर्फ लड़ाइयां बढ़ेंगी कोई आप के विरोध में है तो क्यों है, आप उसके विरोध में हैं, तो क्यों हैं। इस तीव्र द्रुतगामी संचारवाले समय में यह और भी ज्यादा समझ की मांग करता है एक-दूसरे को समझने के लिए। किन्तु, जब इतनी आसानी से विचारों का संप्रेषण होने लगता है, तो सबको ऐसा लगता है कि हमारे हर विचार ही सही हैं और सामनेवाला का हर विचार गलत !!       

           …तो जितनी तेजी से संचार माध्यमों ने विचारों की दुनिया बदली है, उतनी तेजी से हम इसे आत्मसात नहीं कर पाये हैं अब तक, क्योंकि हमारा उतावलापन कब हमारे उन्माद में परिणत हो जाता है, यह खुद हमें तक पता ही नहीं चलता !!…और, यह यही वह जगह है, जहां हम कब एक आदमी से हिंसक पशु में बदल जाते हैं, यह भी हमको मालूम ही नहीं पड़ता !!

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